आपका गौरव है आंचल, घूंघट और गोद, इन्हें बचाके रखना देवियो!

शिव दयाल मिश्रा
आज हमारी संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति हावी होती जा रही है। पाश्चात्य संस्कृति के रंग में रंगे युवक-युवतियां आधुनिक कहलाने के चक्कर में अपनी मूल संस्कृति को छोड़ते जा रहे हैं। उन्हें अपनी मूल संस्कृति ऑड लगने लगी है। हमारी परंपरा पुरातनपंथी, दकियानूसी नजर आती है। मगर, उन्हें ये नहीं मालूम कि हमारी संस्कृति मान-मर्यादा और संस्कारों की आधारशिला है। पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने वालों को तो अपने मां-बाप भी बोझ लगने लगे हैं। उन्हें वृद्धाश्रम का रास्ता दिखाने लगे हैं। ये सब क्यों हो रहा है हम हमारी मूल संस्कृति से दूर और बहुत दूर होते जा रहे हैं। उसी का परिणाम है आज परिजनों में प्रेम और प्यार का अभाव हो गया है। आज हम हमारे देश में महिलाओं से पूछें कि आपके पास आंचल है, नहीं है। दुपट्टा है क्या, नहीं है। कहां गए ये। अरे इन्हें बचाके रखो। बच्चों के पसीने इसी आंचल से पूंछे जाते हैं। धूप में अगर जा रहे हैं तो ये बच्चों का छाता बन जाता है। बिछड़े हुए अपनों की जब याद आती है तो ये आंचल ही आंसुओं के सागर को समेटता है। जब पत्नी अपने पति को या परिजनों को भोजन परोसती है तब ये ही आंचल उस थाली को पोंछता है। जब ये आंचल परिवार और कुल के बड़ों के सामने सिर को ढंक लेता है तो वे धन्य हो जाते हैं ऐसी कुलवधुओं को पाकर। इसी आंचल को पकड़ कर बच्चों का बचपन बीतता है। छीनों मत बच्चों से इस आंचल को। क्योंकि बच्चा जब मां के आंचल को पकडक़र चलता है तो उसे दुनिया में किसी का कोई भय नहीं लगता है। उसे निर्भय करता है ये आंचल। घूंघट को तो हमारे नेताओं ने मंचों से आवाज लगा-लगाकर हटाने को कहा है। उन्हें इस आंचल की गरिमा और गौरव के बारे में जानकारी ही नहीं है। अब तो मां की गोद भी लुप्तप्राय: होती जा रही है। अब तो मां को ये छोटे बच्चे बोझ नजर आने लगे हैं। कई माताएं छोटे-छोटे दुधमुंहे बच्चों को छोटी सी तीन पहिये या चार पहियों की खिलौना गाडिय़ों में बैठाकर या लिटाकर सडक़ों पर या गार्डनों में घुमाते हुए नजर आ जाएंगी। कहां गई वो मां की ममता। इसलिए हमारी शक्ति स्वरूपा मातृशक्ति को चाहिए कि आंचल, घूंघट और गोद आपका गौरव है। इसे यूं ही ठुकराओ मत। इससे आपको मान-सम्मान, प्रतिष्ठा और प्यार सब मिलता है। आपके साथ-साथ आपके परिवार का भी सिर गर्व से ऊंचा होता है। इसे सहेज कर रखो। ये बुराई नहीं है। ये मर्यादा है।
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