नाबार्ड द्वारा वरिष्ठ बैंकर्स एवं जिला समन्वय अधिकारियों हेतु वित्तीय समावेशन निधि पर जिला स्तरीय कार्यशाला का आयोजन
सीकर। वित्तीय समावेशन की दिशा में भारत की यात्रा के पीछे जो सबसे अधिक प्रभावित करने वाला महत्त्वपूर्ण सिद्धांत हैं, वह “अंत्योदय के माध्यम से सर्वोदय – सबसे कमजोर व्यक्ति के उत्थान के माध्यम से सभी लोगो का कल्याण” में प्रतिध्वनित होता हैं। यह बात राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) द्वारा सीकर में वित्तीय समावेशन निधि पर आयोजित जिला स्तरीय कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप मे सीकर लोकसभा सांसद सुमेधानन्द सरस्वती ने अपने संबोधन में वरिष्ठ बैंकर्स और जिला समन्वय अधिकारियों को बताई। उन्होंने कहा कि “समावेशी” और “समानता” के मूल उद्देश्य इस दर्शन के केन्द्र में हैं जिसका दायरा गरीबी उन्मूलन से आगे तक जाता हैं। इसके दायरे में गरीबों, महिलाओं, किसानों, छोटे उद्यमों और अन्य लोगों के साथ-साथ समाज के सभी वर्गों के लिए अवसर की समानता सुनिश्चित करना शामिल हैं। उन्होने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री मोदीजी के विजन “2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने” मे वित्तीय समावेशन एवं वित्तीय साक्षरता की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी और इसमे सभी बैंकों को आगे आ कर अधिक से अधिक योगदान करना चाहिये। इस अवसर पर उन्होने नाबार्ड द्वारा किये जा रहे विभिन्न कार्यों की सराहना करते हुये सभी बैंकों से आग्रह किया कि नाबार्ड की योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ लेते हुये देश के अंतिम व्यक्ति तक सरकारी योजनाओं का लाभ सुनिश्चित करें।
कार्यशाला मे डीडीएम सीकर एवं सहायक महाप्रबंधक, नाबार्ड एम एल मीना ने बताया कि वित्तीय समावेशन सतत और संतुलित आर्थिक विकास का एक प्रमुख प्रेरक तत्व है जो आय की असमानता और गरीबी को कम करने में सहायता प्रदान करता हैं। भारत में नीति निर्माताओं के रूप में भारत सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक और नाबार्ड ने वित्तीय समावेशन के महत्व को बहुत पहले स्वीकार कर लिया था और यह सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय किए गए हैं ताकि आर्थिक विकास का लाभ समाज से गरीब और वंचित वर्गों तक पहुंचे। उन्होंने बताया कि अन्य तमाम योजनाओं के अलावा शाखा नेटवर्क का विस्तार, प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण, अग्रिणी बैंक योजना, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंको की स्थापना, स्वयं सहायता समूहों एवं संयुक्त देयता समूहों को बढ़ावा देना, किसान क्रेडिट कार्ड योजना, कारोबार संवाददाता (बीसी) मॉडल का कार्यान्वयन, आधार सक्षम भुगतान सेवाएं (एईपीएस), प्रधानमंत्री जन-धन योजना, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं, लघु वित्त बैंको और पेमेंट बैंको की स्थापना, तत्काल भुगतान सेवा (आईएमपीएस) और एकीकृत भुगतान प्रणाली इंटरफेस (यूपीआई), माइक्रो-एटीएम, पीओएस मशीन आदि ने वित्तीय समावेशन में महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं।
इस अवसर पर डीडीएम सीकर एम एल मीना ने नाबार्ड द्वारा वित्तीय समावेशन निधि (एफआईएफ) के अंतर्गत बैंको को दी जाने वाली विभिन्न वित्तीय समावेशन योजनाओं यथा वित्तीय एवं डिजिटल साक्षरता शिविर, हैण्डहेल्ड प्रोजेक्टर, बैंकिंग तकनीक के प्रदर्शन हेतु मोबाइल डेमो वन, बीसी-बीएफ की परीक्षा शुल्क का पुनर्भरण, माइक्रो एटीएम, पीओएस मशीन, स्वयं सहायता समूहों हेतु बीसी पॉइंट्स पर दोहरी प्रमाणीकरण इंटरफेस, भीम यूपीआई ऑन-बोर्डिंग, पीएफएमएस ऑन-बोर्डिंग, भारत बिल पेमेंट सिस्टम ऑन-बोर्डिंग, सी-केवाईसी ऑन-बोर्डिंग, पॉजिटिव पे सिस्टम, ग्रीन पिन सुविधा, वी-सेट, मोबाइल सिग्नल बूस्टर्स, सोलर पावर यूनिट एवं यूपीएस आदि के लिए दी जाने वाली आर्थिक अनुदान सहायता के बारे में विस्तार से बताया।
साथ ही, डीडीएम सीकर एम एल मीना ने बताया कि वित्तीय साक्षरता, उपभोक्ता संरक्षण और शिकायत निवारण के बिना पूर्ण वित्तीय समावेशन संभव नहीं हैं। बैंक खातों की सर्वव्यापी पहुंच और इसके साथ-साथ ऋण, निवेश, बीमा और पेंशन से संबंधित वित्तीय उत्पादों तक सुलभ पहुंच को अधिक तेजी से बढ़ाने की जरूरत हैं। यह सुनिश्चित करना सभी हितधारकों विशेषकर बैंको का दायित्व हैं कि वित्तीय पारिस्थितिकी समावेशी हो और उत्पादों की अनुचित बिक्री, साइबर सुरक्षा, डेटा निजता जैसे जोखिम का समाधान करने और समुचित वित्तीय शिक्षण एवम जागरूकता और सुदृढ़ शिकायत प्रणाली के जरिए वित्तीय व्यवस्था में भरोसा बढ़ाने में सक्षम हो ताकि वित्तीय रूप से जागरूक एवं सशक्त समावेशी “आत्मनिर्भर विकसित भारत” के निर्माण का स्वप्न साकार हो सके।
जिला स्तरीय कार्यशाला में क्षेत्रीय प्रबंधक बीआरकेजीबी डी एस धनकड़, क्लस्टर प्रमुख एचडीएफसी बैंक करुण तोशनीवाल, अग्रणी जिला प्रबंधक धीरज कुलहरी एवं निदेशक आरसेटी अशोक कालेर आदि ने भी उपस्थिति प्रतिभागियों को संबोधित किया और वित्तीय समावेशन हेतु नाबार्ड द्वारा किये जा रहे प्रयासों को भूरी-भूरी प्रशंसा की।