आराध्यदेव श्री केशवराय जी प्रतिमा जयपुर गोविन्द देव जी जैसी


आराध्यदेव श्री केशवराय जी प्रतिमा जयपुर गोविन्द देव जी जैसी

विराटनगर@जागरूक जनता। प्रमुख मोन्यूमेंट स्थल(विश्व विरासत संस्कृति के केंद्र में विश्व का एक मात्र धार्मिक स्थल जहाँ भगवान कृष्ण.(योगेश्वर स्वरूप) एवम् विष्णु (चतुर्भुज स्वरूप )में 6 प्रतिमा विराजित है। )कस्बे के मध्य विराटनगर के आराध्यदेव भगवान केशवराय जी का महल जिसमे मंदिर 16वीं शताब्दी से पूर्व का स्थापित प्रमुख दर्शनीय धार्मिक स्थल है ।श्रीकेशवराय जी का मंदिर विश्व का एक मात्र मंदिर है मंदिर में भगवान की कृष्ण वर्ण में तीन प्रतिमा विष्णु,तीन प्रतिमा कृष्ण की विराजमान है। जिसमे कृष्ण के साथ कोई शक्ति(देवी) नही है एवं ना ही भगवान विष्णु के साथ कोई शक्ति(देवी) नही है।
विरासत धरोहर संरक्षण समिति विराटनगर के अध्यक्ष युवाचार्य पंकज पाराशर ने बताया कि पूर्वजो ने शास्त्रार्थ में जीतकर भगवान श्री केशवराय जी को मैड से प्रतिमा रथ में बैठकर आयी है ।सभी मुर्तिया 10 वी शती से भी पूर्व की है ।जयपुर के गोविन्ददेव जी की जैसी ही समकक्ष प्रतिमा यहा विराजमान होकर भक्तो के भय  व्याधि विनाधि से मुक्त हो कर कार्य सिद्ध कर रहे है । भगवान केशव की नयनाभिराम छवि के दर्शन इतने मनमोहक है जैसे श्री कृष्ण का पूर्ण स्वरूप छलकता है।कस्बे में शान्ति का सौहार्द की सनातन परम्परा  पर प्रत्येक आयोजन पर निमंत्रित आमन्त्रित करके परम्परा आदिकाल से चली आ रही है।जयपुर नरेश  मुसाइब बक्शीराम जी व्यास कोपुत्र नही होने पर उन्होंने भगवान की पूजा अर्चना की उसके पश्चात् पुत्र रत्न की प्राप्ति के बाद मंदिर के गर्भगृह  व मंदिर निर्माण जयपुर महाराजा के द्वारा विज्ञ वास्तुकारों  के संरक्षण में करवाया गया ।
गौरतलब है की बक्शी राम जी व्यास ने पाराशर परिवार में यहा तोरण मारा था। जिससे मंदिर के प्रबंधको को राज घराना की तरफ से प्रतिवर्ष में एक बार सम्मान दिया जाता था ।आज भी वास्तुकला का अद्वितीय हस्ताक्षर श्री केशवराय मंदिर अनुपम व अद्वितीय वास्तुकला निर्मित है।आज मंदिर किसी राजसी महल की कलात्मक आभा से पर्यटको के लिए मनमोहक स5हल है । काली प्रतिमा उपासक पाराशर ऋषि के वंशज मंदिर श्री केशवराय भगवान की पूजा राजोपचार विधि से सनातनि महन्त परम्परा से करते आ रहे है  श्री केशवराय मंदिर के महंत पूज्य पाद श्री हरिशंकर शर्मा के औरस पुत्र अपने प्रबन्धकीय कार्य क्रियान्वित कर रहे है । वर्तमान में मंहत श्री हरिद्वारी लाल शर्मा के सानिध्य में कार्यक्रम चल रहे हैं । मंदिर में आज भी 64 खम्बे  योगिनी,108 टोडी , विशाल शिखर वास्तुकला संस्कृति के आयाम बिखेरे हुए है।सन्1935 में गर्भ गृह के सामने मकराना के कारीगरों के द्वारा मकराना का संमरमर की फर्श डलवाई मंदिर के बाह्य हिस्से में मार्बल लगाकर मन्दिर का पुनः जीर्णोद्धार करवाया गया है।

मंदिर के उत्सव :-पूर्व काल में जयपुर महाराजासे प्रदत्त शाही लवाजमे से जलझूलनी एकादशी ,दशहरा,रामनवमी पर भगवान की शोभायात्रा जिसमे भगवान लवाजमे के साथ विहार करते हुये भक्तो कों दर्शन देते है। श्री कृष्णजन्माष्टमी को मंदिर परिसर में भव्य भक्ति आयोजन एवम् हजारो-लाखो भक्त देश दुनिया इस दिन मेले में भगवान के दर्शन करने आते है मंदिर का शिखर,श्रंगार,नयनाभिराम झांकी ,शरद पूर्णिमा मोहत्सव,दीपमालिका,कार्तिक महोत्सव आदि त्योहार हर्ष-उल्लास से मनाते है।देश_दुनिया के पर्यटक मंदिर की छत से जब वहा का नजारा देखते है तब उन्हें शांति के साथ जीवन जीने की प्ररेणा महसूस होती क्योकि गौरतलब है की मंदिर 64 खम्भो से इस धरातल पर अपनी वास्तुकला की अमिट हस्ताक्षर है।
प्रस्तावित योजना मंदिर परिसर में वेद विद्यालय का संचालन करने की योजना प्रस्तावित है और गौ माताओं के लिए गौ संवर्धन केंद्र खोलने की योजना प्रस्तावित है।


Jagruk Janta

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