बीकानेर। धर्म विलंब नहीं चाहता, धर्म समझ में आ गया तो अंगीकार करो, आत्मसात करो, स्वीकार करो, क्योंकि समय लौटकर नहीं आता है। समय रहते बुद्धी का, शक्ति का सदुपयोग करो और काल का भरोसा तो कभी मत करो, ना जाने कब सामने आकर खड़ा हो जाए। इसलिए धर्म समझ में आ जाए तो देर नहीं करनी चाहिए। यह सद्विचार 1008 आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने अपने नित्य प्रवचन में व्यक्त किए। महाराज साहब ने जिन शासन की विशेषताएं बताते हुए कहा कि जिन शासन इसलिए महान है, क्योंकि जिन शासन में चतुर्विद संघ चलता है। यह चतुर्विद साधु, साध्वियां, श्रावक और श्राविकाऐं हैं। जिन शासन में क्रोध रहित साधु हैं, मान रहित साध्वियां है और लोभ रहित श्रावक और मोह रहित श्राविकाऐं हैं। जो धर्म के प्रति समर्पित हैं, यही कारण है कि जिन शासन खूब बढ़ रहा है।
महाराज साहब ने क्रोध पर नियंत्रण के उपाय बताते हुए कहा कि संसारी को तो बात-बात पर क्रोध आ जाता है। लेकिन क्रोध को शांत करने का प्रयास करना चाहिए। यह उपशम भाव से शांत किया जा सकता है। महाराज साहब ने कहा कि जिन शासन का साधु क्रोध रहित होता है। अगर किसी साधु को क्रोध आ रहा है तो इसका मतलब यह है कि उसमें अब तक संयम रमा नहीं है।
महासती श्री नानूकंवर जी म.सा. का स्मरण किया
श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ की महासती श्री नानूकंवर जी म.सा. की पुण्यतिथि पर उनका स्मरण दिवस शुक्रवार को बागड़ी मोहल्ला स्थित सेठ धनराज ढढ्ढा की कोटड़ी में मनाया गया। महाराज साहब ने श्री नानूकंवर म.सा. को याद करते हुए नारी गुणों पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि नारी संनारी कैसे बने और कब बने। इसका व्याख्यान करते हुए कहा कि जो माता- पिता के प्रति समर्पित भाव रखती है, सास-श्वसुर के प्रति सेवा का भाव रखे, संतान के लिए संस्कारों की विरासत देती हो, पति के प्रति शील और सदाचार का भाव रखती है तथा साधर्मी के प्रति सहयोग का भाव रखती है, वह नारी संनारी कहलाती है। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ की महासती नानूकवंर जी म.सा. जब तक संसारी बनकर रही उनमें यह सब भाव थे। जब वे संघ से जुड़ी तब उन्होने साधर्मी के भाव रखकर संघ की सेवा की थी, इसलिए वे एक संनारी थीं। वे धर्म और संघ के प्रति जीवन पर्यन्त निष्ठावान रहीं, उन्होंने संघ के प्रगति के लिए सदैव कामना की थी। आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने उनके संस्मरण उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को बताते हुए कहा कि अनुशासित, मरुधरा सिंहनी महासती श्री नानूकंवर जी म.सा. सेवा, समर्पण, शील और संस्कारों के भावों से भरी हुई थी। उनके व्यक्तितत्व एवं कृतित्व को देख और जान कर यह कह सकता हूं कि वह जिन शासन की प्रभाविका हैं और विभूति थी। वे जब तक गृहस्थ में रहीं, तब तक माता-पिता के प्रति उनमें सेवा भाव था। विवाह पश्चात सास- श्वसुर के प्रति सहयोग का भाव रहा, हालांकि उनका वैवाहिक काल बहुत छोटा रहा और उनके कोई संतान नहीं थी लेकिन जब तक गृहस्थ में रहीं पति के प्रति उनके सेवा के भाव रहे और जब वे संघ से जुड़ीं तो उनमें साधर्मी का भाव सदैव बना रहा। आचार्य श्री ने एक अन्य संस्मरण सुनाते हुए बताया कि जब संघ का विघटन हुआ था, तब बीकानेर में हम संतो के साथ आए थे। जहां सबसे पहले संतो ने उनके मुख से मंगलवाणी सुनी। तब उन्होंने कहा था कि कदम आगे बढ़ाया है, पीछे मत हटना और उसके बाद जब वे अस्वस्थ थीं और संथारा ले चुकी थी। तब उनसे मैंने सुखसाता पूछते हुए कहा कि अब कैसे लग रहा है। तब उन्होंने बहुत बड़ी बात कही थी कि आज अच्छा है और कल और अच्छा होगा। यह दृष्टिकोण उनका अपने प्रति नहीं संघ के प्रति था और आज देखने में आ रहा है, उनकी भावना थी और संघ खूब आगे बढ़ रहा है। आगे भी महापुरुषों के आशीर्वाद से खूब बढ़ेगा।
सामूहिक आयम्बिल तप किया
आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. की प्रेरणा से महासती नानूकंवर जी म.सा. की पुण्यतीथि पर शुक्रवार को श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक- श्राविकाओं ने बड़ी संख्या में सामूहिक आयम्बिल तप किया।
धर्म समझ में आ जाए तो देर नहीं करनी चाहिए- 1008 आचार्य श्री विजयराज
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