ऐसा कहा जाता है कि महाकुंभ में स्नान करने मात्र से व्यक्ति के समस्त पाप धुल जाते हैं और उसे जन्म व मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है। इसकी शुरुआत मकर संक्रांति के साथ होती है और इसका समापन महाशिवरात्रि के दिन होता है। ऐसे में चलिए जानते हैं कि साल 2025 में कुंभ मेला कब लगने जा रहा है।
- हर 12 साल के अंतराल में लगता है कुंभ।
- करोड़ों की संख्या में आते हैं श्रद्धालु।
- केवल 4 स्थानों पर ही होता है इसका आयोजन।
नई दिल्ली। हिंदू धर्म में कुंभ मेले को बहुत ही खास माना जाता है। कुंभ की भव्यता और मान्यता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं, कि कुंभ में स्नान करने के लिए लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है। अगला महाकुंभ, प्रयागराज इलाहाबाद में आयोजित होने जा रहा है। इसका आयोजन केवल सिर्फ प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में ही होता है। जिसके पीछे एक पौराणिक कथा मिलती है। चलिए जानते हैं इस बारे में।
कुंभ पर्व 2025 शाही स्नान तिथियां (Kumbh 2025 Snan Dates)
महाकुंभ की शुरुआत पौष पूर्णिमा स्नान के साथ होती है, जोकि 13 जनवरी 2025 को है. वहीं महाशिवरात्रि के दिन 26 फरवरी 2024 को अंतिम स्नान के साथ कुंभ पर्व का समापन होगा। इस दौरान शाही स्नान की तिथियां कुछ इस प्रकार रहने वाली हैं।
- 14 जनवरी 2025 – मकर संक्रांति
- 29 जनवरी 2025 – मौनी अमावस्या
- 3 फरवरी 2025 – बसंत पंचमी
- 12 फरवरी 2025 – माघी पूर्णिमा
- 26 फरवरी 2025 – महाशिवरात्रि
महाकुंभ की पौराणिक कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार, जब एक बार राक्षसों और देवताओं के बीच समुद्र मंथन हुआ, तो इस दौरान मंथन से निकले सभी रत्नों को आपस में बांटने का फैसला हुआ। सभी रत्न को राक्षसों और देवताओं ने आपसी सहमति से बांट लिए, लेकिन इस दौरान निकले अमृत के लिए दोनों पक्षों के बीच युद्ध छिड़ गया।
ऐसे में असुरों से अमृत को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अमृत का पात्र अपने वाहन गरुड़ को दे दिया। असुरों ने जब देखा कि अमृत गरुड़ से पास है, तो वह इसे छीनने का प्रयास करने लगे। इस छीना-झपटी में अमृत की कुछ बूंदें धरती की चार जगहों पर यानी प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी। जहां-जहां यह बूंदे गिरी थी आज वहीं पर 12 सालों के अंतराल में कुंभ मेले का आयोजन होता है।
इसलिए 12 साल में होता है आयोजित
समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत पाने को लेकर 12 दिनों तक लड़ाई चली थी। वही शास्त्रों के अनुसार, देवताओं के बारह दिन मनुष्य के बारह वर्षों के समान होते हैं। इसलिए महापर्व कुंभ प्रत्येक स्थल पर बाहर वर्ष बाद लगता है। वहीं 12 साल में कुंभ लगने का एक कारण बृहस्पति ग्रह की गति को भी माना जाता है, जो इस प्रकार है –
- जब बृहस्पति ग्रह, वृषभ राशि में हों और इस दौरान सूर्य देव मकर राशि में आते हैं, तो कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में होता है।
- इसी तरह जब बृहस्पति, कुंभ राशि में हों और इस दौरान सूर्य देव मेष राशि में आते हैं, तो कुंभ आयोजन हरिद्वार में होता है।
- सूर्य और बृहस्पति जब सिंह राशि में हों तब महाकुंभ मेला नासिक में लगता है।
- जब देवगुरु बृहस्पति सिंह राशि में हों और सूर्य मेष राशि में हों, तो कुंभ का मेला उज्जैन लगता है।