
पिण्डवाड़ा में प्रस्तावित खनन परियोजना पर फूटा ग्रामीणों का आक्रोश
सिरोही। पिण्डवाड़ा तहसील क्षेत्र के ग्रामीणों ने प्रस्तावित चूना पत्थर खनन परियोजना के खिलाफ शुक्रवार को भीमाना ग्राम पंचायत भवन परिसर में आयोजित पर्यावरणीय जनसुनवाई में जोरदार विरोध दर्ज कराया।
वाटेरा, रोहिड़ा, भारजा, भीमाना, तरुंगी, डोलीफली, पिपेला और खाराडोली गांवों से पहुंचे ग्रामीणों ने सामूहिक स्वर में कहा – “खनन से खेत–खलिहान, जंगल, पानी और जीवन उजड़ जाएगा, किसी भी हाल में अनुमति स्वीकार नहीं करेंगे।”
कंपनी का प्रस्ताव, जनता का इंकार
मैसर्स कमलेश मेटा कास्ट प्रा. लि. द्वारा 800.9935 हेक्टेयर क्षेत्र में खनन का प्रस्ताव रखा गया है। लेकिन ग्रामीणों ने साफ चेतावनी दी कि यदि प्रशासन ने स्वीकृति दी तो उग्र आंदोलन होगा और इसकी पूरी जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होगी।
जनसुनवाई बनी विरोध का मंच
जनसुनवाई में भारी संख्या में ग्रामीणों ने एकजुट होकर व्यक्तिगत और सामूहिक आपत्तियाँ दर्ज करवाईं।
एडीएम राजेश गोयल ने कहा – “आपत्तियाँ उसी रूप में दर्ज कर ली गई हैं, पूरी रिपोर्ट उच्च स्तर पर भेजी जाएगी।”
ग्रामीणों का आरोप है कि –
सूचना छिपाकर सुनवाई गुप्त रूप से करवाई गई।
जिम्मेदार अधिकारी और कुछ नेता निजी कंपनी के प्रभाव में हैं।
क्षेत्र की जनता को अंधेरे में रखकर पर्यावरण व भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है।
क्यों है विरोध?
ग्रामीणों ने खनन परियोजना से होने वाले खतरों को विस्तार से गिनाया –
पर्यावरण और स्वास्थ्य पर सीधा प्रहार होगा।
धूलकण (PM2.5 और PM10) से दमा, कैंसर और सांस की बीमारियाँ बढ़ेंगी।
डीज़ल चालित भारी वाहनों का धुआं हवा को विषाक्त करेगा जिससे कैंसर जैसी बीमारी फेल सकती है।
गर्भवती महिलाएँ, बच्चे और बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।
खेती और पानी पर संकट
खेतों पर धूल जमकर उत्पादन घटाएगी, जमीन बंजर होगी।
भूजल स्तर और नीचे जाएगा, कुएँ–बावड़ियाँ सूखेंगी।
सिंचाई और पेयजल व्यवस्था ठप हो जाएगी।
जंगल और जीव-जंतु उजड़ेंगे
यह क्षेत्र संवेदनशील जैव विविधता क्षेत्र है।
तेंदुए, सियार, खरगोश और दर्जनों पक्षियों का प्राकृतिक आवास नष्ट होगा।
पेड़ों की कटाई और ब्लास्टिंग से मिट्टी की उपजाऊ परत खत्म हो जाएगी।
सांस्कृतिक–धार्मिक धरोहर पर खतरा।
प्रस्तावित क्षेत्र की पहाड़ियाँ केवल चट्टानें नहीं, बल्कि आस्था और परंपरा की पहचान हैं।
खनन से इनका विनाश सांस्कृतिक क्षति होगी।
आदिवासी समाज पर असर
यह क्षेत्र ट्राइबल सब-प्लान (TSP) में आता है।
आदिवासी परिवार कृषि और पशुपालन पर निर्भर हैं, खनन से उनकी आजीविका छिन जाएगी।
पेसा कानून 1996 की भावना का सीधा उल्लंघन होगा।
संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
ग्रामीणों का कहना है कि –
अनुच्छेद 21 (स्वच्छ जीवन का अधिकार),
अनुच्छेद 48-A (पर्यावरण व वन्यजीव संरक्षण),
अनुच्छेद 51-A(g) (पर्यावरण की रक्षा नागरिक का कर्तव्य)
सभी की खुलेआम अनदेखी हो रही है।
क्या बोले ग्रामीण प्रतिनिधि
हेमेंद्र सिंह, सरपंच भीमाना – “ कहा कि में गांव के साथ हूं पंचायत ने कोई NOC नहीं दी” जो गांव चाहेगा हो हीं होगा।
पुखराज प्रजापत, सरपंच भारजा – “हमारे क्षेत्र में हम खनन नहीं होने देंगे ग्रामीणों के साथ ग्राम पंचायत के साथ स्वीकृति नहीं देने के विरोध में
आपत्ति दर्ज करवाई है।
सविता देवी, सरपंच वाटेरा – “गांव की जनता एकजुट है, यह परियोजना रद्द करवाई जाएगी।” किसी भी हालत में हम गांव के क्षेत्र में खनन नहीं होने देंगे।
अब सबसे अहम प्रश्न यह है कि –
क्या जिला प्रशासन और राज्य सरकार जनता की आवाज़ को गंभीरता से सुनेगी?
क्या सूचना दबाकर निजी कंपनी को लाभ देने वाले जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई होगी?
क्या इस संवेदनशील क्षेत्र को भविष्य में भी खनन मुक्त घोषित किया जाएगा? इन तमाम सवाल पर जिम्मेदारो को ध्यान देना होगा।