शिव दयाल मिश्रा
ेकई दशकों पहले एक फिल्म आई थी ‘चौकी नंबर 11Ó। इस फिल्म में एक गाना था जो खूब चला था। गाने के बोल थे ‘कहीं हो न मोहल्ले में हल्ला, पिछवाड़े तांईं आ जानाÓ। पिछवाड़ेे का हमारे समाज में बहुत महत्व है और पहले जो भी रिहायशी मकान या हवेलियां हुआ करती थी उनमें पिछवाड़ा निश्चित रूप से हुआ करता था। मुख्य मकान के पीछे की तरफ पिछवाड़े में जाने के लिए रास्ता भी होता था। ताकि जब जरूरत पड़े पिछवाड़े में चले जाएं। मकान के पिछवाड़े में गाय, भैंस, बैल आदि भी बांधे जाते थे जिन्हें बाड़ा कहा जाता था। मकान के पिछले दरवाजे से उसमें काम होता रहता था। पिछवाड़े के कई फायदे भी होते हैं जिनका इन दिनों काफी उपयोग किया जाता है। मान लो कोई व्यक्ति किसी से मिलने उसके मकान में आता है और मकान मालिक उससे मिलना नहीं चाहे तो वह चुपचाप पिछवाड़े से निकल जाता है। राजनीति में भी पिछवाड़े का बड़ा महत्व है। राजनीतिज्ञ किसी से नहीं मिलना चाहे तो वह पिछवाड़े से निकल जाता है। सामने वाले दरवाजे पर बैठा व्यक्ति उसकी इंतजार ही करता रहे। कई बार छापेमारी में अपराधी मकान के पिछवाड़े से निकल भागता है। शराब की दुकानें भी बंदिश के दौरान बाहर से बंद रहती है और पिछवाड़े से बिक्री होती रहती है। खैर! इन बातों को छोड़ो। इन दिनों लॉकडाउन की वजह से व्यापारियों, दुकानदारों के धंधे प्रभावित हो रहे हैं तो जिनके दुकानों में पीछे दरवाजे हैं तो उनके कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। सामने से शटर बंद है। अगर चैकिंग के लिए पुलिस आए भी, तो सामने से शटरबंद देखकर रवाना और पिछवाड़े से दुकान चालू। धड़ल्ले से व्यापार हो रहा है। ऐसे बहुत से कारनामे हैं जो पिछवाड़े से चालू रहते हैं भले ही सामने से बंद हों। पिछवाड़े भी कई तरह के होते हैं। कहते हैं न कि सामने से कुछ और पीछे से कुछ और। ये सब पिछवाड़े के प्रकार हैं। मगर पिछवाड़े होते बहुत काम के हैं।
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