शिव दयाल मिश्रा
सरकारी महकमों में छोटी से लेकर बड़ी नौकरी के लिए शैक्षणिक मानदंड होते हैं और उनको पार करने के बाद ही उसमें नियुक्ति संभव है। आजकल तो इतनी ज्यादा प्रतिस्पर्धा हो गई है कि चपरासी के लिए 10 पदों पर नियुक्ति करनी होती है तो हजार तक आवेदन आ जाते हैं। बड़ी-बड़ी नियुक्तियों के लिए लाखों लाख प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठते हैं और कई दौर की परीक्षाओं को पास करते हुए नियुक्ति तक पहुंचा जाता है। मगर राजनीतिक पदों पर नियुक्ति के लिए किसी भी प्रकार की शैक्षणिक योग्यता की बाध्यता नहीं है। हमारे लोकतंत्र में एक अंगूठा छाप अनपढ़ व्यक्ति भी सर्वोच्च पद पर पहुंच सकता है। ये सोचने वाली बात है कि एक चपरासी जिसे या तो ऑफिस में पानी पिलाना होता है या फिर एक फाइल को इस टेबल से उस टेबल तक पहुंचाना होता है उसमें भी न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता की जरूरत होती है तो फिर हमारे संविधान में एक अनपढ़ व्यक्ति को सर्वोच्च पद पर पहुंचने के लिए कोई शैक्षणिक मानदंड क्यों नहीं है? जिसके कारण जनता द्वारा चुना हुआ प्रतिनिधि नौकरशाही के आगे बौना साबित होता है वह सिर्फ नौकरशाहों की कठपुतली ही बन कर रह जाता है, जनता के काम सही ढंग से नहीं हो पाते हैं। हम देखते हैं कि विधानसभा और लोकसभा में बहुत से जनप्रतिनिधि कभी अपने क्षेत्र की बात नहीं उठाते। उठाएं कैसे। उन्हें सदन में बोलना तक नहीं आता। आंकड़े अगर सचिव आदि बताते हैं तो वे उन्हें वहां पढ़ नहीं पाते। इसलिए जनप्रतिनिधियों को चुनाव लडऩे के लिए कुछ न कुछ न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तो होनी ही चाहिए।
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चुनाव लडऩे के लिए कुछ शैक्षिक मानदंड तो हो!
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