हैदराबाद। उप राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने शनिवार को भारतीय भाषाओं के संरक्षण और कायाकल्प के लिए अभिनव और सहयोगपूर्ण प्रयासों का आह्वान किया। उप राष्ट्रपति ने वर्चुअली मातृभाषा संरक्षण पर आयोजित ‘तेलुगू कूटमी’ सम्मेलन को संबोधित करते हुए इस आशय का आह्वान किया। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि भाषाओं को संरक्षित करना और उनकी निरंतरता सुनिश्चित करना केवल एक जन आंदोलन के माध्यम से ही संभव है।
नायडू ने कहा कि हमारी भाषा की विरासत को हमारी आने वाली पीढ़ियों को हस्तांतरित करने के प्रयासों में लोगों को एक स्वर से साथ आना चाहिए। उप राष्ट्रपति ने भारतीय भाषाओं को संरक्षित करने के लिए विभिन्न लोगों की पहलों की चर्चा करते हुए एक भाषा को समृद्ध बनाने में अनुवाद की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने भारतीय भाषाओं में अनुवादों की गुणवत्ता और संख्या में सुधार के प्रयास बढ़ाने का आह्वान किया।
नायडू ने युवाओं के लिए बोली जाने वाली भाषाओं में प्राचीन साहित्य को अधिक सुलभ और संबंधित बनाने की भी सलाह दी। उन्होंने लुप्तप्राय और पुरातन शब्दों को ग्रामीण क्षेत्रों और विभिन्न बोलियों की भाषा में संकलित करने का भी आह्वान किया ताकि उन्हें भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित किया जा सके। नायडू ने आगाह किया कि अगर किसी की मातृभाषा लुप्त जाती है, तो उसकी आत्म-पहचान और आत्म-सम्मान अंततः खो जाएगी। उन्होंने कहा कि हम अपनी विरासत के विभिन्न पहलुओं संगीत, नृत्य, नाटक, रीति-रिवाजों, त्योहारों, पारंपरिक ज्ञान को केवल अपनी मातृभाषा के जरिये ही संरक्षित कर सकते हैं।
इस अवसर पर श्री नायडू ने भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी रमन की हालिया पहल की सराहना की, जिन्होंने एक महिला को अपनी मातृभाषा तेलुगू में अपनी परेशानियों को बताने की अनुमति देकर एक सौहार्दपूर्ण तरीके से 21 साल पुराने वैवाहिक विवाद को हल किया। उन्होंने जब देखा कि उस महिला को धाराप्रवाह अंग्रेजी में बोलने में कठिनाई हो रही है। उन्होंने कहा कि ऐसे उपाय किये जाने चाहिए जिससे लोग अदालतों में अपनी मूल भाषाओं में अपनी समस्याओं को बता सकें और क्षेत्रीय भाषाओं में अदालतें निर्णय भी दे सकें। उप राष्ट्रपति ने प्राथमिक विद्यालय स्तर तक मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने और प्रशासन में मातृभाषा को प्राथमिकता देने के महत्व को भी दोहराया।