ओलिंपिक फाइनल में पहुंचने वाले सिर्फ दूसरे भारतीय पहलवान बने
सोनीपत। भारतीय पहलवान रवि कुमार दहिया ओलिंपिक के फाइन में पहुंच गए हैं। इसके साथ ही भारत का टोक्यो ओलिंपिक में चौथा मेडल तय कर हो गया है। रवि ने 57 किलोग्राम वेट कैटेगरी के अंतिम 4 मुकाबले में कजाकिस्तान के नूरीस्लाम सनायेव को हराया। इस मैच में जीत हासिल करते ही उन्होंने गोल्ड या सिल्वर में से एक मेडल पक्का कर लिया है। रवि ओलिंपिक के फाइनल में पहुंचने वाले अब तक के सिर्फ दूसरे पहलवान बन गए हैं। उनसे पहले सुशील कुमार 2012 में फाइनल में पहुंचे थे। क्वार्टर फाइनल मुकाबले से एक दिन पहले रवि ने अपने छोटे भाई और चचेरे भाई के साथ वीडियो कॉल पर बात करते हुए कहा था, ‘ऐसा खेल दिखाऊंगा कि दुनिया देखती रह जाएगी…’।
रवि का इस मुकाम तक पहुंचने का सफर आसान नहीं रहा है। उन्होंने और उनके पिता ने इसके लिए कई सालों तक काफी संघर्ष किया है। उनके गांववालों को उम्मीद है कि रवि की कामयाबी से सरकार की नजर वहां के खराब हालात पर जाएगी और स्थिति में सुधार होगा।
अपने गांव के तीसरे ओलिंपियन हैं रवि
रवि कुमार हरियाणा के सोनीपत जिले के नाहरी गांव के रहने वाले हैं। इस गांव से उनसे पहले महावीर सिंह (1980 और 1984 में) और अमित दहिया (2012 में) ओलिंपिक में देश को रिप्रजेंट कर चुके हैं, लेकिन इन दोनों ने मेडल जीतने में कामयाबी हासिल नहीं की थी।
पिता राकेश ने गरीबी और मुश्किलों को पटखनी दी है
रवि मैट पर कुश्ती लड़ें और जीतें इसके लिए उनके पिता राकेश कुमार दहिया ने असल जीवन में गरीबी और मुश्किलों से दो-दो हाथ किए हैं। पट्टे (किराए) के खेतों पर मेहनत करने वाले राकेश हर रोज नाहरी से 60 किलोमीटर दूर दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में बेटे के लिए दूध और मक्खन लेकर जाते थे। इसके लिए वे रोज सुबह 3.30 बजे जागते और पांच किलोमीटर पैदल चलकर रेलवे स्टेशन पहुंचते। ट्रेन से आजादपुर उतरते और फिर दो किलोमीटर दूरी तय कर छत्रसाल स्टेडियम जाते थे।
जब रवि को जमीन पर गिरा मक्खन खाना पड़ा था
लौटने के बाद राकेश खेतों में काम करते। कोरोना के कारण लगाए गए लॉकडाउन से पहले लगातार 12 वर्षों तक उनकी यह दिनचर्या रही। राकेश ने सुनिश्चित किया कि उनका बेटा उनके त्याग का सम्मान करना सीखे। उन्होंने कहा, ‘एक बार उसकी मां ने उसके लिए मक्खन बनाया और मैं उसे कटोरे में ले गया था। रवि ने पानी हटाने के लिए सारा मक्खन मैदान पर गिरा दिया। मैंने उससे कहा कि हम बेहद मुश्किलों में उसके लिए अच्छा आहार जुटा पाते हैं और उसे लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। मैंने उससे कहा कि वह उसे बेकार ना जाने दे उसे मैदान से उठाकर मक्खन खाना होगा।’
रवि जीतेंगे तो गांव में सुधरेगी बिजली की स्थिति
रवि के गांव में अब भी दिन में दो-चार घंटे ही बिजली आ पाती है। पानी की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। रवि के गांववालों को उम्मीद है कि अगर रवि ओलिंपिक मेडल जीतते हैं तो बिजली-पानी की स्थिति में सुधार होगा। उनसे पहले पहलवान महावीर सिंह ने गांव में पशु चिकित्सालय खुलवाया था। महावीर सिंह के ओलिंपिक में दो बार देश का प्रतिनिधित्व करने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल ने उनसे उनकी इच्छा के बारे में पूछा तो उन्होंने गांव में पशु चिकित्सालय खोलने का आग्रह किया था। मुख्यमंत्री ने इस पर अमल किया और पशु चिकित्सालय बन गया।
सुशील के कोच ने सिखाई है कुश्ती
रवि ने कुश्ती के दांवपेंच द्रोणाचार्य अवार्डी सतपाल सिंह से सीखे हैं। सतपाल डबल ओलिंपिक मेडलिस्ट सुशील कुमार के कोच भी रहे हैं। रवि 10 साल की उम्र से ही सतपाल से ट्रेनिंग ले रहे हैं।
वर्ल्ड चैंपियनशिप में मेडल जीत चुके हैं रवि
रवि कुमार 2019 में नूर सुल्तान में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप के ब्रॉन्ज मेडलिस्ट हैं। इसके अलावा उन्होंने एशियन चैंपियनशिप में दो गोल्ड मेडल भी अपने नाम किए हैं। उन्होंने 2015 में वर्ल्ड जूनियर रेसिलिंग चैंपियनशिप में सिल्वर जीता था।