1975 में पहली बार पंजाब सरकार ने अनुसूचित जाति के सब कैटेगरी बनाई थी। एक बाल्मीकि समाज के लिए और एक मजहबी सिख समाज के लिए। 30 साल तक यह नियम लागू रहा। 2006 में उच्च न्यायालय ने इसे रदद कर दिया।
नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने 2004 के फैसले को पलट दिया है। सात जजों की पीठ ने 6-1 के बहुमत से आदेश पारित करते हुए कहा है कि मूल और जरूरत मंद को लाभ पहुंचाने के लिए आरक्षण कोटे में भी सब कैटेगरी बनाई जा सकती है। आरक्षण में आरक्षण को लेकर उच्चतम न्यायालय ने आंध्रप्रदेश के एक मामले में 2004 में फैसला देते हुए कहा था कि आरक्षण के भीतर आरक्षण देने का अधिकार राज्यों के पास नहीं है।
पंजाब से शुरू की थी कवायद
1975 में पहली बार पंजाब सरकार ने अनुसूचित जाति के सब कैटेगरी बनाई थी। एक बाल्मीकि समाज के लिए और एक मजहबी सिख समाज के लिए। 30 साल तक यह नियम लागू रहा। 2006 में उच्च न्यायालय ने इसे रदद कर दिया। पंजाब सरकार ने 2010 में फिर कानून बनाया। फिर रदद कर दिया। 2020 में उच्चतम न्यायालय के पांच जजों की बेंच ने ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश मामले में कहा कि इस पर विचार होना चाहिए। इसके बाद फिर मुख्य न्यायाधीश ने सात जजों की एक बेंच बना दी।