शिव दयाल मिश्रा
दुनियां में एक-दूसरे से सम्पर्क करने के लिए भाषा का जन्म हुआ। पृथ्वी पर सैकड़ों देश हैं। उन देशों में अपनी-अपनी भाषा है भाषाओं के शब्द कोष में एक-एक शब्द के अनेक अर्थ भी निकलते हैं और एक शब्द के पर्यायवाची शब्द भी हैं। उन शब्दों को सुविधा अनुसार प्रयोग किया जाता है। जैसे उदाहरण के लिए कनक और कनक। अर्थात् कनक यानि धतूरा और दूसरी तरफ इसी कनक शब्द को सोना भी कहा जाता है। मगर इसका प्रयोग परिस्थितिवश दोनों जगह प्रयोग होता है। लेकिन एक शब्द है ‘विकलांगÓ जिसे बदल कर ‘दिव्यांगÓ कर दिया गया। शब्दों के बदलाव से क्या हासिल होता है। विकल का अर्थ भयभीत, भयातुर, डर, मानसिक भय आदि होता है अब इसी शब्द को दिव्य अर्थात विशेष, बहुत बड़ा, जिसका कोई सानी नहीं होना। तो जिस तरह विकलांग को बदलकर दिव्यांग कर दिया गया उसी तरह महात्मा गांधी ने ‘भंगीÓ शब्द को बदलकर ‘हरिजनÓ कर दिया था। मगर अब हरिजन शब्द भी एकाएक कहीं सुनाई नहीं देता। खैर ये एक अलग विषय है कि इस शब्द के बदलने से क्या हुआ। हम बात कर रहे हैं विकलांग से दिव्यांग होने की। पिछले दिनों दिव्यांगों के लिए एक वेबसाइट का उद्घाटन हुआ था वहां चर्चा में किसी वक्ता ने ‘कुब्जाÓ ‘अष्टावक्रÓ आदि पर चर्चा की और उनके गुण और दिव्यता को प्रकट किया गया। आज हम देखते हैं कि दिव्यांगों के लिए नौकरियों में तो आरक्षण है जो विकलांग शब्द होने तक भी था। मगर न तो विकलांग शब्द के समय और न ही दिव्यांग होने के बाद कोई सरकारी संस्थाएं दिखाई नहीं देती जिनमें इन विकलांगों से दिव्यांग बने लोगों के लिए जीवन स्तर सुधारने के लिए शिक्षा या कोचिंग आदि की व्यवस्था हो। हां रेल के डिब्बों पर जरूर विकलांग शब्द की जगह दिव्यांग शब्द लिख दिया गया है। क्या इस शब्द मात्र के बदलाव से इनका जीवन स्तर बदल जाएगा। दुनिया में दिव्यांगों की बहुत बड़ी संख्या है जिनके लिए धरातल पर कुछ ठोस करने की जरूरत है। इनके लिए रोजगार की व्यवस्था होनी चाहिए। सबसे बड़ी दुविधा तो इनके लिए जीवन साथी ढूंढऩे की है। महिला हो या पुरुष, इनको बड़ी मुश्किल से जीवनसाथी मिल पाता है। हां अगर किसी तरह ये पढ़ लिखकर आरक्षण की वजह या अपनी योग्यता से सरकारी नौकरी प्राप्त कर लेते हैं तो इन्हें भले ही जीवन साथी मिल जाए, वरना एकाकी जीवन जीने की मजबूरी भी इनके सामने होती है। कई बार देखा गया है कि अगर कोई धनाढ्य परिवार में विकलांग लड़का या लड़की होती है तो उसे किसी गरीब परिवार की लड़की या लड़का धन के लालच में अपना जीवन साथी बना लेते हैं। लेकिन उनके जीवन में कहीं न कहीं खुशी का अभाव जरूर झलकता है। इसलिए सरकार को चाहिए कि जब इन्हें विकलांग से दिव्यांग नाम दिया है तो इनके लिए कुछ ठोस कार्य भी करने की जरूरत है। तभी ‘दिव्यांगÓ शब्द सार्थक होगा।
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‘दिव्यांगÓ शब्द की सार्थकता!
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