भारतीय सेना का फैसला, चीन से तनानती के बीच सीमा से हटाएं जाएंगे 40 साल पुराने लड़ाकू वाहन

भारतीय सेना 80 के दशक के ज्यादातर लड़ाकू वाहनों को अब अपने बेड़े से हटाएगी, सीमावर्ती इलाकों में शुरू हुई प्रक्रिया

नई दिल्ली। भारतीय सेना ( Indian Army ) लगातार सीमा क्षेत्रों में खुदको मजबूत बनाने में जुटी है। यही नहीं केंद्र सरकार भी बजट के जरिए नए आधुनिक हथियारों को सेना में शामिल कर उनकी ताकत को और बढ़ा रही है। इस बीच भारतीय सेना ने बड़ा फैसला लिया है। दरअसल चीन के साथ सीमा क्षेत्रों पर चल रही तनातनी के बीच सेना ने पूर्वी लद्दाख समेत विभिन्न सीमाओं पर तैनात 40 वर्ष पुराने लड़ाकू वाहनों को बदलने का फैसला किया है। खास बात यह है कि इसके लिए प्रक्रिया शुरू भी कर दी गई है। हालांकि बताया जा रहा है कि इन्हें बदलते-बदलते कम के सकम दो से तीन साल का वक्त लगेगा।

यह है भारतीय सेना की रणनीति
हथियारों से लैस वाहनों को हटाने के पीछे भारतीय सेना की खास रणनीति भी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इन वाहनों का निर्माण देश में ही करने का फैसला लिया गया है। इसको लेकर 23 जून को सेना की तरफ से निर्माताओं से प्रस्ताव भी मांगे गए हैं। हालांकि, घरेलू निर्माताओं को छूट दी गई है कि वे इनके निर्माण के लिए विदेशी कंपनियों के साथ भी साझीदारी कर सकते हैं।

ऐसे होते हैं ये वाहन
जिन वाहनों को हटाने की कवायद चल रही है, ये बुलेट प्रूफ वाहन होते हैं। इनमें हथियार भी फिट रहते हैं और युद्ध क्षेत्र में सैनिकों के आवागमन, जवाबी हमलों आदि के लिए बेहद सुरक्षित माने जाते हैं। भारी गोला बारुद के हमले का भी इन पर कोई असर नहीं होता है। हर बटालियन को युद्ध अभियानों के दौरान सैनिकों के सुरक्षित आवागमन के लिए इस तरह के कांबेट व्हीकल दिए जाते हैं।

कांबेट व्हीकल से जुड़े तथ्य

  • 1700 कांबेट व्हीकल सेना के पास
  • 1980 के दशक के हैं ज्यादातर वाहन
  • 0 से 30 डिग्री नीचे और 45 डिग्री से ज्यादा तापमान में भी ये वाहन काम करने में सक्षम
  • 10 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से नदी, नालों, जंगल, रेल आदि कहीं भी चलने में सक्षम
  • 60-65 हजार करोड़ की कुल लागत के चलते इन वाहनों की खरीदी टल रही
  • 75 से 100 वाहन हर वर्ष अब आपूर्तिकर्ताओं को देना होंगे
  • 55 फीसदी वाहन गन यानी बंदूकों से लैस होंगे जबकि बाकी अन्य सुविधाओं से लैस

रूस से 80 के दशक में हुई थी खरीदारी
दरअसल भारतीय सेना ने 1980 के दशक में रूस से बीएमपी व्हीकल खरीदे थे। मौजूदा समय में सेना के पास करीब 1700 ऐसे वाहन हैं। बाद में कुछ वाहन आर्डिनेंस फैक्टरियों ने भी बनाकर दिए थे। तब से यही चल रहे हैं।
लेकिन अब भारतीय सेना इन वाहनों की जगह फ्यूचरिस्टिक इंफेंट्री कांबेट व्हीकल ( FIVC ) खरीदेगी।

बन गए विंटेज व्हीकल
सेना में मौजूद इन व्हीकल्स को अब विंटेज व्हीकल के रूप में जाना जाता है। यही वजह है कि इन्हें बदलने की जरूरत है। लेकिन इनकी बड़ी लागत करीब 60 से 65 हजार करोड़ के बजट के चलते ये खरीदारी लंबे समय से टल रही है। लेकिन अब सरकार ने इन्हें खरीदने का फैसला कर लिया और घरेलू निर्माताओं से प्रस्ताव मांगे हैं।

आपूर्तिकर्ताओं के लिए अनिवार्य होगी ये शर्त
सेना की से घरेलू निर्माताओं को फाइनल किया जाएगा उन आपूर्तिकर्ताओं को हर वर्ष सेना को 75 से 100 वाहन देना होंगे। इसको लेकर बकायदा कांट्रेक्ट साइन करवाया जाएगा। इसमें से 55 फीसदी वाहन गन यानी बंदूक के साथ होंगे, जबकि बाकी अन्य विशेषताओं वाले होंगे।

एक सप्ताह में मांगे गए प्रस्ताव
निर्माताओं से एक सप्ताह में प्रस्ताव मांगे गए हैं। बता दें कि यह वाहन शून्य से 20-30 डिग्री नीचे और 45 डिग्री से भी अधिक तापमान में कार्य करने में सक्षम होते हैं। यही नहीं इन वाहनों को नदी-नालों, जंगलों, रेल जैसी जगहों पर कहीं भी 10 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलाया जा सकता है।

Date:

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

महाराष्ट्र में प्रचंड जीत: मुंबई के बीजेपी दफ्तर में लगा ‘एक हैं तो सेफ हैं’ का पोस्टर, चर्चाएं तेज

महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में महायुति ने महाविकस अघाड़ी को...