शिव दयाल मिश्रा
पिछले डेढ़ सालों से दुनिया कोरोना महामारी से त्रस्त है। कई देश कोरोना से निजात पाने की घोषणा कर चुके हैं मगर कुछ समय पश्चात ही सुनने में आता है कि वहां नए रूप में कोरोना ने फिर से दस्तक दे दी है। वहां की सरकारें फिर से लॉकडाउन लगाने पर मजबूर हो जाती है। हमारे देश में भी सरकार और जनता कोरोना से लड़ रही हैं, मगर कोरोना है कि जाने का नाम ही नहीं ले रहा है। अभी तो पूरी तरह दूसरी लहर भी समाप्त नहीं हुई है कि तीसरी लहर के चर्चे होने लग गए हैं। तीसरी लहर की चर्चाओं के बीच छोटे बच्चों के प्रति मां-बाप के दिमाग में डर बैठने लगा है। तो क्या वाकर्ई ऐसा होगा। तीसरी लहर आएगी। तीसरी लहर क्यों आएगी। तीसरी लहर तब आएगी जब हम लापरवाह होकर घर से निकलने लगेंगे। कोरोना को हमें ऐसे ही समझना चाहिए जैसे एक चीता जंगल में अपने शिकार की तलाश में झुरमुटों में अथवा किसी ओट में छुप कर बैठा रहता है और जैसे ही शिकार उसके निशाने पर आता है उसकी गर्दन दबोच लेता है। शिकार छटपटाता रहता है मगर चीता उसे नहीं छोड़ता। ठीक यही स्थिति आमजनता की है। जैसे-जैसे सरकार थोड़ी ढील दे रही है और चेतावनी भी दे रही है कि कोरोना की गाइड लाइन के अनुसार ही चलो। लेकिन जनता तो लॉकडाउन में मिली छूट को ऐसे समझ रही है जैसे किसी जेल से छूटने की कैदी को सूचना मिली हो। आम आदमी गाइड लाइन को भूलकर न मास्क लगा रहा है और न ही दो गज की दूरी। दो गज की दूरी छोडि़ए घर से निकलने के बाद बाजारों में धक्का-मुक्की दिखाई दे रही है। ऊपर से सैनेट्राइज के तो कहीं दर्शन ही नहीं है। जबकि हर आदमी के पास सैनेट्राइज की एक छोटी शीशी होनी ही चाहिए। उपरोक्त तीनों गाइड लाइनों का पालन होता दिखाई नहीं दे रहा है। एक सप्ताह से मिली आंशिक छूट के बाद लोगों का बेपरवाह होकर सड़क और बाजारों में लापरवाही देखने को मिल रही हैै उससे तो लगता है कि पिछले महीनों में आक्सीजन की कमी, दवाओं की किल्लत, जलती चिताओं की तस्वीर, जवान लोगों की मौत और छोटे-छोटे बच्चों के मां-बाप कोरोना की भेंट चढ़ चुके हैं। इतना कुछ खो देने के बाद भी आमजनता कोरोना के प्रति घोर लापरवाह है। ऐसे में सरकार क्या करेगी। इसलिए लापरवाह होकर कोरोना को दावत मत दो। वह तो अपने शिकार की तलाश में घात लगाए बैठा है।
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