भारत-चीन के विदेश मंत्रियों की बातचीत: एलएसी विवाद को लंबा खींचना दोनों देशों के हित में नही-जयशंकर

भारत-चीन तनाव के बीच ताजिकिस्तान के दुशांबे में आज भारत और चीन के विदेश मंत्री मिल सकते हैं। भारत के विदेशमंत्री डॉ एस जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच अहम मुलाकात अपेक्षित है। इसके पूर्व दोनों नेता एससीओ बैठक के दौरान साथ होंगे।

जागरूक जनता नेटवर्क
नई दिल्ली। भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच तकरीबन दस महीने बाद एक बार फिर से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर बातचीत हुई। शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक के लिए दुशांबे में हुए आयोजन के दौरान एस जयशंकर और चीनी समकक्ष वांग यी की अलग से द्विपक्षीय मुलाकात हुई। इसमें एलएसी पर बने हालात पर खास तौर से चर्चा हुई। दोनों के बीच करीब एक घंटे चली बातचीत में तनाव खत्म करने पर कोई सहमति बनती नहीं दिखी।

हालांकि भारत ने दो टूक स्पष्ट कर दिया है एलएसी विवाद को लंबा खींचना दोनों देशों के हित में नहीं है। जयशंकर ने चीनी विदेश मंत्री के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए साफ कर दिया कि एलएसी पर अपनी तरफ से यथास्थिति बदलने वाला कदम स्वीकार नहीं किया जाएगा। हालांकि दोनों पक्ष आगे भी बात करने को राजी हैं जो एक शुभ संकेत है।बैठक के बाद जयशंकर ने स्वयं ट्वीट कर बताया कि स्टेट काउंसिलर व विदेश मंत्री वांग यी के साथ एक घंटे द्विपक्षीय बैठक चली।

बातचीत मुख्य तौर पर पश्चिमी क्षेत्र में स्थित एलएसी में तनाव के मुद्दे पर केंद्रित रही। इस बात को खास तौर पर बताया गया कि अपनी मर्जी से स्थिति को बदलने वाला कदम स्वीकार नहीं होगा। हमारे संबंधों को बेहतर करने के लिए यह जरूरी है कि सीमा पर पूरी तरह से शांति व स्थायित्व हो। हमारे बीच वरिष्ठ कमांडरों के बीच शीघ्र ही वार्ता करने को लेकर सहमति बनी है। भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से भी बताया गया है कि दोनों मंत्रियों के बीच आगे भी संपर्क में बने रहने की सहमति बनी है।वांग यी व जयशंकर के बीच इस तरह की एक और मुलाकात सितंबर, 2020 में मास्को में एससीओ के आयोजन के दौरान हुई थी। उसमें दोनों मंत्रियों के एलएसी पर तनाव समाप्त करने के लिए पांच सूत्रीय फार्मूले पर सहमति बनी थी। इस फार्मूले के आधार पर सैन्य कमांडरों के बीच वार्ता के कई दौर चले थे जिसकी वजह से दिसंबर, 2020 और फरवरी, 2021 में तनाव भरे कुछ इलाकों से सैनिकों की वापसी की गई।

हालांकि अभी भी एलएसी के कई ऐसे इलाके हैं जहां चीन वादा करने के बावजूद पीछे हटने को तैयार नही हो रहा है। विदेश मंत्रालय की तरफ से बताया गया कि विदेश मंत्री जयशंकर ने चीन के पक्ष को सितंबर, 2020 की बैठक में बनी सहमति के बारे में बताया और कहा कि उसे पूरी तरह से लागू करने की जरूरत है। जयशंकर ने यह भी बताया कि पैंगोंग झील इलाके में सफलतापूर्वक सैनिकों की वापसी के बावजूद दूसरे इलाकों में ऐसा नहीं हो सका है। उन्होंने उम्मीद जताई कि चीनी दल भारत के साथ इस लक्ष्य के लिए फिर से काम करेगा क्योंकि वहां हालात ठीक नहीं हो पाए हैं।

जयशंकर ने यह भी बताया कि दोनों पक्ष इस बात के लिए भी राजी थे कि इस तरह के हालात को लंबे समय तक बनाए रखना किसी के हित में नहीं है। यह द्विपक्षीय रिश्तों पर नकारात्मक असर डाल रहा है। भारत व चीन के रिश्तों में वर्ष 1988 से जो प्रगति हुई है उसके लिए सीमा पर शांति का भी योगदान है। वर्ष 1993 व वर्ष 1996 में दोनों देशों के बीच जो समझौते हुए उनका भी चीन ने पिछले वर्ष यथास्थिति को बदल कर उल्लंघन किया है। यह दोनों पक्षों के हित में है कि पूर्वी लदद्ख में एलएसी में जो भी तनाव के हालात हैं उसका शीघ्रता से हल निकाला जाए। दोनों मंत्रियों ने इस विवाद के समाधान के लिए सीनियर कमांडरों के नेतृत्व में चल रही बातचीत का अगला दौर जल्द ही करने की सहमति जताई है। आगामी बैठक में तनाव की वजहों का दोनों पक्षों की तरफ से स्वीकार्य समाधान निकालने पर जोर होगा। यह भी सहमति बनी है कि दोनों तरफ से कोई ऐसा कदम नहीं उठाया जाएगा जिससे हालात बिगड़ें।-

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