शिव दयाल मिश्रा
भारतीय संस्कृति सनातन संस्कृति कहलाती है। आज उस संस्कृति का अविभाज्य कर्म मंदिर में जाकर प्रभु की पूजा-अर्चना तो आम आदमी लगभग भूल ही गया है। कभी-कभार किसी वार-त्योहार को अगर मंदिर जाना हुआ तो गये, वरना तो सब कहने लगे हैं कि भगवान तो मंदिर में नहीं, हमारे हृदय में है। अगर हृदय में है तो फिर बताओ रामभक्त हनुमानजी की तरह अपना सीना फाड़कर। मेरा कहने का तात्पर्य ये है कि आलस्य वश या काम का बहाना लगाकर दिनचर्या से मुंह मोडऩा ठीक नहीं है। क्योकि शाों में कहा गया है कि हजार काम छोड़कर भी भगवान को भजना चाहिए। मंदिर जाने के कई फायदे हैं जो विज्ञान की कसौटी पर खरा उतर चुके हैं। मंदिर में जाने से हमारे अंदर नम्रता आती है। वहां कोई मिलता है उसका झुककर अभिवादन किया जाता है। बड़े मिलते हैं तो उनको प्रणाम किया जाता है जिससे हमें आशीर्वाद प्राप्त होता है। वहां जाने पर तुलसी, चंदन और पंचामृत आदि ग्रहण किया जाता है जिससे हमारे शरीर को रोग प्रतिरोधात्मक उर्जा प्राप्त होती है। ईश्वर में श्रद्धा उत्पन्न होती है। धार्मिक स्थलों पर जाने से वहां लोगों से मिलना-जुलना होता है। दिन की शुरुआत शांत मन से होती है जिससे हमारा दिन शांतिपूर्वक गुजरता है। झूठ और प्रपंचों से बचने की शक्ति प्राप्त होती है। जीवन में बुजुर्गों के अनुभव को अगर उतारा जाए तो पता चलता है कि ईश्वरीय विश्वास के साथ बड़ी-बड़ी समस्याओं से आसानी से मुक्ति मिल जाती है। आजकल डिप्रेशन शब्द बहुत चर्चा में आने लगा है। सात्विक जीवन और ईश्वर में विश्वास रखकर निर्मल मन से रहें तो डिप्रेशन के कारण होने वाली आत्महत्या जैसी घटनाओं से बचा जा सकता है। इसलिए हमें हमारी संस्कृति से दूर नहीं होना चाहिए। यह संजीवनी है। इसे गटकते रहना ही श्रेयस्कर है। समाप्त
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