नई दिल्ली। सरकार ने प्याज के एक्सपोर्ट से बैन हटा दिया है। हालांकि, इसके लिए मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस (MEP) 550 डॉलर यानी करीब 45,800 रुपए प्रति मीट्रिक टन तय कर दी है। यानी जो प्याज एक्सपोर्ट की जाएगी उसकी कीमत मिनिमम 45,800 रुपए प्रति मीट्रिक टन यानी एक हजार किलो होना जरूरी है।
यह आदेश आज से ही लागू हो गया है और अगले आदेश तक मान्य रहेगा। इसके अलावा सरकार ने प्याज के निर्यात पर 40% निर्यात शुल्क लगाने का भी फैसला लिया है। पिछले साल दिसंबर में जब प्याज की कीमत 70 से 80 रुपए पहुंच गए थी तब सरकार ने प्याज के एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया था।
तीसरे चरण की वोटिंग से पहले हटा प्याज एक्सपोर्ट बैन
पिछले साल दिसंबर में सरकार ने 31 मार्च 2024 तक प्याज के निर्यात पर रोक लगा दी थी, लेकिन उसके बाद देशों के अनुरोध के आधार पर इसके शिपमेंट की अनुमति दी गई थी। इसके बाद पिछले महीने ही सरकार ने अगले आदेश तक प्याज के एक्सपोर्ट बैन को बढ़ा दिया था।
एक्सपोर्ट बैन बढ़ने के बाद से व्यापारी और किसान, खास तौर पर महाराष्ट्र के किसान एक्सपोर्ट बैन हटाने का आग्रह कर रहे थे। उनका कहना था कि इससे किसानों को बेहतर कीमत पाने में मदद मिलेगी। अब सरकार ने ऐसे समय बैन हटाया है, जब 7 मई को लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण की वोटिंग होने वाली है।
नवरात्रि के बाद तेजी से बढ़े थे प्याज के दाम
अक्टूबर में नवरात्रि के बाद देशभर में प्याज की कीमतें तेजी से बढ़ने लगीं और केवल एक हफ्ते में दोगुने से ज्यादा बढ़ गईं थीं। जिसके बाद सरकार ने कंज्यूमर्स के ऊपर बोझ कम करने के लिए 27 अक्टूबर से नेशनल कोऑपरेटिव कंज्यूमर फेडरेशन (NCCF) और नेफेड जैसे सरकारी बिक्री केंद्रों के जरिए 25 रुपए किलो के रेट से प्याज की बिक्री शुरू की थी।
मध्य प्रदेश भारत का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक
भारत के प्याज उत्पादक राज्यो में महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तरप्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, तमिलनाडू, मध्यप्रदेश, आन्ध्रप्रदेश एवं बिहार प्रमुख हैं। मध्य प्रदेश भारत का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक प्रदेश है। भारत से प्याज का निर्यात मुख्य रूप से मलेसिया, यू.ए.ई., कनाड़ा , जापान, लेबनान एवं कुबेत में निर्यात किया जाता है।
प्याज भारत की राजनीतिक अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा
प्याज हमेशा से भारत की राजनीतिक अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, खासकर जब चुनाव का समय आता है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खुद 1980 के केंद्रीय चुनावों को ‘प्याज का चुनाव’ बताया था।