स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना संक्रमित बच्चों के लिए जारी किए दिशा निर्देश, जानिए अस्पताल ले जाने से पहले किस टेस्ट की दी सलाह
नई दिल्ली। देशभर में कोरोना महामारी ( Coronavirus ) की दूसरी लहर भले ही कमजोर पड़ रही है, लेकिन अभी खतरा पूरी तरह टला नहीं है। दूसरी लहर ने देश में कोहराम मचा दिया तो वहीं अब तीसरी लहर को लेकर केंद्र सरकार और राज्य सरकारें पूरी तरह सतर्क हैं। दरअसल बताया जा रहा है कि तीसरी लहर का असर सबसे ज्यादा बच्चों पर हो सकता है। यही वजह है कि केंद्र सरकार ने अब कोरोना संक्रमित बच्चों के इलाज के लिए नई गाइडलाइन जारी कर दी हैं। इसके तहत सरकार ने साफतौर पर कहा है कि बच्चों के इलाज में रेमडेसिविर इंजेक्शन का इस्तेमाल नहीं किया जाए। कोरोना महामारी की तीसरी लहर में बच्चों के इस जानलेवा संक्रमण की चपेट में आने की आशंकाओं के बीच केंद्र सरकार ने उनके इलाज के लिए खास दिशानिर्देश जारी किए हैं।
सरकार ने कहा है कि बच्चों के इलाज में रेमडेसिविर इंजेक्शन का इस्तेमाल नहीं किया जाए। साथ ही बच्चों के सीने में संक्रमण की जांच के लिए सीटी स्कैन का भी तर्कसंगत तरीके से उपयोग किया जाए।
6 मिनट का वॉक टेस्ट
इस गाइडलाइन में बच्चों की शारीरिक क्षमता को देखने के लिए 6 मिनट का वॉक टेस्ट लेने की सलाह दी गई है।
बच्चों के इलाज के लिए विस्तृत दिशानिर्देश केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत आने वाले स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय ( DGHS ) की ओर से जारी किए गए हैं।
बयान में कहा गया कि बच्चों की अंगुली में पल्स ऑक्सीमीटर लगा कर उनसे 6 मिनट तक लगातार टहलने को कहा जाए। अगर इस दौरान उनका सेचुरेशन 94 से कम पाया जाता है तो उनमें सांस लेने में तकलीफ देखी जा सकती है। इस आधार पर बच्चों को अस्पताल में भर्ती किए जाने पर निर्णय लिया जा सकता है।
हानिकारक है स्टेरॉयड का इस्तेमाल
DGHS ने बच्चों में लक्षण रहित और मध्यम संक्रमण वाले मामलों में स्टेरॉयड के इस्तेमाल को भी बेहद हानिकारक बताया है। डीजीएचएस ने अस्पताल में भर्ती गंभीर और मध्यम संक्रमण से पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए भी विशेषज्ञ चिकित्सकों की निगरानी में ही स्टेरॉयड का उपयोग करने के लिए कहा है ताकि इसका सही समय पर, सही मात्रा में और पर्याप्त खुराक का ही उपयोग किया जाए।
इसलिए ना दें रेमडेसेविर
रेमडेसेविर इंजेक्शन ना दिए जाने के पीछे डीचीएचएस ने तर्क दिया है कि 3 साल से 18 साल के आयुवर्ग में इसके इस्तेमाल से सफलता मिलने के पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में बच्चों में रेमडेसिविर का इस्तेमाल न किया जाए।
डीजीएचएस ने कोविड-19 को एक वायरल संक्रमण बताते हुए कहा है कि हल्की बीमारी के मामले में एंटीमाइक्रोबायल्स से इसकी रोकथाम या उपचार में कोई मदद नहीं मिलती है। यही वजह है कि हल्के संक्रमण वाले बच्चे या बड़े, सभी को कोई दवाई लेने के बजाय मास्क लगाने, हाथ धोने, सामाजिक दूरी बनाने जैसे उचित कोविड व्यवहार के प्रोटोकॉल का उपयोग करना चाहिए।
मंत्रालय ने ये भी कहा कि जिन बच्चों को अस्थमा है उन्हें इस टेस्ट की सलाह नहीं दी जाती। गाइडलाइन में इस बात का भी जिक्र किया गया कि अगर किसी मरीज में कोविड की बीमारी गंभीर दिखती है तो ऑक्सीजन थेरेपी को बिना देरी शुरू कर दिया जाना चाहिए।