व्यंग्यधारा की ऑनलाइन व्यंग्य रचना विमर्श वीडियो गोष्ठी,व्यंग्य की भाषा धारदार होनी चाहिए -जवाहर चौधरी
बीकानेर@जागरूक जनता। व्यंग्यधारा द्वारा आयोजित आन लाइन व्यंग्य विमर्श गोष्ठी में वरिष्ठ व्यंग्यकार जवाहर चौधरी ने इस माह की प्रकाशित रचनाओं पर अपनी बात रखते हुए कहा कि व्यंग्य की भाषा धारदार होनी चाहिए। भाषा अच्छी नहीं हो तो लिखा हुआ भंगार है। व्यंग्यधारा की तेतालीसवीं ऑनलाइन वीडियो गोष्ठी में “इस माह के व्यंग्य’ के अंतर्गत फरवरी माह में प्रकाशित व्यंग्य रचनाओं में से कुछ चयनित रचनाओं पर विमर्श का आयोजन रविवार को किया गया जिसमें श्री जवाहर चौधरी बोल रहे थे। वरिष्ठ व्यंग्यकार राजेन्द्र वर्मा, शांतिलाल जैन और मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने भी विमर्श में हिस्सा लिया।
जवाहर चौधरी ने सुधीश पचौरी की व्यंग्य रचना “पाठ, कुपाठ,और पुनर्पाठ युग की स्थापना “और अशोक शण्ड की रचना”कैसा बसंत!अब तो सगरो बसंत है” की समीक्षा करते हुए कहा कि व्यंग्यकार को पता होना चाहिए कि उसका लक्ष्य क्या है और वह क्या कहना चाहता है व्यंग्यकार राजेंद्र वर्मा ने अरविंद तिवारी के व्यंग्य ‘क्वारंटाइन में वसंत’ तथा निर्मल गुप्त के व्यंग्य ‘असमय आया भूकंप इब्नबबूता का जूता’ की निष्पक्ष समीक्षा करते हुए कहा दोनों रचनाओं में सरोकार स्पष्ट नहीं है। रिपोर्टिंग के अंदाज में लिखे गए श्री तिवारी के व्यंग्य में विरोधाभासी बाते हैं। व्यंग्य उभर कर नहीं आ पा रहा। श्री गुप्त के व्यंग्य का लक्ष्य स्पष्ट नहीं है। बहुत अच्छा व्यंग्य नहीं है। मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने कहा कि रचना समय सापेक्ष हो तो पाठकों के दिल तक पहुंचती है।व्यंग्य कठिन विधा है संवेदन विहीन कोई व्यंग्य हो ही नहीं सकता है,व्यंग्य में संवेदना होनी चाहिए। कथानक से ज्यादा जरूरी कथ्य है। उन्होंने कहा कि आलोक पुराणिक का व्यंग्य समसामयिक, लेकिन साधारण है।
वीणा सिंह के बजट पर व्यंग्य की सराहना की उन्होंने कहा सहज सरल से रचना बजट पर बड़े सवाल उठाए आज बजट बड़े लोगों के लिए ही होता हैं नीचे और कमजोर वर्ग के लिए कहीं स्थान नहीं दिखता है.शांतिलाल जैन ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि व्यंग्य को पैरोडी और चुटकुलों से बचाने की आवश्यकता है अन्यथा इसका हाल कविसम्मेलनीय कविता के समान हो जाएगा.क्योंकि इससे सरोकार पर विपरीत असर पड़ता है। व्यंग्यकार में खबरों के आर-पार देखने की क्षमता विकसित होनी चाहिए। उन्होंने व्यंग्यकार कुमार विनोद की रचना”मंहगा हुआ पेट्रोल, साईकिल पर चला करो” तथा उर्मिलकुमार थपलियाल की व्यंग्य रचना” फागुन की फागुनिया लेकर आया मधुमास” पर विमर्श किया। विमर्श को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय ने व्यंग्यकारों को आह्वान करते हुए कहा कि व्यंग्य के लेखक बने, हरकारे नहीं। व्यंग्यकार के विचारों में निर्भयता और निडरता होनी चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए व्यंग्यकार रमेश सैनी ने व्यंग्यकारों के सरोकारों से जुड़ने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से आज व्यंग्य सरोकार से ह़टता जा रहा है। व्यंग्यकार भी बचकर और अपना भविष्य ध्यान में रखकर लिखने लगे हैं जो अच्छे संकेत नहीं है। आलोचक डॉ. रमेश तिवारी ने कहा कि आधुनिक साहित्यकारों को कमजोर के साथ खड़ा होना होगा। असहमति लोकतंत्र का प्राण है। व्यंग्यकारों के समक्ष अपनी सुरक्षा के साथ कमजोर को बचाने की चुनौती है। व्यंग्य विमर्श में सुधीरकुमार चौधरी, सूर्यदीप कुशवाहा, सुनील जैन राही, अनूप शुक्ल, महेंद्र ठाकुर ने भी अपने विचार रखे । व्यंग्य विमर्श गोष्ठी में राजशेखर चौबे, कुमार सुरेश, प्रभात गोस्वामी, बुलाकी शर्मा, वीना सिंह, प्रभाशंकर उपाध्याय, श्रीमती रेणु देवपुरा, मुकेश राठौड़, विवेकरंजन श्रीवास्तव, जयप्रकाश पाण्डेय,हनुमान मुक्त अभिजित कुमार दुबे,सुरेश कुमार मिश्र, उद्भ्रांत, रामदयाल सूत्रधार, सौरभ तिवारी, वीरेन्द्र सरल, हनुमान प्रसाद मिश्र, टीकाराम साहू ‘आजाद’ आदि उपस्थिति उल्लेखनीय रही।अतिथियों का आभार प्रदर्शन व्यंग्यकार अरुण अर्णव खरे ने किया।