शिव दयाल मिश्रा
जब से कोरोना महामारी फैली है तभी से बहुत सारी व्यवस्थाओं में बदलाव हुआ है। उन्हीं बदलावों में एक बदलाव रेलवे सेवाओं में भी हुआ है। भारतीय रेल सेवा को आम आदमी के लिए सस्ती और सहज सुलभ सेवाओं में माना जाता रहा है। मगर, इन दिनों यही सहज और सुलभ सेवा का टिकट प्राप्त करने के लिए भारी चक्कर लगाने पड़ते हैं। चक्करों के बाद यात्रा के लिए स्टेशन पर पहुंच भी जाते हैं, फिर भी रेल में सफर नहीं हो पाता। ऐसा हो रहा है आम आदमी के साथ। एक साधारण अनपढ़ या कम पढ़ा लिखा तो इन दिनों रेलवे की यात्रा बिना किसी सहयोगी के कर ही नहीं सकता। सीधे खिड़की से टिकट खरीदा और बैठ गए रेल में, ये सुविधा तो लगभग खत्म है। अब यात्रा के लिए रिजर्वेशन अनिवार्य हो गया है। बेचारा आम आदमी जैसे-तैसे टिकट विंडो पर धक्का खाते-खाते किसी से फार्म भरवा कर अगर टिकट प्राप्त कर भी लेता है। अगर उसे कोच ‘डीÓ का टिकट यात्रा के लिए मिला है तो वह परेशानी पैदा करने वाला होगा। क्योंकि कोच ‘डीÓ सीरियल से तो होते नहीं है। पहले जो जनरल के दो- तीन डिब्बे कुछ आगे और कुछ पीछे हुआ करते थे उन्हें ही कोच ‘डीÓ में बदल दिया गया है। इस कोच में एक, दो, तीन और चार नंबर की बर्थ अलॉट की हुई होती है। जब यात्री स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहुंचता है तो उसे अपने टिकट के अनुसार कोच में बैठने के लिए आगे पीछे दौडऩा पड़ता है। क्योंकि गाड़ी की लंबाई अधिक होने से दूर से नंबर नजर नहीं आता। इसलिए अगर टिकट कोच डी-1, 2 का है और यात्री गाड़ी के इंतजार में आगे खड़ा है. वहीं कोच 1 और 2 आगे आ गये तब तो ठीक, वरना उसे पूरी गाड़ी को पार करते हुए दौड़ कर गाड़ी के बिल्कुल पीछे जाना पड़ता है तब तक गाड़ी निकल जाती है। कई स्टेशनों पर तो कोच संकेतक भी नहीं होते इसलिए इन दिनों ‘डीÓ कोच के यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। परेशानी तो तब और भी बढ़ जाती है जब किसी यात्री के पास सामान हो, कोई बीमार हो या फिर बुजुर्ग हो। उससे तेज चला नहीं जाता और गाड़ी देखते-देखते निकल जाती है। क्योंकि कुछ स्टेशनों को छोड़कर गाड़ी का मात्र दो मिनट का ठहराव होता है। ऐसे में रेलवे प्रशासन को चाहिए कि या तो ‘डीÓ कोच के सारे डिब्बे एक साथ लगाए या फिर टिकट पर अंकित करने की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि यात्रा सुगमता से हो सके।
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