जागरूक जनता नेटवर्क
जयपुर। बाड़मेर के धोरों से निकलकर हार्वर्ड युनिवर्सिटी का सफर तय करने वाली रूमा का कहना है कि उन्होंने कभी किसी के विरोध को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए रूमा ने कहा कि जब वह चार साल की थी, तभी मां गुजर गई। ऐसे में 17 साल की उम्र में उनकी शादी करवा दी गई। घर के कामकाज और अन्य परिस्थितियों के कारण आठवीं तक ही पढ़ाई कर सकी। शादी के बाद परिस्थितियां बहुत खराब हो गई। ऐसे में मन में यह ठान लिया कि कुछ बड़ा करना होगा।
आर्थिक तंगी और समाज की बेड़ियों में पली बढ़ी रूमा देवी के लिए ये सब बहुत आसान नहीं था। उनके सिर्फ कुछ करने का फैसला लेने पर ही गांव में विरोध होने लगा था, लेकिन रूमा ने किसी भी विरोध को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। रूमा देवी ने कहा कि जब हमारे हौंसलों में ताकत होती है तो हम कुछ भी कर सकते है। ऐसे में चाहे कोई भी परिस्थिति हो यदि हम उसका सामना सोच—समझकर और डटकर करेंगे तो वो हमें भविष्य में सबसे मजबूत बनाने का कारण बनेंगी। रूमा का कहना है कि हमें कभी नहीं घबराना चाहिए। हमेशा मुश्किलों का सामना करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए।
यह बात जानी-मानी फैशन डिजाइनर रूमा देवी ने फ्यूचर सोसायटी और एलआईसी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हो रहे डिजिटल बाल मेले में बच्चों के साथ हुए ऑनलाइन संवाद के दौरान कही। कार्यक्रम की शुरुआत में बाल मेला टीम की ओर से जाह्नवी शर्मा ने रूमा का स्वागत किया और उनकी निजी जिंदगी से बच्चों को प्रेरणा लेने की बात कही।
इसके बाद बच्चों ने सवाल-जवाब शुरु किए। प्रतापगढ़ के काव्य गाड़िया ने जब रूमा देवी से पूछा कि उन्होंने फैशन डिजाइनिंग को ही क्यों चुना? इसके जवाब में रूमा देवी ने कहा कि बचपन में उन्होंने अपनी दादी से कढ़ाई—बुनाई का काम सीखा था और जब शादी के बाद हमारी परिस्थितियां ऐसी बनी तो वो काम बहुत अच्छे से आता था इसलिए उन्होंने वो चुना। इसके लिए अपने गांव की 10 महिलाओं को साथ लेकर काम शुरू कर दिया। रूमा देवी कहती है कि सुई—धागा बहुत छोटी चीज है, लेकिन वह एक ऐसी चीज है जिसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता है। इसलिए दुनिया मे कोई काम छोटा नहीं होता है। हर काम की अपनी एक खास अहमियत होती है। किसी भी काम को छोटा नहीं मानना चाहिए।
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