विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बनने में प्रदूषण एक बङी चुनौती-ओझा

मनुष्य की विकृति प्रकृति पर हावी हो गई है- डॉ. कुसुम

जयपुर। मुक्त मंच की 92 वीं संगोष्ठी ‘’बढ़ता जल और वायु प्रदूषण और साँसों का संकट‘’ विषय पर योग आश्रम में परमहंस योगिनी डॉ.पुष्पलता गर्ग के सान्निध्य में सम्पन्न हुई।बहुभाषाविद डॉ.नरेन्द्रशर्मा कुसुम ने अध्यक्षता की। शब्द संसार के अध्यक्ष श्रीकृष्ण शर्मा ने संयोजन किया।

अध्यक्षीय भाषण में डॉ.कुसुम ने कहाकि मनुष्य स्वयं प्रकृति के विनाश का कारण बन रहा है। सृष्टि ने जल-वायु और प्रकृति के अन्य उपादान मंगल हेतू बनाए किन्तु मनुष्य इस विधान का उल्लंघन कर रहा है। जल,वायु प्रदूषण के मुख्य कारण बढती आबादी, बेइन्तहा कटते हरे पेङ हैं। उत्सर्जित गैसों और गुर्द-गुबार से असन्तुलन बढ़ रहा है।हम संविधान की प्रवेशिका की अनदेखी करते हैं।

मुख्य अतिथि आईएएस रिटा.अरुण ओझा ने कहा कि जब तक हर व्यक्ति अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी का पालन नहीं करता प्रदूषण बना रहेगा। यदि शासकीय निकाय अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ढंग से करें तो प्रदूषण थम सकता है पर यह द्विपक्षीय जिम्मेदारी है। हम विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बनना चाहते हैं लेकिन प्रदूषण एक बङी चुनौती है।

गन्दे पानी के कारण स्वास्थ्य लाभ के लिए दवाइयाँ खानी पङती हैं। यह प्रदूषण का परिणाम है। आज आर.ओ. पानी बोटल्ड वाटर 2023 में 312.67 बिलियन डालर का मार्केट हो गया जो 2032 में यह 503.05 बिलियन डॉलर का हो जायेगा।

संयोजकीय वक्तव्य में श्रीकृष्ण शर्मा ने कहा कि गंगा के प्रदूषित जल में 100 फुट पानी में 540 स्तर का फोकल कॉलीफार्म पाया जाता है जो हानिकारक है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के अनुसार गंगा के उदगम, देहरादून, उत्तरकाशी, चमोली, हरिद्वार, टिहरी में 53 सीवर ट्रीटमेंट प्लान्ट अधिकांश समय बन्द पङे रहते हैं। गंगा की सहायक नदियों में काली हिण्डन, रामगंगा, तमस वरुण में भी कोकल कॉलीफॉर्म की मात्रा बहुतायत है। फलतः कार्बन मोनो-ऑक्साईड, नाइट्रोजन ऑक्साइड तथा सल्फर डाई ऑक्साईड्की मात्रा आवश्यकता से अधिक मिली है। घर-घर एयर प्यूरीफायर लगाने,घरों में ग्रीन वाल बनाने, वैण्टीलेशन सिस्टम को हवादार बनाने, डीजल जगह इलैक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग बढ़ाने की जरूरत है।

पूर्व कुलपति डॉ.पी.सी.त्रिवेदी ने कहा कि जब तक हर व्यक्ति पर्यावरणीय शुद्धि के लिए काम नहीं करेगा प्रदूषण रहेगा। जयपुर के सांगानेर की रँगाई छपाई के कारण प्रदूषण से हाल बेहाल है।हमारे मस्तिष्क ही पोल्यूटेड हो गए हैं। हमें विज्ञान को अपनाना होगा।आईएएस रिटा. आर.सी.जैन ने कहा कि ना तो शहरी निकाय और ना ही जनता,कोई मेहनत करना नहीं चाहते और ना कोई ठोस कदम उठाते हैं।

आईएएस रिटा.अब्दुल रज़्जाक पठान ने कहा कि एक तरफ आबादी का विस्फोट हो रहा है,दूसरी ओर हम पुराने ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर हैं। कार्बन डाई ऑक्साइड का भयावहता है जबकि विकसित देश प्रदूषण नियंत्रण के लिए ऊर्जा के परम्परागत साधनों को त्याग चुके हैं और ऐटोमिक एनर्जी, सोलर एनर्जी, हाइड्रो बेस्ड एनर्जी काम में ले रहे हैं। ऊर्जा का प्रतिव्यक्ति खपत अमेरिका में हमसे 50 गुना अधिक है पर वहाँ स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग अधिक हो रहा है। वैज्ञानिक चिन्तक डॉ.एस.सी.गुप्ता ने कहाकि जलवायु की स्वच्छता में व्यक्तिगत सुविधाएँ और स्वार्थ आङे आते है।

अधिवक्ता भारतभूषण पारीक ने कहाकि वायु प्रदूषण के लिए जीवाश्म ईंधन का दहन,औद्योगिक इकाइयों के प्रदूषक, पराली, मीथेन का उत्सर्जन ह्रदय रोगों को बढ़ाताहै।ओद्यौगिक कचरा,घरेलू अपशिष्ट प्लास्टिक कचरा,जलीय पारिस्थितिकी तन्त्र को क्षतिग्रस्त करता है।बाल्कू (अजर्बेजान) सम्मेलन में विकसित देशों द्वारा 1300 अरब डॉलर की बजाय केवल तीन सौ अरब डॉलर दिए जाने पर विवाद में भारत ने पूर्व स्वीकृति देकर भी असहमति प्रकट की है। भारत ने फैसलों को पर्यावरणीय न्याय के खिलाफ बताया है। संगोष्ठी में डॉ. सावित्री रायजादा,फारुक आफरीदी,इन्द्रकुमार भंसाली,सुमनेश शर्मा,यशवन्त कोठारी,लोकेश शर्मा, डॉ. मंगल सोनगरा और मोहम्मद जाबिर ने भी विचार व्यक्त किए। परमहंस योगिनी डॉ. पुष्पलता गर्ग ने धार्मिक ग्रन्थों के परिप्रेक्ष्य में स्वच्छता के महत्व को दर्शाया।

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