जलवायु परिवर्तन और बाजार की मार से आहत, किसानों की मदद जरूरी: कर्नाटक

’कृषि में संकट और तनाव’ विषयक पांच दिवसीय कार्यशाला शुरू, बारह राज्यों के अधिकारी भाग ले रहे

उदयपुर। सुदूर गांवों- कस्बों में निवासरत जनमानस तक विभिन्न विषयों की जानकारी मुहैया कराने का सशक्त माध्यम है रेडियो- टेलीविजन। ’कृषि में संकट और तनाव’ विषयक कार्यक्रमों की अवधारणा और डिजाइन तैयार करने तथा प्रसारण के लिए पांच दिवसीय कार्यशाला गुरूवार को यहां प्रसार शिक्षा निदेशालय सभागार में आरंभ हुई। कार्यशाला में बारह राज्यों के आकाशवाणी और दूरदर्शन में कार्यरत 30 अधिकारी भाग ले रहे हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली (आईसीएआर) के अधीन कृषि तकनीकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (अटारी) जोन द्वितीय, जोधपुर तथा राष्ट्रीय प्रसारण एवं मल्टीमीडिया प्रसार भारती, नई दिल्ली (एनएबीएम) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यशाला की मेजबानी प्रसार शिक्षा निदेशालय, एमपीयूएटी कर रहा है।


उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि कुलपति डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि कृषि क्षेत्र लंबे समय से भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहा है जो राष्ट्रीय आय और रोजगार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय कृषि की यात्रा 1950 में मात्र 50 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन के साथ शुरू हुई, तब से हमने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वर्ष 2023-24 के दौरान 137.8 मिलियन टन चावल और 113.3 मिलियन टन गेंहू का रिकार्ड तोड़ उत्पादन किया। इससे निकट भविष्य में हमारी खाद्य सुरक्षा तो मजबूत हुई, लेकिन बढ़ती हुई आबादी के मद्धेनजर प्राकृतिक संसाधनों की कमी और जलवायु परिवर्तन के चलते कृषि के विकास को बनाए रखना होगा।

उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दशकों में विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों ने अर्थव्यवस्था की वृद्धि में तेजी से योगदान दिया है जबकि कृषि क्षेत्र का योगदान कम हुआ है। भारत में अभूतपूर्व कृषि संकट काफी लंबे समय से किसानों को प्रभावित कर रहा है। इनके पीछे के कारणों पर विचार करना होगा। हाल के वर्षों में चरम जलवायु घटनाओं के साथ-साथ बाजार और मूल्य में उतार चढ़ाव के चलते किसानों को कई बार आत्महत्या तक के लिए मजबूर होना पड़ा है। सत्य तो यह है कि हम कहीं न कहीं अपने किसानों के अर्थिक सशक्तिकरण और कल्याण के एजेंडा से चूक गए।

उन्होंने कहा कि कृषि बाजार, कोल्ड स्टोरेज, गोदाम और कृषि प्रसंस्करण सहित कृषि- बुनियादी ढांचे का विकास कृषि उत्पादन में वृद्धि के अनुरूप गति से नहीं हुआ। भारत में कृषि संकट को कम करने के लिए किसानों की आय बढ़ाने के लिए नीतियां बनानी होगी। रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे। डिजिटल कृषि मिशन, सतत् कृषि मिशन, प्राकृतिक खेती पर राष्ट्ररीय मिशन, बीज और रोपण सामाग्री पर उप मिशन की आवश्यकता है। उन्होेंने कहा कि आकाशवाणी और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के अग्रदूत है जिनमें ग्रामीण लोगों की मानसिकता को ऊपर उठाने की क्षमता है। डीडी किसान दूरदर्शन का प्रमुख चैनल है।

प्रसार भारती की अतिरिक्त महा निदेशक अनुराधा अग्रवाल ने कहा कि पर्याप्त प्रचार प्रसार के अभाव में किसान सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित है। प्रसार भारती व इससे जुड़े अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि ऐसी योजनाओं को उन लोगों तक पहुंचाए। कृषि संबंधी प्रसारण से युवा व महिलाओं का ज्ञानवर्द्धन होगा तथा वे कृषि से जुड़ेंगे। हर क्षेत्र की जलवायु अलग-अलग है। वहां के इको सिस्टम को समझकर कार्यक्रम तैयार करें ताकि योजनाओं का समग्र लाभ उन्हें मिल सके। उन्होंने कहा कि किसान खुश नहीं है परेशान होकर अन्न पैदा कर रहा है जो कभी भी किसी के अंग नही लगेगा।

अटारी जोधपुर के निदेशक डॉ. जे.पी. मिश्रा ने कहा कि देश में वर्तमान में 731 कृषि विज्ञान केन्द्र कार्यरत है। रेडियो- दूरदर्शन पर भी कृषक हित के अनेकों कार्यक्रम प्रसारित होते हैं, लेकिन किसान किन-किन समस्याओं का सामना कर रहा है। इसका ख्याल किसी को नहीं है। कम जोत के कारण किसान बेबस है तो उत्पादन, कीमतों, आय और रोजगार के चक्रव्यूह में फंसकर रह गया है।
एनएबीएम नई दिल्ली के पाठ्यक्रम निदेशक डॉ. उमाशंकर सिंह ने कहा कि आकाशवाणी- दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम तार्किक हों, शोधपरक हो ताकि जो ज्ञान किसानों तक पहंुचे उसका पूर्व लाभ मिल सके। जिला स्तर पर तैनात कृषि विभाग के अधिकारियों को भी अपडेट करना होगा ताकि नवीनतम तकनीकयुक्त ज्ञान का प्रसारण हो। इस कार्यक्रम में वरिष्ठ अधिकारी परिषद के सदस्य डॉ. अरविन्द वर्मा, डॉ. आर.बी. दुबे, डॉ. सुनील जोशी, डॉ. वी. नेपालिया, डॉ. एस.के इन्टोदिया एवं डॉ. राजीव बैराठी मौजुद रहे। आरंभ में निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ. आर. एल. सोनी ने प्रारम्भ सभी आगंतुकों का स्वागत भाषण दिया। संचालन प्रो. लतिका व्यास ने किया।

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