शिव दयाल मिश्रा
कहा और सुना जाता रहा है कि गुजरा हुआ समय लौटकर नहीं आता। मगर इन बातों को झुठला दिया है अफगानिस्तान में हो रहे तालिबानी अत्याचारों ने। अब से 20 वर्ष पहले भी इसी तरह के अत्याचारों से अफगानिस्तान की जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। और आज फिर वही दानव तालिबान फिर से वहां जनता की छाती पर आ बैठा है। चारों तरफ मारकाट हो रही है टीवी पर दिखाए जा रहे फोटो देखे नहीं जा रहे हैं। घरों से खींच-खींच कर आम लोगों जिनमें महिला और बच्चे भी शामिल हैं, को मारा जा रहा है। जो कभी देखा नहीं, सुना नहीं वह सब अफगानिस्तान में हो रहा है। जान बचाने के लिए हवाई जहाज के पहियों में लटकते लोग, खाली हाथ घरों से हवाई अड्डे की ओर भागते लोग, छोटे-छोटे बच्चों का अपने भयभीत मां-बाप से बिछड़ जाना। कहीं अपने परिजनों को आंखों के आगे तालिबानियों द्वारा कत्ल कर दिया जाना। ये सब वहां की जनता किस तरह से सहन कर रही है। क्या बीत रही होगी उनके दिलों पर। मौत से बचने के लिए (हवाई जहाज के पहियों पर लटकते लोग) मौत की गोद में ही भागते लोगों की बदहवास हालत। बातें तो बहुत है यहां लिखने के लिए। मगर मैं जो कहना चाह रहा हूं वो ये है कि किस तरह से ये आततायी लोग आमजनता पर जुल्म ढाकर अपनी बातें मनवाते हैं। सदियों पूर्व के उस समय को याद करो जब इसी प्रकार आततायी भारत में आकर किसी राजा को युद्ध में पराजित करने के बाद वहां की जनता पर अत्याचार करते थे और तलवार के बल पर उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य किया होगा। उस वक्त भयभीत जनता ने अपने प्राणों की रक्षा के लिए सब सहा होगा। हो सकता है उस वक्त जनता ने सोचा होगा कि ऐसा दौर फिर नहीं आएगा और हम वापस हमारे पुराने जीवन में लौट जाएंगे। मगर ऐसा नहीं हो सका। अब तो वे अपने पूर्वजों पर हुए अत्याचारों को भी भूल गए। बल्कि कुछेक तो उनमें से आततायी भी बन गए हैं। आज पूरी दुनिया तालिबानियों के अत्याचारों को मूकदर्शक बनकर देख रही है। सुपर पावर कहलाने वाले अपने बचाव में बयान दे रहे हैं। अफगानिस्तान की जनता की वो हालत हो गई है जैसे कोई भूखा शेर निरीह जानवर पर झपट पड़ा हो। दुनिया के शक्तिशाली देश अपने नफे-नुकसान की गणित में लगे हुए हैं। जबकि उन्हें पहली प्राथमिकता इस दानव को समाप्त करने की होनी चाहिए।
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