राजस्थानी भाषा के स्थान पर हिंदी भाषा लागू करने का अध्यादेश विधान सभा में पारित नहीं हुआ

जयपुर। आरटीआई कार्यकर्त्ता ओम प्रकाश ओझा ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार के विभिन्न विभाग राजस्थानी भाषा को मान्यता सम्बन्धी उनके सूचना के अधिकार सम्बन्धी पत्रों के माध्यम से चाही गई जानकारी को लटकाने और भटकाने का कार्य कर वास्तविक जानकारी उपलब्ध नहीं करवा रही है। ओझा ने बताया कि तत्कालीन राज्यपाल गुरुमुख निहाल सिंह ने 28 दिसम्बर 1956 को राज्य सरकार की सलाह से राजस्थान ऑफिसियल लैंग्वेज एक्ट, 1956 लागू कर राजस्थान की प्रचलित भाषा राजस्थानी को रद्द कर हिंदी भाषा को राज्य की राजकीय भाषा घोषित किया था। यह एक्ट विधान सभा से कभी पारित नहीं होने से अप्रभावी हो गया मगर पिछले 68 वर्षों से प्रदेश के साथ अन्याय हो रहा है। इस अन्याय के खिलाफ अपनी मायड़ भाषा और संस्कृति को बचाने हेतु विभिन्न स्तरों और जनतांत्रिक तरीकों से विरोध प्रकट करते आ रहे है और राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के साथ साथ इस भाषा को राज्य स्तर पर द्वितीय राज भाषा के रूप में मान्यता दिए जाने की मांग करते आ रहे है।

आरटीआई कार्यकर्त्ता ओझा का कहना है राजस्थान विधान सभा 1952 में अस्तित्व में आ चुकी थी। उस दौरान सभी विधाई कार्य प्रचलित राजस्थानी भाषा में हो रहा था। प्राथमिक स्तर पर भी यही भाषा शिक्षण का माध्यम थी। इस स्थिति में राज्यपाल के हस्ताक्षरों से अध्यादेश लाकर भाषा में बदलाव किया गया। इस अध्यादेश को कभी विधान सभा से पारित नहीं किया गया। ओझा ने बताया कि वे राज्य सरकार से लगातार यह जानकारी मांग रहे है कि इसे विधानसभा के माध्यम से बिल लाकर पारित क्यों नहीं करवाया गया। ओझा ने बताया वे संसदीय कार्य विभाग से इस अध्यादेश को पिछले 68 वर्षों में विधानसभा से कब पारित किया गया की जानकारी मांग रहे है। विभाग के पास उक्त अध्यादेश के दस्तावेज उपलब्ध नही है। ऐसी स्थिति में सूचना के अधिकार के तहत मांगी यह जानकारी उपलब्ध नहीं करवाकर अन्य विभागों को पत्र भेजकर लटकाने और भटकाने का कार्य किया जा रहा है।

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