तीन बिंदुओं को आधार बनाकर मेयर के निलंबन को चुनौती
जयपुर। ग्रेटर मेयर और तीन पार्षदों को आुयक्त के साथ मारपीट के आरोप में सस्पेंड करने के मामले में हाईकोर्ट ने कल तक के लिए सुनवाई टाल दी है। आज जस्टिस पंकज भंडारी और सीके सोनगरा की बेंच में केवल दो मिनट वर्चुअल सुनवाई हुई। सरकार की तरफ से महाधिवक्ता एमएस सिंघवी ने पैरवी करते हुए जवाब पेश करने के लिए कल तक का समय मांगा जिस पर अनुमति दे गई। सौम्या गुर्जर की तरफ से एडवोकेट राजेंद्र प्रसाद ने पैरवी की। हाईकोर्ट ने कल तक के लिए सुनवाई टाल दी।
अब कल मेयर सौम्या गुर्जर और तीन पार्षदों को सस्पेंड करने के मामले में महाधिवक्ता सरकार का जवाब हाईकोर्ट में पेश करेंगे। सौम्या गुर्जर ने तीन बिंदुओं के आधार पर सस्पेंशन को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। कल हाईकोर्ट में राज्य सरकार पूरे मामले में जवाब पेश करेगी। सौम्या गुर्जर को सस्पेंशन से राहत मिलती है या नहीं इस पर कल फैसला हो सकता है। राज्य सरकार के जवाब पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा। कानूनी जानकारों के मुताबिक सरकार के फैसले में रही कानूनी खामियां और तकनीकी पेच ही राहत का आधार बन सकते हैं। सरकार के लिए भी यह केस प्रतिष्ठा से जुड़ा है, इसलिए महाधिवक्ता खुद पैरवी कर रहे हैं।
याचिका में तर्क- एफआईआर और शिकायत में नाम नहीं, सुनवाई का मौका नहीं दिया, इस तरह सस्पेंड करना न्यायसंगत नहीं
मेयर सौम्या गुर्जर के निलंबन को तीन बिंदुओं के आधार पर चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि नगर निगम में आयुक्त के साथ हुई घटना की शिकायत और एफआईआर दोनों में मेयर सौम्या गुर्जर का नाम नहीं है इसके बावजूद उन्हें पद से हटाना गलत है। आयुक्त वरिष्ठ आईएएस अफसर है और सरकार ने इसकी जांच आरएएस अफसर को दे दी, सीनियर से जुड़े मामले की जांच जूनियर अफसर को देना भी गलत है।
याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार ने चार जून को ही म्यूनिसिपल एक्ट की धारा 39 के तहत एक आरएएस अफसर को जांच अधिकारी नियुक्त कर दिया। जांच अधिकारी ने बिना समय दिए याचिकाकर्ता को नोटिस जारी कर दिए। याचिकाकर्ता की ओर से समय मांगने पर भी समय नहीं दिया गया और छह जून को याचिकाकर्ता को अपने बयान दर्ज कराने के निर्देश दिए गए। याचिका में बताया गया कि जांच अधिकारी ने छह जून को याचिकाकर्ता की ओर से मांगे समय को ही बयान देना बताकर राज्य सरकार को रिपोर्ट भेज दी। जांच रिपोर्ट पर राज्य सरकार ने इसी दिन न्यायिक जांच के आदेश देते हुए याचिकाकर्ता को महापौर और पार्षद पद से निलंबित कर दिया। इसे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विपरीत बताते हुए राज्य सरकार के आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई है।
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