देश के सर्वांगीण विकास में शिक्षा की महती भूमिका- डॉ. केवलिया
बीकानेर@जागरूक जनता। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मदन केवलिया ने कहा कि किसी भी देश के सर्वांगीण विकास में शिक्षा की महती भूमिका होती है। शिक्षक देश के भावी कर्णधारों में शिक्षा द्वारा देशभक्ति, अनुशासन, सर्वजन हिताय की भावना विकसित कर सकता है। भारत ने युगों तक दुनिया को ज्ञान की मशाल से मार्ग दिखाया। आजादी मिलने के बाद भारत में शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन हुए हैं।
डॉ. केवलिया रविवार को प्रतिमान संस्थान, सादुलगंज में राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी की ओर से ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के तहत आयोजित ‘स्वतंत्र भारत में शिक्षा के बढ़ते सोपान’ विषयक राजस्थानी संगोष्ठी में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में भारत के तक्षशिला, नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों में विश्व के अनेक देशों से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश में शिक्षा की स्थिति असंतोषजनक थी। वर्ष 1951 में देश में साक्षरता दर केवल 18 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार बढ़कर 74 प्रतिशत हो गई।
डॉ. केवलिया ने बताया कि शिक्षा के उन्नयन हेतु स्थापित माध्यमिक शिक्षा आयोग, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, एनसीईआरटी, कोठारी आयोग, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, शिक्षा का अधिकार अधिनियम की संस्तुतियों से शिक्षा हेतु नीतिगत ढाँचा तैयार किया गया। इसके साथ ही विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से शिक्षा में गुणात्मक सुधार हेतु आवश्यक कदम उठाए गये। आईआईटी, आईआईएम, एम्स जैसे विश्वस्तरीय संस्थानों की स्थापना हुई। आवश्यकता इस बात की है कि हमारी शतप्रतिशत आबादी साक्षर हो सके, इसके लिए प्रभावी प्रयास किये जाएं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जाए।
इस अवसर पर राजकीय उ.मा.वि. कानासर की प्रधानाचार्य शशि बेसरवारिया ने कहा कि आजादी के समय देश में नाममात्र के विद्यालय, महाविद्यालय व विश्वविद्यालय थे। आज देश में विश्वविद्यालयों की संख्या लगभग एक हजार व महाविद्यालयों की संख्या करीब चालीस हजार है। उन्होंने कहा कि सर्वशिक्षा अभियान, मिड डे मील, राइट टू एजुकेशन आदि के माध्यम से अधिकाधिक बच्चों को विद्यालयों तक लाने में कामयाबी मिली है पर बच्चों का स्कूलों से ड्रॉपआउट एक बड़ी समस्या है, जिसके समाधान हेतु गंभीरता से समन्वित प्रयास करने होंगे।
एम.डी.डिग्री महाविद्यालय, बज्जू के प्राचार्य डॉ. मिर्जा हैदर बेग ने कहा कि भविष्य में हमारी आबादी का बड़ा हिस्सा युवाओं का होगा। वर्तमान परिस्थितियों में सरकार द्वारा सभी युवाओं को रोजगार दिया जाना संभव नहीं है। शिक्षा को रोजगार से जोड़े जाने पर ही बेरोजगारी की विकट समस्या का समाधान हो सकेगा। युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया जाए व उन्हें इस दिशा में जरूरी सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएं।
राजकीय उ.मा.वि. उदयरामसर में व्याख्याता रीता आहूजा ने कहा कि भारत में उच्च शिक्षा में गुणवत्ता एक बड़ी चुनौती है। विश्व शीर्ष रैंकिंग में देश के बहुत कम शिक्षण संस्थानों को जगह मिल पाती है। इसके साथ ही आईआईटी, आईआईएम, एम्स जैसे संस्थानों में पढ़े विद्यार्थी बड़ी संख्या में विदेश चले जाते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि ऐसी प्रतिभाओं को देश में ही उचित अवसर उपलब्ध करवाए जाएं, जिससे इनकी योग्यता का लाभ देश को मिल सके।
राजकीय बालिका उ.मा.वि. महर्षि दयानंद मार्ग में व्याख्याता चन्द्रेश सिहाग ने कहा कि विद्यालयों-महाविद्यालयों के आधारभूत ढांचे को सशक्त व शिक्षण में नवाचारों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। शिक्षा हमें चरित्रवान, ईमानदार, सहिष्णु, साहसी बनने की प्रेरणा देती है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में शिक्षण विधियों, परीक्षा पद्धतियों तथा शिक्षक प्रशिक्षण विधि में व्यावहारिक सुधारों पर बल दिया जा रहा है।
राजस्थानी भाषा अकादमी सचिव शरद केवलिया ने कहा कि नई शिक्षा नीति में पाँचवी कक्षा तक मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का माध्यम रखने की बात कही गई है। शोधों द्वारा यह सिद्ध हुआ है कि प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा माध्यम से पढ़ने वाले बच्चों में विषय की समझ व बौद्धिक विकास बेहतर होता है। मातृभाषा की विरासत को अपनाने में हमें गर्व होना चाहिए। शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थियों को देश की भाषा, इतिहास और संस्कृति का विस्तृत ज्ञान दिया जाए। इस अवसर पर अकादमी कार्मिक व आमजन उपस्थित थे।