सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को निर्देश, दिव्यांगों के लिए डिजिटल KYC बनाएं आसान

सुप्रीम कोर्ट ने आज बुधवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि डिजिटल केवाईसी (Know Your Customer) प्रक्रिया को दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सुलभ बनाया जाए।

न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने एसिड अटैक पीड़ितों और दृष्टिबाधित व्यक्तियों की याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया, जिसमें यह मांग की गई थी कि ई-केवाईसी प्रक्रिया उनके लिए बेहद कठिन है। कोर्ट ने कहा कि डिजिटल पहुंच का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के अंतर्गत आता है और इसे अनुच्छेद 14, 15 और 38 के साथ मिलाकर पढ़ा जाए तो राज्य का यह दायित्व बनता है कि वह सभी डिजिटल सुविधाओं को समान रूप से सभी नागरिकों के लिए उपलब्ध कराए, विशेषकर उन लोगों के लिए जो सामाजिक रूप से वंचित या दिव्यांग हैं।

कोर्ट ने कहा कि आज के डिजिटल युग में “डिजिटल पहुंच” केवल नीति का विषय नहीं रही, बल्कि यह एक संवैधानिक आवश्यकता बन गई है। यह नागरिकों को गरिमापूर्ण जीवन, आत्मनिर्भरता और सार्वजनिक जीवन में समान भागीदारी का अवसर देने के लिए जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने 62 पृष्ठों के फैसले में स्पष्ट रूप से कहा कि अब सरकार की जिम्मेदारी है कि वह समावेशी और सुलभ डिजिटल व्यवस्था बनाए। इस फैसले में केंद्र सरकार और संबंधित एजेंसियों को कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए गए हैं। सभी रजिस्टर्ड संस्थाएं (सरकारी और निजी दोनों) निर्धारित एक्सेसिबिलिटी मानकों का पालन करें और प्रत्येक विभाग में डिजिटल सुलभता के अनुपालन की निगरानी के लिए एक नोडल अधिकारी नियुक्त करें। इन संस्थाओं को अपनी वेबसाइटों और मोबाइल एप्लिकेशन का समय-समय पर ऑडिट कराना होगा और किसी भी नए अपडेट से पहले दृष्टिबाधित उपयोगकर्ताओं को परीक्षण प्रक्रिया में शामिल करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश भी दिया कि डिजिटल केवाईसी प्रक्रिया में ऐसे वैकल्पिक और समावेशी तरीके अपनाए जाएं जिनमें आंख झपकाने जैसी बाधाएं न हों, क्योंकि यह तरीका सभी दिव्यांगों के लिए उपयुक्त नहीं है। RBI को यह भी स्पष्ट करना होगा कि वीडियो-आधारित केवाईसी (V-CIP) के दौरान आंख झपकाना आवश्यक नहीं है। इसके अलावा, सभी केवाईसी टेम्पलेट्स और ग्राहक फॉर्म में दिव्यांगता का प्रकार और प्रतिशत दर्ज करने की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि संस्थाएं उपयुक्त सेवाएं या सहायता प्रदान कर सकें। यह फैसला भारत में डिजिटल समावेशन की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि देश का कोई भी नागरिक डिजिटल प्रगति से वंचित न रहे, चाहे वह किसी भी तरह की दिव्यांगता से क्यों न जूझ रहा हो।

Date:

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related