कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर में 6 डीन कमेटी की रिपोर्ट लागू

कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर में 6 डीन कमेटी की रिपोर्ट लागू

  • किसानों को कम पानी व खारे पानी वाले क्षेत्रों में जौ की फसल का चयन करे कुलपति डॉ बलराज सिंह
  • जौ का सेवन डायबिटीक रोगियों के लिए कारगर कुलपति डॉ बलराज सिंह
  • देश में जौ उत्पादन में कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर का 50% योगदान

जोबनेर . श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर में आईसीएआर नई दिल्ली के अनुसार 6 डीन कमेटी की रिपोर्ट लागू साथ ही इस कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार प्रथम वर्ष के छात्रों के लिए दीक्षारंभ कोर्स का शुभारंभ विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ बलराज सिंह ने किया साथ उन्होंने बताया दीक्षारंभ का उद्देश्य मानव मूल्य, मानव समाज द्वारा स्वीकार किए जाने वाले मूल्यों और नैतिकता पर आधारित होते हैं।
इस कोर्स के अंतर्गत शारीरिक क्रियाकलाप, व्यवहारिक ज्ञान, मार्गदर्शन, विभाग से परिचित होना, सृजनात्मक कला तथा संस्कृति, साहित्यिक क्रियाकलाप, विशिष्ट व्यक्तित्व के व्यक्तियों द्वारा व्याख्यान, स्थानीय क्षेत्र का दौरा आदि गतिविधियाँ सम्मिलित हैं, जिनके द्वारा छात्रों को नीति, कौशल,संचार, शिक्षा अनुसंधान एवं विस्तार पर व्याख्यान दिया जा रहा है।

कुलपति डॉ बलराज सिंह ने बताया कि कृषि क्षेत्र में विश्वविद्यालय का मूल जनादेश अनुसंधान हैं जिसके माध्यम से किसानों की आय बढ़ाना और कृषि उत्पादकता में सुधार लाना है। कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर शिक्षा के साथ अनुसंधान के क्षेत्र में भी अग्रणीय है। जोबनेर मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन और रोग प्रतिरोधी किस्मों पर अनुसंधान कर रहा है।

कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर विश्व में गेहूं के अनुसंधान में चौथे और जौ के अनुसंधान में पहले स्थान पर है। जौ के अनुसंधान बिंदु पर जोबनेर मुख्य रूप से दोहरे उपयोग वाली किस्मों, माल्टिंग किस्मों, खाद्य, भूसा रहित, और बिना कांटे वाली किस्मों पर केंद्रित है। जौ देश में लगभग 50% कवरेज प्रभाव में योगदान देता है। कुलपति ने कहा कि विश्वविद्यालय बायोफोर्टिफाइड किस्मों पर भी अनुसंधान कर रहा हैं जिससे फसलों की गुणवत्ता में सुधार आएगा। साथ ही कहा कि किसानों को ऐसी फसलों का चयन करना चाहिए जिसमें पानी की खपत कम हो और उत्पादन अधिक हो।

उन्होंने किसानों को ऐसी फसलों का चयन करने की सलाह दी जो खारे पानी में भी अधिक उत्पादन दे सके।
गेहूं की राज-3077 किस्म को वंडर व्हीट किस्म के रूप में जाना जाता है एवं आरजे-1482 किस्म चपाती बनाने में उच्चतम गुणवत्ता वाली है। गेहूं पहली फसल है जो जलवायु परिवर्तन से आसानी से प्रभावित होती है। राजकिरण गेहूं की पहली अनाज सिस्ट निमेटोड प्रतिरोधी किस्म है और कर्चिया जौ की लवण सहिष्णु किस्म है जो ऱारी दुर्गापुरा द्वारा विकसित की गई है।

मूल गांठ निमेटोड बागवानी फसलों के लिए बहुत हानिकारक है एवं उत्पादन को कम करता है। बाजरे का ग्लाइसेमिक इंडेक्स 45-48% है तथा इसमें रेंसिडिटी होती है जो बहुत हानिकारक होती है और इसे ब्लांचिंग की प्रक्रिया द्वारा कम किया जाता है। जौ उत्पादन में 700–800 लीटर पानी की आवश्यकता होती है और इस फसल पर जलवायु परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और इसे खारे क्षेत्रों में भी उगाया जाता है और इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स 25 से 28% है जो कि डायबिटीज रोगियों के लिए कारगर हैं। डॉ बलराज सिंह ने बताया कि एक राष्ट्र की स्थिरता के लिए निम्नलिखित कारक मुख्य रूप से आवश्यक हैं: पहला खाद्य सुरक्षा, दूसरा पोषण सुरक्षा और तीसरा रोजगार सृजन
इस कार्यक्रम के दौरान महाविद्यालय के एडीएसडब्ल्यू डॉ गजानंद जाट ने कार्यक्रम की रूपरेखा को अवगत कराया साथ ही इन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम में 125 विद्यार्थियों ने भाग लिया।

Date:

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

मारवाड़ी समाज ने राजस्थान का विश्व में बढ़ाया मान – देवनानी

कोलकाता पहुंचे राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष श्री वासुदेव देवनानी का...

एमपीयूएटी: बीज मसालों के उत्पादन के लिए सहयोग में बढ़ते कदम

उदयपुर . महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर...

Jagruk Janta Hindi News Paper 25 December 2024

Jagruk Janta 25 December 2024Download

नगर पालिका पीपाड़ शहर में उपचुनाव को लेकर 9 जनवरी को सार्वजनिक अवकाश घोषित

जोधपुर। जिला निर्वाचन अधिकारी एवं जिला कलक्टर श्री गौरव...