किशन रेड्डी और धर्मेंद्र प्रधान पर्यवेक्षक बनाए गए
बेंगलुरु। कर्नाटक को आज ही नया मुख्यमंत्री मिल सकता है। बीते दिन बीएस येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद से ही नए मुख्यमंत्री के नाम को लेकर काफी चर्चा हो रही है। इसके बाद आज शाम 5 बजे बेंगलुरु में भाजपा विधायक दल की बैठक होनी है। केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और जी. किशन रेड्डी को भाजपा हाईकमान ने पर्यवेक्षक यानी ऑब्जर्वर बनाया है। इन्हीं की अगुवाई में बेंगलुरु में विधायक दल की बैठक होगी, जिसमें मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान होगा।
सोमवार को येदियुरप्पा ने दिया इस्तीफा
इससे पहले येदियुरप्पा ने सोमवार को CM पद से इस्तीफा दे दिया था। इसी दिन राज्य में भाजपा सरकार के दो साल पूरे हुए हैं। इसी के साथ नए CM के दावेदारों की चर्चा होने लगी है। सूत्रों का कहना है कि नया मुख्यमंत्री लिंगायत समुदाय और विधायकों में से होगा। इस हिसाब से कर्नाटक के गृह मंत्री बसवराज बोम्मई और खनन मंत्री एमआर निरानी सबसे बड़े दावेदार हैं।
लिंगायत समुदाय से आते हैं येदियुरप्पा
येदियुरप्पा भी लिंगायत समुदाय से आते हैं। यह समुदाय 1990 से भाजपा का समर्थक रहा है। कर्नाटक की आबादी में इसका हिस्सा करीब 17% है। राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से 90 से 100 सीटों पर लिंगायतों का प्रभाव है। इस वजह से नया मुख्यमंत्री इसी समुदाय से चुनना भाजपा के लिए मजबूरी के साथ मुफीद भी है।
4 बार मुख्यमंत्री रहे, कभी कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए
येदियुरप्पा सबसे पहले 12 नवंबर 2007 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने, लेकिन महज सात दिन बाद 19 नवंबर 2007 को ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद 30 मई 2008 को दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के चलते इस बार 4 अगस्त 2011 को इस्तीफा दिया। तीसरी बार 17 मई 2018 को मुख्यमंत्री बने और फिर महज छह दिन बाद 23 मई 2018 को इस्तीफा हो गया। चौथी बार 26 जुलाई 2019 को मुख्यमंत्री बने और ठीक दो साल बाद इस्तीफा दे दिया।
लिंगायत समुदाय पर मजबूत पकड़
कर्नाटक में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं और येदियुरप्पा की लिंगायत समुदाय पर मजबूत पकड़ है। ऐसे में उनके इस्तीफे के बाद भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस समुदाय को साधने की होगी। बीते दिन ही विभिन्न लिंगायत मठों के 100 से अधिक संतों ने येदियुरप्पा से मुलाकात कर उन्हें समर्थन की पेशकश की थी। संतों ने भाजपा को चेतावनी दी थी कि अगर उन्हें हटाया गया, तो परिणाम भुगतने होंगे।
कर्नाटक में लिंगायत प्रभाव 100 विधानसभा सीटों पर
कर्नाटक में लिंगायत समुदाय 17% के आसपास है। राज्य की तकरीबन आधी आबादी पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव है। ऐसे में भाजपा के लिए येदि को नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा। ऐसा होने का मतलब इस समुदाय के वोटों को खोना होगा।
केंद्रीय कैबिनेट के विस्तार के बाद से इस्तीफे की अटकलें थीं
- येदियुरप्पा के इस्तीफे की अटकलें केंद्रीय कैबिनेट के विस्तार के बाद से ही लगाई जाने लगी थीं। दरअसल, येदियुरप्पा के कैम्प में सक्रिय सांसद शोभा करंदलाजे को मोदी कैबिनेट में शामिल किया गया। माना जा रहा है कि इस्तीफे के लिए येदि ने पार्टी हाईकमान के सामने जो शर्त रखी थी, उनमें से एक ये भी थी।
- इसके बाद येदियुरप्पा ने 16 जुलाई को दिल्ली पहुंचकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। अचानक हुई इस मुलाकात ने येदियुरप्पा के इस्तीफे की अटकलों को और हवा दे दी। इसके बाद उन्होंने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की थी।
येदियुरप्पा पहले दिखा चुके हैं अपनी राजनीतिक हैसियत
येदियुरप्पा ने 31 जुलाई 2011 को भाजपा से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने 30 नवंबर 2012 को कर्नाटक जनता पक्ष नाम से अपनी पार्टी बनाई थी। दरअसल, येदियुरप्पा के इस कदम के पीछे लोकायुक्त द्वारा अवैध खनन मामले की जांच थी। इसी जांच में येदियुरप्पा का नाम सामने आया था। इसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा था। 2014 में येदियुरप्पा फिर भाजपा में शामिल हो गए।
2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत के जादुई आंकड़े को छूने से चूक गई। इसके बाद भी येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाने की वजह से इमोशनल स्पीच के बाद सत्ता छोड़ दी। इसके बाद कांग्रेस ने जेडी (एस) के साथ मिलकर सरकार बनाई। यह सरकार भी ज्यादा दिन नहीं टिकी और 2019 में येदियुरप्पा दोबारा मुख्यमंत्री बने।