टेररिस्टों को टूरिस्ट ही भेजेंगे जहन्नुम! पहलगाम हमले के बाद पहली बार मिला संकेत, पर्यटकों का हौसला बरकरार, पाकिस्तान की उड़ जाएगी नींद

पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भी पर्यटकों का हौसला बरकरार है। सैलानियों ने पीड़ितों को श्रद्धांजलि दी और आतंकवादियों को करारा जवाब दिया। श्रीनगर से पहलगाम तक पर्यटकों ने उत्साह दिखाया, जिससे पाकिस्तान के हौसले पस्त हो रहे हैं। सरकार को सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करनी चाहिए ताकि पर्यटकों का विश्वास बना रहे।

  • पर्यटकों ने पहलगाम पहुंचकर आतंकवादियों को मुंह तोड़ जवाब दिया
  • अभी भी पर्यटन को बढ़ावा देकर पाकिस्तान के होश ठिकाने लाना होगा
  • पर्यटन की स्थिति बेहतर करने के लिए सुरक्षा और दुरुस्त करना जरूरी

नई दिल्ली: पहलगाम हमले के एक हफ्ते के अंदर ही भारतीयों के हौसले ने आतंकवादियों और उनके आकाओं के मंसूबे ध्वस्त कर दिए हैं। पर्यटकों ने जिस तरह से पहलगाम पहुंचकर आतंकी हमले के पीड़ितों को श्रद्धांजलि दी है, वह दहशतगर्दों और मानवता के दुश्मनों को मुंह तोड़ जवाब है। पर्यटकों ने पाकिस्तान और उसके गुर्गों को बता दिया है कि ऐसे हमलों से हम भारतीयों के हौसले नहीं टूटने वाले, बल्कि अब सही मायने में आतंकियों को जहन्नुम भेजने का वक्त आ गया है। श्रीनगर से लेकर पहलगाम तक सोमवार को जिस तरह से सैलानियों ने टूरिस्ट सीजन में अपना पहले वाला जज्बा दिखाया है, उससे भारत की ओर से बिना एक भी गोली चलाए ही पाकिस्तानी हुक्कमरानों के हौसले टूटने शुरू हो चुके हैं। ऐसे में अगर आतंकियों के खिलाफ कोई सीधी कार्रवाई शुरू होती है तो पाकिस्तान का खड़े रह पाना भी मुश्किल हो सकता है।

पहलगाम के पर्यटकों के हौसले से दुश्मन पस्त
पर्यटकों ने जिस तरह से अपना हौसला दिखाया है, उसके बाद जम्मू और कश्मीर में पर्यटन को बढ़ावा देते रहना भी सरकार के लिए आतंकवादियों और सीमा पार बैठे उनके आकाओं को करारा जवाब होगा। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद कश्मीर में डर का माहौल जरूर पैदा हुआ था। बुकिंग भी रद्द होने लगी थीं। लेकिन,पर्यटकों ने आगे बढ़कर जो मनोबल दिखाया है, उसे और बुलंदियों पर लेना जाने के लिए जरूरी है कि सरकार सुरक्षा व्यवस्था को और दुरुस्त करे, ताकि हर पर्यटकों का विश्वास फिर से जीता जा सके। इससे कश्मीर के लोगों की रोजी-रोटी भी बचेगी और देश के बाकी हिस्सों से उनका जुड़ाव भी बढ़ेगा।

कश्मीर की तरक्की पर लगी पाकिस्तानी नजर
कुछ समय पहले तक जम्मू और कश्मीर में हालात तेजी से बेहतर हो रहे थे। 22 अप्रैल की सुबह तक जम्मू और कश्मीर पहले से कहीं ज्यादा सामान्य दिख रहा था। 2018 तक यहां आतंकवाद अपने चरम पर था, लेकिन अब हमले एक तिहाई तक कम हो गए थे। टैक्स से होने वाली कमाई भी दोगुनी हो गई थी। 2014 से 2021 तक आठ वर्षों में निवेश कभी भी 900 करोड़ रुपये तक नहीं पहुंचा था। लेकिन, 2022-23 में यह 2,150 करोड़ रुपये को पार कर गया। अनुमान है कि पिछले वित्तीय वर्ष में यह 5,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इस दौरान जम्मू और कश्मीर में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार भी बनी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रविवार को कहा, ‘लोकतंत्र मजबूत हो रहा था… लोगों की आय बढ़ रही थी, नए अवसर बन रहे थे।’

पर्यटकों के दम पर बुलंद हुआ कश्मीर
इससे पहले पहलगाम की घटना से भविष्य पर सवाल खड़े होने लगे थे। खबरों के अनुसार कश्मीर में 60-90% तक टूरिस्ट बुकिंग रद्द हो गई हैं। एक होटल एसोसिएशन का कहना है कि अकेले अगस्त के महीने के लिए 13 लाख बुकिंग रद्द हुई हैं। हालांकि, पर्यटन किसी भी राज्य के लिए सामान्य स्थिति का पैमाना नहीं है, लेकिन जम्मू और कश्मीर की बात हो, तो यह बहुत मायने रखता है। यह इस केंद्र शासित प्रदेश (UT) के सबसे बड़े उद्योगों में से एक है, जो इसके लगभग 8.5% आमदनी का जरिया है। कश्मीर क्षेत्र के लिए तो यह और भी अहम है। 2021-24 के दौरान जम्मू क्षेत्र में पर्यटकों की संख्या लगभग 90% बढ़ी, लेकिन कश्मीर में यह 425% बढ़कर 6.7 लाख से 35 लाख हो गई। यह कश्मीर के प्रति देश का बहुत बड़ा भरोसा था। इसी तरह विदेशी पर्यटकों की संख्या भी 2021 में सिर्फ 1,614 थी, जो पिछले साल से बढ़कर 43,654 हो गई।

पर्यटन को जीवंत रखने पर फोकस जरूरी
इसलिए, सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए कि कश्मीर एक भी सीजन के लिए भारत के टूरिस्ट मानचित्र पर धुंधला न पड़े। कश्मीरी लोगों की आजीविका खतरे में है। पर्यटन के माध्यम से लोगों के बीच संपर्क बढ़ाना भी जरूरी है, ताकि जो लोग अलग-थलग महसूस करते हैं, उन्हें जोड़ा जा सके। यह हमारे राष्ट्रीय संकल्प की भी बात है। हम चार-पांच आतंकवादियों को कश्मीर को सालों पीछे नहीं धकेलने दे सकते। 2025 का टूरिस्ट सीजन अभी पूरी तरह शुरू भी नहीं हुआ है। गर्मियों की छुट्टियां अभी कुछ हफ्ते दूर हैं, और अमरनाथ यात्रा जुलाई तक शुरू नहीं होती है।

मौत के खौफ से जिंदादिली नहीं मरती
पिछले साल, अप्रैल के अंत तक 3 लाख से ज्यादा पर्यटक पहलगाम आए थे। इस साल भी स्थिति बेहतर दिख रही थी, लेकिन पिछले हफ्ते हुई हत्याओं और पर्यटकों के पलायन के बाद सब बदल गया। लेकिन, जिस तरह से कुछ पर्यटकों ने पहलगाम के पर्यटन स्थलों पर लौटने का साहस दिखाया है, वह हर देशवासी के लिए एक नजीर है। पहलगाम पहुंचने वाले टूरिस्ट के हौसले देखकर टेररिस्ट के हौसले टूटने तय हैं, क्योंकि एक तो उन्हें संदेश मिल चुका है कि मौत के खौफ से जिंदादिली नहीं मरती। बस अब इंतजार है, उस सांप के फन को कुचलने की, जिन्होंने कश्मीरियत को डसने की नापाक चाल चलने की कोशिश की है।

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