जन्म दिन की बधाईयों से बदरंग होता शहर!


जिस दिन मनुष्य पृथ्वी पर जन्म लेता है उसी दिन से उसके लिए गीत, बधाईयां, निछावरी, ईनाम, बख्शीश आदि देना प्रारंभ हो जाता है। और ये सिलसिला उसकी मृत्यु पर्यन्त चलता ही रहता है। हां उसके स्वरूप अलग-अलग हो जाते हैं। कहीं उत्सव तो कहीं गाना-बजाना तो कहीं पार्टी और कहीं पोस्टर। आजकल किसी भी नेता को अपनी पार्टी के मुखिया को अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना होता है तो वह अपने समर्थकों के साथ उससे मिलने जाता है। जिससे उसके मुखिया को ये अंदाजा हो जाए कि इस व्यक्ति के समर्थन में कितनी ताकत है। इसी प्रकार आजकल जन्मदिन की शुभकानाओं का प्रचलन तेजी से चल रहा है। और चलना भी चाहिए क्योंकि ये अपने व्यक्तिगत संबंधों को उजागर करता है। लेकिन आजकल एक नेता से दूसरे नेता के लिए अपनी आस्थाएं प्रदर्शित करने का माध्यम भी ये पोस्टर हो गए हैं। अधिकांश लोग उगते सूर्य को नमस्कार करते हैं। अगर सूर्य अस्ताचल की ओर जाता हुआ दिखाई देता है तो लोग उसको नमस्कार नहीं करते, बल्कि उसको डूबते हुए (सन सेट) देखने के लिए टकटकी लगाए रहते हैं। खैर, अपन बात कर रहे थे कि जन्म दिन की बधाईयों की। तो आजकल ये बधाईयां और शुभकामनाओं के लिए शहर में चारों तरफ पोस्टर और बड़े-बड़े होर्डिंग अनायास ही नजर आ जाएंगे। छुटभैया नेता से लेकर पार्षद, विधायक, सांसद और मंत्री, मुख्यमंत्री, भावी मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के लिए शुभकामनाओं के होर्डिंग और पोस्टर हर सडक़, चौराहा और मकानों के ऊपर लगे हुए दिखाई दे जाएंगे। इन पोस्टरों से शहर की खूबसूरती चौपट हो तो हो। बाहर से आने वाले पर्यटक क्या कहेंगे इसकी इन पोस्टरबाजों को बिल्कुल भी परवाह नहीं है। इन पोस्टरों के माध्यम से लोग आस्था का पाला बदलने के संकेत भी दे देते हैं। जिस नेता में ऐसे पोस्टरबाजों की आज आस्था है वही ऐसे पोस्टरों के माध्यम से अपनी आस्था बदलने का संकेत दे देता है। हालांकि सभी समाज के लोग अपने नेता को बधाई देने के लिए पोस्टर चिपकाते हैं, मगर अधिकांशत: नेताओं को दी जाने वाली शुभकामनाओं के पोस्टर ज्यादा दिखाई पड़ते है।
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