राजस्थान में अपनी हनक वाली राजनीति के लिए चर्चित वसुंधरा राजे सिंधिया की प्रेशर पॉलिटिक्स कुछ काम नहीं आ पाई. उन्होंने मंगलवार को सीएम के नाम की पर्ची पढ़ी और फिर मंच से नीचे उतर गईं.
राजस्थान असेंबली चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद बीजेपी में सीएम पद पर सबसे बड़ा दावा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया का माना जा रहा था. उनके तेवर को देखकर माना जा रहा था कि शायद उनके दबाव में पार्टी एक बार फिर उनके सामने सरेंडर कर देगी. हालांकि मंगलवार को जब विधायक दल की बैठक में सीएम का नाम अनाउंस हुआ तो उनकी दबाव की राजनीति बेकार साबित हो गई. केंद्रीय पर्यवेक्षक के रूप में भेजे गए राजनाथ सिंह ने उन्हें नए सीएम के नाम की पर्ची पकड़ाई. उन्होंने बेमन से उसे खोलकर पढ़ा और फिर मंच से नीचे उतर गईं.
नतीजे के साथ ही प्रेशर पॉलिटिक्स शुरू
तीसरी बार राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने के लिए वसुंधरा राजे सिंधिया (Vasundhara Raje Scindia) ने असेंबली चुनाव के नतीजे आने के अगले दिन से ही विधायकों के साथ मुलाकातों का दौर शुरू कर प्रेशर पॉलिटिक्स शुरू कर दी थी. उन्होंने रिजल्ट के अगले दिन 4 दिसंबर को निर्वाचित विधायकों को अपने आवास पर टी पार्टी के लिए बुलाया. उस पार्टी में करीब 25 निवार्चित विधायक शामिल हुए, जिसमें से कईयों ने वसुंधरा को राज्य का सीएम बनाने की मांग की.
पार्टी हाईकमान की लगी रहीं नजरें
पार्टी नेतृत्व की ओर से उनके हरेक कदम पर निगरानी रखी जा रही थी. जब कई विधायकों के वसुंधरा (Vasundhara Raje Scindia) के संपर्क में होने की बात सामने आई तो पार्टी हाईकमान की ओर से उन एमएलए को संदेशा भिजवाकर गुटबंदी से दूर रहने का निर्देश दिया गया. इस कवायद का असर भी दिखाई दिया और वसुंधरा की पार्टी में जाने वाले विधायकों के सुर मंद हो गए और अधिकतर ने सीएम के नाम पर चुप्पी साध ली. मोदी- शाह के सख्त रुख को देखते हुए वसुंधरा ने भी एक सीमा से आगे बढ़ने की कोशिश नहीं की और इंतजार करो की रणनीति पर चलती नजर आईं.
हनक के साथ मनवाती रही हैं बातें
वसुंधरा राजे सिंधिया (Vasundhara Raje Scindia) की राजनीति को नजदीक से जानने वाले कहते हैं कि वे भले ही लोकतंत्र की राजनीति करती हों लेकिन उन्हें किसी के सामने झुकना पसंद नहीं करती हैं. चाहे विपक्षी नेता हों या अपनी पार्टी के लीडर, वे पूरी हनक के साथ अपनी बात मनवाती आई हैं. वर्ष 2013 में राजस्थान असेंबली चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद पार्टी ने मुख्यमंत्री पद पर नए चेहरे को बिठाने की सोची थी. इसके लिए तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने वसुंधरा को इस बारे में संदेश भिजवाया लेकिन वसुंधरा अपनी बात पर अड़ गईं, जिसके चलते पार्टी को आखिरकार उनकी ही ताजपोशी करनी पड़ी.
सतीश पूनिया के साथ चला टकराव
वर्ष 2018 में पार्टी की हार के बाद पार्टी हाईकमान ने राजस्थान के संगठन में बदलाव करते हुए सतीश पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. पूनिया ने राज्य में दोबारा से संगठन मजबूत करने की कोशिश की तो वसुंधरा को गवारा नही हुआ और करीब 4 साल तक उनका पूनिया से राजनीतिक टकराव चलता रहा. वे पूनिया को हटवाकर अपनी पसंद के नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनवाना चाहती थी लेकिन इस बार पार्टी हाईकमान ने झुकने से इनकार कर दिया. पूनिया का टर्म खत्म होने के बाद वहां प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान ब्रह्मण चेहरे सीपी जोशी को दी गई. जिनके नेतृत्व में पार्टी एक बार राजस्थान में कमल खिलाने में कामयाब रही.
इन वजहों से करना पड़ा सरेंडर
राजस्थान में सीएम पद पर अपनी दावेदारी नकारे जाने से वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje Scindia) को झटका तो लगा है लेकिन उनके सामने ज्यादा विकल्प भी नहीं है. उम्र के इस पड़ाव पर पार्टी छोड़ने का जोखिम नहीं उठा सकती और न ही नई पार्टी खड़ा कर सकती हैं. उन्हें अपने दुष्यंत सिंह के राजनीतिक करियर की भी चिंता है, जो इस वक्त बीजेपी से लोकसभा सांसद हैं. ये सब वजहें रहीं, जिसके चलते उन्हें मोदी-शाह की जोड़ी के सामने सरेंडर के लिए मजबूत होना पड़ा. हालांकि वे बाद में भजन लाल शर्मा के साथ राजभवन भी गईं, जहां पर निर्वाचित मुख्यमंत्री ने राज्यपाल कलराज मिश्रा को अपनी सरकार बनाने के लिए विधायकों का समर्थन पत्र सौंपा.