एमपीयूएटीः प्रकृति के साथ सामंजस्य ही प्राकृतिक खेती -डाॅ. शर्मा

उदयपुर। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के तत्वाधान में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित जैविक खेती पर अग्रिम संकाय प्रशिक्षण केन्द्र के अन्तर्गत 21 दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम ‘‘प्रकृति के साथ सामंजस्यः प्राकृतिक खेती में अनुसंधान और नवाचार’’ पर अनुसंधान निदेशालय, उदयपुर में पूर्व माननीय कुलपति, डाॅ. उमा शंकर शर्मा की अध्यक्षता में 19 फरवरी 2025 को शुभारम्भ हुआ। इस अवसर पर पूर्व कुलपति डाॅ. उमा शंकर शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्राकृतिक कृषि ही पर्यावरण के अनुकूल है। इस कृषि द्वारा पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के साथ-साथ मृदा स्वास्थ्य में भी बढ़ोतरी होगी। प्राकृतिक खेती में प्रयोग कर रहे घटकों से मृदा में लाभदायक जीवाणुओं की बढ़ोतरी होगी जिससे फसलों उत्पादन में स्थायित्व आएगा। डाॅ. शर्मा ने सभी प्रतिभागियों को 21 दिवसीय प्रशिक्षण के दौरान सभी वैज्ञानिक का आह्वान किया कि अपने-अपने क्षेत्र में जाकर ब्रांड एम्बेसडर की भूमिका निभाये। विदित है कि प्रशिक्षण में 5 राज्यों के 26 वैज्ञानिक भाग ले रहे थे।

डॉ. एस के शर्मा, सहायक महानिदेशक, मानव संसाधन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने अपने उद्बोधन में बताया कि प्राकृतिक कृषि एक तकनीकी ही नहीं अपितु पारिस्थितिकी दृष्टिकोण है जिससे कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाया जाता है। डाॅ. शर्मा ने 5 राज्यों के प्रतिनिधित्व कर रहे प्राकृतिक कृषि की पर प्रशिक्षण ले रहे वैज्ञानिकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि ज्ञान की सघनता एवं प्रशिक्षणों से दक्षता में वृद्धि द्वारा इस कृषि को बढ़ावा दिया जा सकता है साथ ही उन्होंने प्राकृतिक खेती के घटक जीवामृत, बीजामृत, धनजीवामृत, आच्छादन एवं वाष्पा के साथ जैविक कीटनाशियों पर जोर पर दिया। इस अवसर पर विशिष्ठ अतिथि डाॅ. शर्मा ने कहा कि प्राकृतिक कृषि की महत्वता को देखते हुए प्राकृतिक खेती पर स्नातक छात्रों के लिए विशेष पाठ्यक्रम पूरे राष्ट्र में आरंभ किया जा रहा है। इस हेतु सभी विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों, शिक्षकों विषय विशेषज्ञों एवं विद्यार्थियों के लिए प्रशिक्षण आयोजित किये जा रहे हैं।

उन्होंने बताया की महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का प्राकृतिक खेती में वृहद अनुसंधान कार्य एवं अनुभव होने के कारण यह यह विशेष दायित्व विश्वविद्यालय को दिया गया है। प्राकृतिक खेती के विषय में पूरे विश्व की दृष्टि भारत की ओर है ऐसे में पूरे विश्व भर से वैज्ञानिक एवं शिक्षक प्रशिक्षण हेतु भारत में आ रहे हैं ऐसे में हमारा नैतिक दायित्व बनता है कि हम उत्कृष्ट श्रेणी के प्रशिक्षण आयोजित करें। डॉ अरविंद वर्मा, निदेशक अनुसंधान एवं कोर्स डायरेक्टर ने अतिथियों का स्वागत किया एवं प्रशिक्षणार्थीयों को दिये गये प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के बारे में विस्तृत रूप से बताया। डाॅ. वर्मा ने बताया कि पूरे प्रशिक्षण में 49 सैद्धान्तिक व्याख्यान, 9 प्रयोग प्रशिक्षण एवं 4 प्रशिक्षण भ्रमणों द्वारा प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया गया।

उन्होंने प्राकृतिक खेती पर सुदृढ़ साहित्य विकसित करने की आवश्यकता बताई साथ ही इस ट्रेनिंग के रिकॉर्ड वीडियो यूट्यूब व अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से प्रसारित करने की आवश्यकता पर बल दिया जिससे कि वैज्ञानिक समुदाय एवं जन सामान्य में प्राकृतिक खेती के प्रति जागरूकता बड़े एवं इसकी जानकारी सुलभ हो सके।कार्यक्रम में डाॅ. आर. एल. सोनी, निदेशक, प्रसार शिक्षा निदेशालय, डाॅ. सुनिल जोशी, निदेशक, डी.पी. एम. एवं अधिष्ठाता सीटीएआई, डाॅ. मनोज महला, छात्र कल्याण अधिकारी, डॉ. अमित त्रिवेदी, क्षेत्रीय निदेशक अनुसंधान, उदयपुर, डाॅ. रविकांत शर्मा, सहनिदेशक अनुसंधान एवं डाॅ. एस. सी. मीणा, आहरण वितरण अधिकारी एवं राजस्थान कृषि महाविद्यालय के सभी विभागाध्यक्ष तथा वैज्ञानिकगण आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. लतिका शर्मा, आचार्य ने किया।

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