नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में स्टूडेंट्स से ‘परीक्षा पे चर्चा’ कार्यक्रम में बातचीत की। करीब दो घंटे से चले रहे इस कार्यक्रम में मोदी ने परीक्षा और जीवन में तनाव पर बच्चों के सवालों के जबाव दिए। एग्जाम में परिवार की निराशा से कैसे निपटूं पर छात्रों को टिप्स दी।
पीएम ने घर में मां के मैंनेजमेंट, क्रिकेट की गुगली, पतंग का मांझा, पार्लियामेंट में सांसदों की नोकझोक जैसे उदाहरण देकर बच्चों को समझाया। जब एक छात्र ने एग्जाम में दबाव पर एक सवाल किया तो उन्होंने कहा, ‘परिवार के दबाव से दबाव में ना आएं। उन्होंने कहा कि कभी क्रिकेट देखने गए होंगे, तो कुछ बैट्समैन आते हैं तो पूरा स्टेडियम चिल्लाना शुरू करता है- चौका-चौका, छक्का-छक्का। क्या वो ऑडियंस की डिमांड के ऊपर चौके-छक्के लगाता है क्या। चिल्लाते रहें, बैट्समैन का ध्यान बॉल पर ही होता है। बॉलर के माइंड को स्टडी करने की कोशिश करता है। जैसी बॉल है वैसा ही खेलता है। फोकस रहता है।’ परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम का यह छठा संस्करण है। इस प्रोग्राम के लिए 20 लाख से अधिक प्रश्न प्राप्त हुए।
पटना से प्रियंका कुमारी, मदुरई से अश्विनी, दिल्ली से नवतेज- अगर नतीजे अच्छे न हों तो परिवार की निराशा से कैसे निपटूं? आजकल छात्र हाथ काट ले रहे हैं, वो अपनी भावनाओं को लेकर दूसरों पर भरोसा नहीं करते हैं?
PM मोदी- ‘अश्विनी आप क्रिकेट खेलती हैं। क्रिकेट में गुगली होती है। निशाना एक होता है, दिशा दूसरी होती है। लगता है कि आप पहली बार में मुझे आउट करना चाहती हो। अगर परिवार के लोगों की अपेक्षाएं हैं तो ये स्वाभाविक है। इसमें कुछ गलत भी नहीं है, लेकिन अगर परिवार के लोग अपेक्षाएं सोशल स्टेटस के कारण कर रहे हैं तो वो चिंता का विषय है। उनका सोशल स्टेटस का इतना दबाव है कि उन्हें लगता है कि बच्चों के लिए सोसाइटी में क्या बताएंगे। बच्चे कमजोर हैं तो कैसे चर्चा करेंगे। मां-बाप आपकी क्षमता जानने के बावजूद सोशल स्टेटस के कारण क्लब-सोसाइटी में जाते हैं तो बच्चों की बातें करते हैं। उन्हें कॉम्प्लेक्स आता है। बड़ी-बड़ी बातें बताते हैं अपने बच्चों के बारे में। घर में आकर वही अपेक्षा करते हैं। समाज जीवन में यह सहज हो गया है।’
‘आप अच्छा करेंगे तो भी हर कोई आपसे नई अपेक्षा करेगा। हम तो राजनीति में हैं। कितने ही चुनाव क्यों न जीत लें, ऐसा दबाव पैदा किया जाता है कि हमें हारना ही नहीं है। 200 लाए हैं तो ढाई सौ क्यों नहीं लाए, ढाई सौ लाए तो तीन सौ क्यों नहीं लाए। चारों तरफ से दबाव बनता है। हमें इन दबावों से दबना चाहिए क्या? आपको जो कहा जाता है, उसी में आप अपना समय बर्बाद कर देंगे गया अपने भीतर अपनी क्षमता, इरादे और सपने देखेंगे। कभी क्रिकेट देखने गए होंगे, तो कुछ बैट्समैन आते हैं और पूरा स्टेडियम चिल्लाना शुरू करता है- चौका-चौका, छक्का-छक्का, क्या वो ऑडियंस की डिमांड के ऊपर चौके-छक्के लगाता है क्या। चिल्लाते रहें, बैट्समैन का ध्यान बॉल पर ही होता है। बॉलर के माइंड को स्टडी करने की कोशिश करता है। जैसी बॉल है वैसा ही खेलता है। फोकस रहता है। आप भी फोकस रहोगे तो दबाव को आप झेल लेंगे। संकट से बाहर आ जाएंगे। दबावों के दबाव में ना रहें, दबाव को एनालिसिस करिए। स्वयं को अंडरएस्टीमेट तो नहीं कर रहे हैं, ये सोचिए। बच्चों को अपनी क्षमता से खुद को कम नहीं आंकना चाहिए। पक्का विश्वास है कि ऐसी समस्याओं को आराम से सुलझा लेंगे।’
चंबा से आरुषि ठाकुर, रायपुर से अदिति – परीक्षा के दौरान सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात है कि पढ़ाई कहां से शुरू करूं। हमेशा लगता है सब कुछ भूल गई हूं, ये काफी तनाव देता है?
PM मोदी- ‘सिर्फ परीक्षा नहीं, जीवन में भी टाइम मैनेजमेंट के लिए जागरूक रहना चाहिए। काम में देर इसलिए होती है, क्योंकि वक्त पर वो किया नहीं जाता। काम करने की कभी थकान नहीं होती। उससे संतोष होता है। काम ना करने से थकान लगती है। सामने दिखता है कि इतना सारा काम है। आप कभी कागज पर पेन-पेंसिल लेकर डायरी पर लिखिए। हफ्ते भर नोट कीजिए कि आप अपना समय कहां बिताते हैं। पढ़ाई करते हैं तो कितना समय किस विषय को देते हैं। शॉर्टकट ढूंढते हैं, कि बेसिक में जाते हैं। आपको पता चलेगा कि पसंद की चीजों में सबसे ज्यादा समय लगाते हैं। उसी में खोए रहते हैं। जरूरी विषय बोझ लगते हैं। आप सिर्फ पढ़ना है, पढ़ने में भी जब फ्रेश माइंड है, तब सबसे कम पसंद और कठिन विषयों को देखिए। फिर पसंद वाला, फिर थोड़ा कम पसंद वाला विषय। ऐसे आपको रिलैक्सेशन मिलेगा और तैयारी भी होगी।’
‘मुझे पतंग का बहुत शौक था। पतंग का जो मांझा होता है, उलझकर गुच्छा बन जाता है। धीरे-धीरे एक-एक तार को पकड़कर उसे सुलझाना होता है। धीरे-धीरे इतना बड़ा गुच्छा भी आराम से खुल जाएगा। हमें भी जोर-जबरदस्ती नहीं करनी है। समाधान आराम से निकालना है। अगर ऐसा करेंगे तो ये हो जाएगा। कभी घर में मां को काम करते देखा है क्या। अच्छा लगता है कि स्कूल जाना है, स्कूल से आना है..मां सब रेडी करके रखती है। मां का टाइम मैनेजमेंट कितना बढ़िया है। सबसे ज्यादा काम मां ही करती रहती है। किसी काम में उसे बोझ नहीं लगता। उसे मालूम है कि मुझे इतने घंटे में ये काम करना ही है। एक्स्ट्रा टाइम में भी वो कुछ ना कुछ क्रिएटिव करती रहेगी। अगर मां को ढंग से ऑब्जर्व करेंगे तो आपको छात्र के तौर पर टाइम मैनेजमेंट कर लेंगे। माइक्रो मैनेजमेंट करना होगा।’
बस्तर से रूपेश, जगन्नाथपुरी से तन्मय- परीक्षा में नकल से कैसे बचें?
PM मोदी- मुझे खुशी हुई कि हमारे विद्यार्थियों को भी यह लग रहा है कि परीक्षा में जो गलत होता है, उसका रास्ता खोजना चाहिए। मेहनती विद्यार्थियों को इसकी चिंता रहती है कि मैं इतनी मेहनत करता हूं और ये चोरी करके नकल करके गाड़ी चला लेता है। पहले भी चोरी करते होंगे लोग, लेकिन छिपकर। अब गर्व से करते हैं कि सुपरवाइजर को बुद्धू बना दिया। ये जो मूल्यों में बदलाव आया है, वो बहुत खतरनाक है। ये हम सबको सोचना होगा। कुछ लोग या टीचर्स जो ट्यूशन चलाते हैं, उन्हें भी लगता है कि मेरा स्टूडेंट अच्छी तरह निकल जाए। वो ही नकल के लिए गाइड करते हैं। ऐसे टीचर होते हैं ना? कुछ छात्र पढ़ने में तो टाइम नहीं निकालते हैं, नकल के तरीके ढूंढने में क्रिएटिव होते हैं। उसमें घंटे लगा देंगे। छोटे-छोटे अक्षरों की कॉपी बनाएंगे। इसकी बजाय उतना ही समय क्रिएटिविटी को सीखने में लगा दें ना तो शायद अच्छा कर जाएं।’
‘किसी को समझाना था, गाइड करना था। अब जिंदगी बदल चुकी है। दुनिया बदल चुकी है। इसलिए ये जरूरी है कि एक एग्जाम से निकलने का मतलब जिंदगी निकलना नहीं है। जगह-जगह एग्जाम देना है। कितनी जगह नकल करोगे। नकलची एकाध एग्जाम निकाल लेगा, जिंदगी पार नहीं कर पाएगा। नकल से जिंदगी नहीं बदल सकती है। ये वातावरण बनाना होगा, एकाध एग्जाम में तुमने नकल की, लेकिन आगे शायद जिंदगी में फंसे रहोगे। दूसरा जो विद्यार्थी कड़ी मेहनत करते हैं, उनसे कहूंगा कि आपकी मेहनत आपकी जिंदगी में रंग लाएगी। हो सकता है कि कोई दो-चार मार्क्स ले जाएगा ज्यादा, लेकिन आपकी जिंदगी की रुकावट नहीं बन पाएगा। आपके भीतर की जो ताकत है, वही ताकत आपको आगे ले जाएगी। कृपया उसे फायदा हो गया, आप उस रास्ते पर ना चलिएगा। कभी मत करना ऐसा दोस्तों। परीक्षा आती-जाती है, जिंदगी जीतते-जीतते जीनी है। हमें शॉर्ट कट की तरफ नही जाना चाहिए। हर रेलवे स्टेशन पर पटरी होती है, ब्रिज भी होता है। लोग पटरी कूदकर जाते हैं। मजा आता है। वहां लिखा है- शॉर्ट कट मे कट यू शॉर्ट, इसलिए शॉर्टकट से कोई कुछ कर लेता होगा, तो आप टेंशन मत पालिए। अपने पर फोकस कीजिए।’
एर्नाकुलम से सूजन- हार्डवर्क या स्मार्ट वर्क में से क्या जरूरी है।
PM मोदी- क्या सवाल था उनका, आपने बचपन में एक कथा पढ़ी होगी। इससे आप स्मार्ट वर्क और हार्ड वर्क समझ सकते हैं। घड़े में पानी था। पानी गहरा था। एक कौव्वा पानी पीना चाहता था। लेकिन, अंदर नहीं पहुंच पाता था। कौव्वे ने छोटे-छोटे कंकड़ उठाकर घड़े में डाले, पानी ऊपर आया और कौव्वे ने पानी पी लिया। इसे हार्ड वर्क कहेंगे या स्मार्ट वर्क कहेंगे। देखिए जब कथा लिखी गई ना, तब स्ट्रॉ नहीं था। वरना कौव्वा बाजार से स्ट्रॉ ले आता। कुछ लोग हार्ड वर्क ही करते हैं। कुछ होते हैं जो हार्ड वर्क का नामोनिशान नहीं होता है। कुछ लोग होते हैं, जो हार्डली स्मार्ट वर्क करते हैं, कुछ होते हैं जो स्मार्टली हार्ड वर्क करते हैं। इसलिए कौव्वा भी सिखा रहा है कि स्मार्टली हार्डवर्क कैसे करना है। हमें हर काम को बारीकी से समझना होगा। ढेर सारी मेहनत करके कुछ नहीं मिलता। मैं बहुत पहले ट्रैवल में काम करना होता था। इंटीरियर में जाना होता था। किसी ने हमें उस जमाने की पुरानी जीप की व्यवस्था की।’
‘अब सुबह हम साढ़ेपांच बजे निकलने वाले थे, जीप चली ही नहीं। अब मैकेनिक आया। उसने मुश्किल से 2 मिनट में जीप ठीक कर दी। कहा कि साहब 200 रुपए देने होंगे। हमने पूछा 2 मिनट का 200 रुपया। वो बोला ये 50 साल के अनुभव का 200 रुपया है। हमारे हार्ड वर्क से जीप नहीं चली, उसने स्मार्टली काम किया। पहलवान जो होते हैं, खेलकूद की दुनिया के लोग होते हैं, कौन से खेल से जुड़े हैं, िकस मसल्स की जरूरत होती है, ट्रेनर ये बात जानता है। विकेटकीपर होगा तो उसे ऐसे झुककर घंटों खड़े रहना होता है। टीचर क्लास में कान पकड़कर बैठा देत हैं, दर्द होता है ना। तकलीफ होती है ना। ये जो विकेटकीपर है, उसकी ट्रेनिंग का हिस्सा यही होता है। उसके वो मसल्स मजबूत होते हैं, जो विकेटकीपर को अच्छा बनाता है। हमें भी जिस चीज पर फोकस की जरूरत है, वहीं करें। ये समझ जिसे होती है तो परिणाम मिलता है। बॉलर है और मसल्स ठीक नहीं तो कैसे कर पाएगा। वेटलिफ्टर के लिए अलग मसल्स हैं। वो स्मार्टली हार्ड वर्क करते हैं।’
गुरुग्राम से जोहिता- एवरेज स्टूडेंट होेने के बाद भी मैं पढ़ाई पर कैसे फोकस कर सकती हूं?
PM मोदी- सबसे पहले बधाई देता हूं कि आपको पता है कि आप एवरेज हैं। वरना ज्यादातर होते हैं जो बिलो एवरेज होते हैं और खुद को तीसमारखां समझते हैं। एक बार आपने सत्य को स्वीकार कर लिया कि आपकी एक क्षमता और स्थिति है, इसी के अनुकूल होना होगा। तीसमारखां बनने की जरूरत नहीं। अपने सामर्थ्य को जान लेते हैं तो सबसे बड़े सामर्थ्यवान बन जाते हैं। जो खुद की क्षमता नहीं जानते, उन्हें बहुत सारी रुकावटें आती हैं। ईश्वर ने आपको शक्ति दी, टीचर्स ने दी और मां-पिता ने शक्ति दी। आप बच्चों का सही मूल्यांकन करिए। उनमें हीन भावना मत पैदा होने दीजिए। कभी कभी महंगी चीज लानी है तो आप बोल दो कि घर की इतनी ताकत नहीं है। इसमें कुछ बुरा नहीं है। हम एक सामान्य स्तर के व्यक्ति हैं। ज्यादातर सामान्य ही होते हैं। एक्स्ट्रा ऑर्डनरी बहुत कम होते हैं।’
‘सामान्य लोग असामान्य काम करते हैं, तब वो एवरेज के मानदंड को तोड़कर ऊंचाई पर चले जाते हैं। दुनिया में ज्यादातर सफल लोग किसी जमाने में एवरेज थे। असामान्य काम किया। आपने देखा होगा इन दिनों दुनिया में आर्थिक हालात की चर्चा हो रही है। कौन देश कितना आगे गया, किसकी आर्थिक स्थिति कैसी है। कोरोना के बाद ये बड़़ा मापदंड बन गया है। ऐसा नहीं कि दुनिया के पास अर्थवेत्ताओं की कमी है। वो गाइड कर सकते हैं। ज्ञान बांटने वाले हर गली-मोहल्ले में हैं। विद्वान हैं, जिन्होंने बहुत कुछ किया है। हमने देखा कि भारत आज दुनिया में आर्थिक तुलना में आशा की किरण के तौर पर देखा जा रहा है। आपने दो-तीन साल में देखा होगा कि एवरेज हैं, प्रधानमंत्री को अर्थव्यवस्था का ज्ञान नहीं है। वही देश जिसे एवरेज कहा जाता था, वो आज दुनिया में चमक रहा है। हम इस प्रेशर में ना रहें कि एक्स्ट्राऑर्डनरी नहीं हैं। आप एवरेज भी होेंगे तो कुछ ना कुछ एक्स्ट्राऑर्डनरी होगा। हर किसी को ईश्वर ने अभूतपूर्व क्षमता दी है। उसी को खादपानी देना है।’