54 दिव्यांग – निर्धन जोड़े बने जन्म जन्म के साथी


  • 54 दिव्यांग जोड़ों की जिंदगी हुई रोशन, सुख दुःख के साथी बन जीवन बनाएंगे परिपूर्ण
  • नारायण सेवा संस्थान से गृहस्थी के सामान व मंगल आशीर्वाद के साथ हुई भावपूर्ण विदाई

उदयपुर। सपने देखना किसे अच्छा नहीं लगता और जब कोई जीवन की दशा और दिशा बदलने वाला सुनहरा सपना साकार हो जाए तो उसी खुशी को बयां करना आसान नहीं होता। एक ऐसा ही सुंदर सलौना सपना दिव्यांग एवं गरीब परिवारों के युवक-युवतियों की आंखों में बसा था, लेकिन न होने से उनका मन प्राय:दुखी रहता था। लेकिन वह सपना नारायण सेवा संस्थान के माध्यम से रविवार को सेवामहातीर्थ, बड़ी में 40वें भव्य नि:शुल्क विवाह समारोह में जन्म-जन्म का साथी पाकर जीवन्त हो गया तो उनकी खुशी का ठिकाना न था।

बैसाखी या किसी और के सहारे के बिना उठ नहीं सकते, चल नहीं सकते, देख नहीं पाते, मगर एक -दूसरे का साथ निभाते हुए जिंदगी के सफर को खुशनुमा तो बना ही सकते हैं, कुछ ऐसे ही भावों के साथ 54 दिव्यांग एवं निर्धन जोड़ों ने पवित्र अग्नि के सात फेरे लेकर गृहस्थ जीवन का सफर शुरू किया। मन उमंगों से तरंगित हुआ तो दिव्यांगता और गरीबी का दंश पीछे छूट गया। देश भर से आए हजारों अतिथियों की मौजूदगी में शाही इंतजामों के बीच नाते -रिश्तेदारों, मित्रों और धर्म माता-पिता ने जोड़ों पर असीम स्नेह लुटाते हुए इन लम्हों को और भी यादगार व भावुक बना दिया।

संस्थान संस्थापक पद्मश्री अलंकृत श्री कैलाश ‘मानव’, सह संस्थापिका कमला देवी, अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल, निदेशक वंदना अग्रवाल, ट्रस्टी निदेशक जगदीश आर्य, देवेंद्र चौबीसा, राजेंद्र कुमार, पलक अग्रवाल सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों से आए 1500 से अधिक अतिथियों व कन्या दानियों की उपस्थिति व सानिध्य में हुए वर्ष के इस दूसरे सामूहिक विवाह समारोह में आशीर्वाद, आशीर्वचन और अपनेपन की अद्वितीय झलक देखने को मिली। प्रातः शुभ मुहूर्त में नीम की डाली से तोरण की परम्परागत रस्म का निर्वाह किया। इसके बाद भव्य पण्डाल में गाते -झूमते हजारों लोगों के बीच नव-युगल ने एक-दूसरे के गले में वरमाला डाली और तन- मन से एकाकार होने की परस्पर मौन -स्वीकृति दी। इस दौरान जोड़ों पर गुलाब पुष्प की पंखुरियाँ की वर्षा होती रही।
इसके बाद भव्य पाण्डाल में निर्मित 54 वेदी -अग्निकुंड पर जोड़ों का आचार्य ने वैदिक मंत्रों और विधि- विधान से विवाह संपन्न करवाया। यह संपूर्ण प्रक्रिया मुख्य आचार्य सत्यनारायण के निर्देशन में 54 सह आचार्य की टीम द्वारा संपन्न हुई।

उपहार एवं विदाई :- विवाह विधि संपन्न होने पर नव-युगल को संस्थान व अतिथियों की ओर से नवगृहस्थी के लिए आवश्यक सामान एवं उपहार स्वरूप स्वर्ण व रजत आभूषण प्रदान किए गए। जिसमें मंगलसूत्र, चूड़ी, लोंग, कर्णफूल, अंगूठी, रजत पायल, बिछिया आदि शामिल थे जब कि गृहस्थी के सामान में गैस चूल्हा, पलंग -बिस्तर, अलमारी, संदूक, बर्तन, सिलाई मशीन, पानी की टंकी आदि हैं। जोड़ों को दोपहर 2 बजे मंगल आशीर्वाद के साथ डोली में विदाई हुई तथा संस्थान के वाहनों से उनके शहर/गांव तक पहुंचाया गया।


Jagruk Janta

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