अमेरिका के बयान पर कहा गया कि उनकी जो भी प्रतिक्रिया है, वो आधी और गलत जानकारी पर आधारित है। भारत का संविधान सभी को धार्मिक आजादी देता है।
नई दिल्ली. नागरिकता संशोधन कानून पर अमेरिका की तरफ से कुछ दिन पहले एक प्रतिक्रिया दी गई। जोर देकर कहा गया कि किसी भी देश में मजबूत लोकतंत्र में धार्मिक स्वतंत्रता बनी रहनी जरूरी है। अब अमेरिका की उसी प्रतिक्रिया पर विदेश मंत्रालय की तरफ से दो टूक जवाब दिया गया है। साफ कहा गया है कि ये भारत का आंतरिक मामला है और इसमें किसी दूसरे देश को हस्तक्षेप करने की कोई जरूरत नहीं।
जारी बयान में विदेश मंत्रालय ने कहा कि सीएए देश का आतंरिक मामला है और इसे भारत की परंपरा और मानव अधिकारों को ध्यान में रखकर ही लागू किया गया है। इस कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिंदू, सिख, बौध, पारसी, इसाई समुदाय को सुरक्षित स्थान देने की है। ये नागरिकता देने का कानून है, कोई छीनने का नहीं।
अमेरिका के बयान पर कहा गया कि उनकी जो भी प्रतिक्रिया है, वो आधी और गलत जानकारी पर आधारित है। भारत का संविधान सभी को धार्मिक आजादी देता है। संकट में फंसे लोगों की मदद के लिए उठाए गए किसी भी कदम को वोट बैंक की राजनीति से नहीं देखा जाना चाहिए।
जानकारी के लिए बता दें कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA) 11 दिसंबर, 2019 को संसद में पारित किया गया था। जिसका उद्देश्य पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाई अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देना है। इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है और यही विवाद की वजह भी है। विपक्ष का कहना रहा है कि यह कानून संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन है—जो समानता की बात करता है।