सांसदों-विधायकों के खिलाफ मुकदमा चलाने में देरी पर SC नाराज, कहा- सिर्फ संपत्ति कुर्क करने से कुछ नहीं होता, दोषी है तो सजा मिलनी चाहिए

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और सूर्यकांत की पीठ ने बताया कि ईडी के मामलों में करोड़ों की संपत्ति कुर्क की जाती है, लेकिन कोई चार्जशीट दाखिल नहीं होती है। केवल संपत्ति को कुर्क करने से उद्देश्य पूरा नहीं होता।

नई दिल्ली। सांसदों और विधायकों या फिर अन्य छोटे-बड़े नेताओं के खिलाफ दर्ज मुकदमों की सुनवाई में काफी लंबा वक्त लगने पर लगातार सवाल उठते रहे हैं, पर अब देश की सर्वोच्च अदालत ने भी चिंता जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्रीय एजेंसियों CBI और प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा पूर्व सांसदों व विधायकों के खिलाफ जांच पूरी करने में देरी पर चिंता प्रकट की।

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वे CBI और ED के निदेशकों के साथ चर्चा करें, ताकि यह पता चल सके कि क्या उन्हें समयबद्ध तरीके से जांच पूरी करने के लिए अतिरिक्त जनशक्ति की जरूरत है।

मुख्य न्यायाधीश ने न्यायमित्र (एमिकस क्यूरी) की तरफ से दायर रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा, “हमें यह कहते हुए खेद है कि CBI और ED द्वारा सांसदों व विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों की स्थिति रिपोर्ट अनिर्णायक है। 10-15 साल तक चार्जशीट दाखिल नहीं करने और कुछ भी दाखिल नहीं करने का कोई कारण नहीं है।”

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और सूर्यकांत की पीठ ने बताया कि ED के मामलों में करोड़ों की संपत्ति कुर्क की जाती है, लेकिन कोई चार्जशीट दाखिल नहीं होती है। केवल संपत्ति को कुर्क करने से उद्देश्य पूरा नहीं होता। मामले में न्यायमित्र, वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने एनडीपीएस अधिनियम के तहत दर्ज 2013 के एक मामले का हवाला दिया, जिसमें 2017 में आरोप तय किए गए थे और यह विशेष न्यायाधीश, एनडीपीएस एफटीसी, मणिपुर के समक्ष लंबित है। न्यायमित्र ने कहा, “परीक्षण के पूरा होने का संभावित समय 2030 बताया गया है।” पीठ ने ट्रायल पूरा होने के अनुमान पर भी हैरानी जताई।

अगर कोई दोषी है तो उसे सजा मिलनी चाहिए: CJI

CJI ने मेहता से कहा, “कुछ करो, किसी के सिर पर तलवार मत लटकाओ।” सुनवाई पूरी होनी चाहिए, और अगर कोई दोषी है, तो उसे दंडित किया जाना चाहिए। अधिवक्ता विजय हंसारिया ने अदालत के समक्ष कहा कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का डेटा चौंकाने वाला और परेशान करने वाला है। उन्होंने मुकदमे की कार्यवाही में तेजी लाने पर जोर दिया।

CJI रमना ने न्यायपालिका और CBI या ED जैसी जांच एजेंसियों के सामने आने वाली समस्याओं के बीच एक समानांतर रेखा खींची। उन्होंने कहा, “हमारी तरह जांच एजेंसियां जनशक्ति, बुनियादी ढांचे की कमी से पीड़ित हैं और हर कोई चाहता है कि CBI उनके मामले की जांच करे।”

“हम इन एजेंसियों के बारे में कुछ नहीं कहना चाहते, क्योंकि हम उनका मनोबल नहीं गिराना चाहते, न्यायाधीशों की तरह उन पर भी बहुत अधिक बोझ है।” न्यायमित्र की रिपोर्ट के अनुसार, 51 सांसद और 71 विधायक/एमएलसी धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत अपराधों से उत्पन्न मामलों में आरोपी हैं, जबकि सांसदों/विधायकों के खिलाफ सीबीआई के कुल 121 मामले अदालत में लंबित हैं।

21 साल से लंबित हैं कुछ मामले

CJI ने रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा, “कई मामले 8 से 10 साल तक के हैं.. उनमें से 58 मौत या आजीवन कारावास की सजा पाए हुए हैं। सबसे पुराना मामला 2000 का है। CBI के 37 मामलों की अभी भी जांच चल रही है।” मेहता ने कहा कि ईडी के कई मामलों में अक्सर विदेशों से प्रतिक्रिया की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि सूचना मांगने के लिए विभिन्न देशों को अनुरोधपत्र भेजे जाते हैं। उन्होंने जांच में देरी का कारण बताते हुए कहा, “कुछ जल्दी प्रतिक्रिया भेजते हैं, कुछ देर से।”

उन्होंने सुझाव दिया कि अदालत सुनवाई खत्म करने के लिए एक बाहरी सीमा निर्धारित कर सकती है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने जवाब दिया, “हमारे लिए यह कहना आसान है कि सुनवाई तेज करो और सब कुछ.. लेकिन न्यायाधीश हैं कहां?” मामले में विस्तृत दलीलें सुनने के बाद उन्होंने कहा कि अदालत आदेश पारित करेगी।

अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा 2016 में दायर एक याचिका में एमिकस क्यूरी नियुक्त हंसारिया ने शीर्ष अदालत में एक रिपोर्ट दायर की है, जिसमें मौजूदा और पूर्व सांसदों/ विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे में तेजी लाने का निर्देश देने की मांग की गई है। इस मामले में अधिवक्ता स्नेहा कलिता ने उनकी मदद की है।

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