कोर्ट के इस निर्णय से 45 से कम उम्र के वकीलों की बढ़ी परेशानी
जागरूक जनता नेटवर्क
जयपुर। गर्मियों की छुटि्टयां पूरी होने के साथ ही अगले सप्ताह 28 जून से प्रदेश में हाईकोर्ट और अधीनस्थ कोर्ट फिर से शुरू होने जा रहे हैं। ऐसे में कोर्ट के एक सर्कुलर ने 45 साल या उससे छोटी उम्र के वकीलों के लिए परेशानी बढ़ा दी है। कोर्ट ने उनकी फिजिकल पैरवी पर रोक लगाई है, जिनको कोरोना वैक्सीन के दोनों डोज नहीं लग पाएं है। कोर्ट की नई गाइडलाइन के मुताबिक केवल वही वकील फिजीकल पैरवी कर सकेगा, जिसने 14 दिन पहले कोरोना वैक्सीन की दूसरी डोज भी लगवा ली हो।
अब कोर्ट के इस फैसले से 45 या उससे कम उम्र के वकीलों के लिए इसलिए मुसीबत खड़ी हो गई क्योंकि इस एज ग्रुप के ज्यादातर लोगों को अभी दूसरी डोज लगाने का समय 15 जुलाई के बाद से आएगा। ऐसे में 23 जुलाई के बाद इस एजग्रुप के लोगों को वैक्सीन की दूसरी डोज लगनी शुरू होगी। ये भी उन व्यक्तियों को लगेगी, जिन्होंने मई के शुरुआती 10 दिन वैक्सीन की पहली डोज लगवाई है। हाईकोर्ट के इस फरमान से प्रदेश में 45 साल से कम उम्र के लगभग 80 प्रतिशत अधिवक्ता अदालतों में प्रवेश नहीं कर पाएंगे।
कोर्ट में प्रवेश से पहले दिखाना होगा वैक्सीनेशन का सर्टिफिकेट
फिजिकल पैरवी के लिए आने वाले अधिवक्ता जिन्हें कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी हैं, उनको इस बात का प्रमाण कोर्ट में प्रवेश के दौरान दिखाना होगा। यानी ऐसे वकीलों को दूसरी डोज लगने के 14 दिन बाद अदालत में प्रवेश मिल सकेगा। इसके लिए उन्हें अपना फाइनल वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट दिखाना होगा। हाईकोर्ट प्रशासन के इस फैसले का विरोध भी शुरू हो गया है। हाईकोर्ट बार के पदाधिकारियों ने इस फैसले को पूरी तरह से गलत बताया है। उनका कहना है कि केवल दो डोज लगवाने वाले को अनुमति देना व्यावहारिक नहीं है। हमने फिजिकल पैरवी के लिए एक डोज की अनिवार्यता की बात कही थी।
एसीजेएम स्तर के जज और कोर्ट स्टाफ 45 साल से कम
बार एसोसिएशन जयपुर ने भी फैसले को व्यावहारिक नहीं बताया है। एसोसिएशन के पदाधिकारियों का कहना है कि एक तरफ तो हाईकोर्ट प्रशासन केवल उन्हीं वकीलों को कोर्ट परिसर में एंट्री देने की बात कह रहा है, जिन्होंने वैक्सीन की दोनों डोज ली है। वहीं दूसरी ओर 45 साल से कम उम्र के मजिस्ट्रेट और न्यायिक कर्मचारियों को लेकर कोई बात नहीं कही गई। उन्होंने कहा कि प्रदेश की अदालतों में एसीजेएम स्तर के जज और 70 प्रतिशत न्यायिक कर्मचारी 45 साल से कम उम्र के है, लेकिन उनके प्रवेश पर कोई रोक नहीं है। फिर वकीलों के साथ यह दोहरा रवैया क्यों?