शिव दयाल मिश्रा
बहुत बातें होती हैं सामाजिक समरसता की। मगर दिखाई देने की बात करें तो वह सिर्फ एक ही जगह मिलती है और वह जगह है टेंट की दूकान। सामाजिक समरसता के नाम पर प्राचीन काल से ही प्रयास किए जा रहे हैं जैसे भगवान राम ने सबरी के झूठे बेर खाए, निषादराज के साथ दोस्ती की। भगवान महावीर, गौतम बुद्ध और स्वतंत्र भारत में महात्मा गांधी, भीमराव अम्बेडकर और भी न जाने कितने ही महापुरुषों का नाम समरसता से जुड़ा हुआ है। समरसता का प्रयास खूब किया जाता है मगर सफलता पूरी तरह मिल ही नहीं पाई है। समाज में जाति-पांति, ऊंच-नीच, गरीब-अमीर और भी न जाने कितने ही विरोधाभास मौजूद हैं। खाने-पीने से लेकर उठने-बैठने तक में भेदभाव होता है। समरसता का शब्द तो हर कोई कहता है कि सामाजिक समरसता होनी चाहिए। मगर ये कोई नहीं बताता कि सामाजिक समरसता होगी कैसे। कहां से आएगी। कौन इसको पैदा करेगा। कैसे दिमाग में जो असमानता की बुराई बैठी हुई है उसे निकालेगा कौन। मनुष्य अगर अपने जीवन में चारों तरफ झांक कर देखेगा तो यह हमें स्पष्ट रूप से दिखाई देगा कि कहां समरसता है और कहां नहीं। हमारे घर परिवार में आए दिन उत्सव मनाए जाते हैं चाहे वे शादी-विवाह के हों, जन्म दिन के हों या और कोई। मेहमान घरों में आते जाते हैं। ठहरने पर उन्हें बिस्तर भी चाहिए, सोने की जगह भी चाहिए जो आजकल हर घर में उपलब्ध नहीं। पहले तो सामाजिक सहयोग मिल जाता था। मकान भी बड़े होते थे। गृहस्थियों के उपयोग वाले सामान एक-दूसरे से ले-देकर काम निकालते थे। मगर दिमाग बढऩे लगे। सहयोग घटने लगे। अब ठहरने को गेस्ट हाउस या होटल और सामान की पूॢत होती है टेंट द्वारा। बर्तनों से लेकर बिस्तरों तक सामान टेंट से आता है, वही सामान अमीर से लेकर गरीब तक जाता है जिसमें हरिजन से लेकर पंडित तक शामिल है। उन्हीं बर्तनों में खाया जाता है और उन्हीं बिस्तरों में सोया जाता है जबकि जाति-पांति के चक्कर में एक-दूसरे को छूने तक में नाक-भौ सिकोड़ी जाती है। कुछेक उदाहरणों को छोड़कर। समरसता तो है टेंट वाली दुकान पर। टेंट वाले से जातिगत या ऊंच-नीच के हिसाब से अलग सामान के बारे में जानकारी नहीं की जाती। इसलिए यह एक अच्छा उदाहरण है सब लोग एक ही सामान का प्रयोग करते हैं। मयखाने में भी कोई छुआछूत नहीं होती। मगर मयखाने से निकलने के बाद नशा उतरते ही दिमाग वहीं पहुंचता है हम बड़े तुम छोटे। इसलिए बिना भेदभाव सामाजिक समरसता टेंट की दुकान में है। मयखाने में है। होटल और गेस्ट हाउस में है। सामान्य जीवन में नहीं दिखती जो कि दिखनी चाहिए।
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