शिव दयाल मिश्रा
किसी की भी पहचान उसके इतिहास से की जाती है। जिसका कोई इतिहास नहीं है उसका कोई अस्तित्व ही मान्य नहीं है। इतिहास से तात्पर्य उसके अतीत से होता है। मेरा मानना है कि इतिहास तीन प्रकार का होता है। नंबर एक शाीय इतिहास, नंबर दो प्राचीन इतिहास और तीसरा वर्तमान इतिहास। इस समय हमारे देश में ना तो प्राचीन इतिहास के बारे में बताया जाता है और ना ही शास्त्रीय इतिहास के बारे में। एक नया ही इतिहास गढ़ दिया गया है जिसे नाम दिया है-मध्यकालीन इतिहास। अरे भाई! मान लिया मध्यकालीन इतिहास है। तो उसको मध्य कहां से किया जाएगा। मध्य तो तब होता है जब शुरूआत और अंत दोनों की जानकारी हो। हमारी सनातन संस्कृति और सनातन देश तो अनादि है। जिसका ना ही प्रारंभ का पता है और ना ही अंत का। फिर मध्य कैसे कर दिया। इसलिए कुछ सौ वर्षों में जो घटनाएं हुई उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर पेश करके मध्यकालीन इतिहास नाम दे दिया गया। अगर देखा जाए तो हमारे शास्त्रीय में वर्णित कोई भी चीज वैज्ञानिक अनुसंधान करने पर गलत साबित नहीं हुई। इसलिए हमारे देश में शास्त्रीय इतिहास को जीवंत कर उसे समझना चाहिए। यही शास्त्रीय इतिहास प्राचीन इतिहास बनता चला जा रहा है। मेरी अल्प जानकारी के अनुसार अगर हमारे प्रचलित ग्रंथों जिनमें पुराण, शास्त्र, वेद, उपनिषद और भी जैसे रामायण, महाभारत, विष्णु पुराण, हरिवंश पुराण आदि को पढ़ेंगे तो इसमें सृष्टि के प्रारंभ से विक्रमादित्य तक का वर्णन मिल जाता है। विक्रमादित्य के बाद के राजाओं का वर्णन शास्त्रीय में नहीं मिलता। इसका कारण विक्रमादित्य के शासन के बाद पंथ निर्माता और आततायियों ने हमारे देश पर हमला कर हमारी संस्कृति और शास्त्रीय को झुठलाकर नष्ट करना शुरू कर दिया। जैसे तक्षशिला, नालंदा आदि विश्वविद्यालय उदाहरण हैं। यहीं से हमारे इतिहास को मिटाना प्रारंभ कर दिया। जो आज तक चल रहा है। ये दो-ढाई हजार वर्ष का समय ऐसा आया जिसमें कुछ नए पंथ उभरे और पंथ संचालकों ने उनको धर्म बता कर स्थापित कर दिया तथा मूल धर्म औरशास्त्रीय इतिहास को पीछे धकेल दिया। इसमें मुगल काल और ब्रिटिश काल भी शामिल है। इस दौरान हमारे देश के सनातनी योद्धाओं को तो लुप्त प्राय: कर दिया गया। उन्हें सिर्फ पराजित होता दिखाया गया है जबकि ऐसा नहीं है। अब इस शास्त्रीय इतिहास को पुन: स्थापित करना चाहिए। तभी इतिहास की वास्तविक सच्चाई सामने आएगी। वरना तो हमारा गौरवशाली इतिहास को लुटेरों का इतिहास निगल जाएगा। इसे पुनर्जीवित करना जरूरी है।
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