Prayagraj Mahakumbh 2025: 1800 से अधिक साधु बनेंगे नागा, जूना अखाड़े में पर्ची कटने की प्रक्रिया शुरू

Mahakumbh 2025: महाकुंभ में दूसरे अमृत स्नान यानी मौनी अमावस्या से पहले 1800 साधु नागा बनने वाले हैं। जूना अखाड़े में यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।

प्रयागराज. अखाड़ों के लिए केवल महाकुंभ अमृत स्नान का अवसर नहीं होता, बल्कि यह उनके विस्तार का भी एक महत्वपूर्ण समय होता है। विशेष रूप से महाकुंभ में नए नागा संन्यासियों की दीक्षा होती है, जो प्रशिक्षु साधुओं के लिए प्रयागराज कुंभ में अहम होती है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जूना अखाड़े के महंत रमेश गिरि ने बताया कि 17 जनवरी को धर्म ध्वजा के नीचे तपस्या और संस्कार की शुरुआत होगी। इस दौरान साधुओं को 24 घंटे बिना भोजन और पानी के तपस्या करनी होगी। इसके बाद, अखाड़ा कोतवाल के साथ सभी साधुओं को गंगा तट पर ले जाया जाएगा, जहां वे गंगा में 108 डुबकी लगाने के बाद क्षौर कर्म और विजय हवन करेंगे।

19 जनवरी को बनाए जाएंगे नागा साधु
यहां पांच गुरु उन्हें विभिन्न वस्त्र देंगे और संन्यास की दीक्षा अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर देंगे। इसके बाद हवन होगा, और 19 जनवरी की सुबह लंगोटी खोलकर साधु नागा बनाए जाएंगे, हालांकि उन्हें वस्त्र पहनने या दिगंबर रूप में रहने का विकल्प दिया जाता है। वस्त्र पहनने वाले नागा अमृत स्नान के दौरान नग्न होकर स्नान करेंगे। महंत रमेश गिरि के अनुसार, महाकुंभ में सभी अखाड़े 1800 से अधिक साधुओं को नागा बनाएंगे, जिनमें सबसे अधिक नागा जूना अखाड़े से बनाए जाएंगे।

जूना के बाद निरंजनी और महानिर्वाणी में होगा संस्कार
नागा बनाने की शुरुआत सबसे पहले जूना अखाड़े से होने जा रही है, जो शुक्रवार को धर्म ध्वजा के नीचे तपस्या के साथ आरंभ होगी। दो दिन बाद, नस तोड़ या तंग तोड़ क्रिया के साथ नागा संन्यासियों की दीक्षा पूरी होगी। जूना अखाड़े के बाद, निरंजनी अखाड़े में भी नागा संन्यासी बनाए जाएंगे। हालांकि, महानिर्वाणी अखाड़े की तिथि अभी तय नहीं है, लेकिन महंत यमुना पुरी के अनुसार, मौनी अमावस्या से पहले यह संस्कार पूरे कर लिए जाएंगे। इसी प्रकार, उदासीन अखाड़ों में भी यह क्रिया होगी।

गुरु काटेंगे चोटी उसके बाद होगी तंग तोड़ क्रिया
नागा बनाने के दौरान दो प्रमुख क्रियाएं मानी जाती हैं। पहली क्रिया चोटी काटने की होती है, जिसमें गुरु शिष्य का पिंडदान करने के बाद उसके सामाजिक बंधनों को चोटी के माध्यम से काटते हैं। चोटी कटने के बाद, वह शिष्य सामाजिक जीवन में वापस नहीं लौट सकता, और उसके लिए उस जीवन के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जाते हैं। गुरु की आज्ञा उसके लिए अंतिम होती है। दूसरी महत्वपूर्ण क्रिया तंग तोड़ की होती है, जिसे गुरु खुद नहीं करते, बल्कि एक अन्य नागा से करवाते हैं। यह क्रिया नागा बनाने की आखिरी प्रक्रिया मानी जाती है।

नागा संन्यासी ही संभालते हैं अखाड़े की अहम जिम्मेदारी
नागा संन्यासी ही अखाड़ों की सभी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभालते हैं, जिसमें प्रशासनिक और आर्थिक दायित्व भी शामिल होते हैं। इन्हें निभाने के लिए सबसे पहली शर्त यह होती है कि साधु नागा संन्यासी हो। यदि कोई साधु नागा नहीं है, तो उसे न तो कोई अहम पद मिलेगा और न ही मठ या संपत्ति के रखरखाव का जिम्मा सौंपा जाएगा। नागा बनने के बाद ही साधुओं को महामंत्री, सचिव, श्रीमहंत, महंत, थानापति, कोतवाल, पुजारी जैसे पदों पर तैनात किया जाता है। इस कारण अखाड़े में शामिल होने वाले साधु निश्चित रूप से नागा संस्कार करवाते हैं। अखाड़ा पदाधिकारियों का कहना है कि नागा संन्यासी बनाने से पहले आंतरिक कमेटी जांच-पड़ताल करती है, इसके बाद ही उन्हें नागा बनाया जाता है।

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