पेस्टीसाईड्स मिट्टी में डाला जाता है, उत्पाद में नहीं

जयपुर/ नई दिल्ली. भारतीय उद्योग व्यापार मण्डल तथा राजस्थान खाद्य पदार्थ व्यापार संघ के तत्वावधान में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेन्स ”मसाला उद्योग के सामने वर्तमान में चुनौतियाँ“ में प्रिन्ट मीडिया तथा इलेक्ट्रोनिक मीडिया से आये सभी साथियों आपका हार्दिक स्वागत है। प्रेसवार्ता में उपस्थित हुये एम.डी.एच. मसाला से श्री सुरेश राठी जी, एवरेस्ट मसाला से श्री शैलेन्द्र जी, गजाजन मसाला से श्री समीर भाई, इतिहास मसाला से श्री कृपाराम जी, सीबा ताजा मसाला से श्री शशांक जी, श्याम स्पाईसेज से श्री रामावतार अग्रवाल जी एवं श्री विट्ठल जी, श्रीराम उद्योग से श्री सुमित जी, पीसीएम मसाला से श्री कृष्णा जी, बंसल ट्रेडिंग कंपनी से श्री पीन्टू भाई, ओसवाल मसाला से श्री सौरभ जी; आप सभी का स्वागत है। एवं श्री लक्ष्मीनारायण जी, कबीरा ऑयल से श्री मनोज मुरारका जी, श्री कैलाश जी खण्डेलवाल, श्री केदारनाथ जी अग्रवाल, श्री रामचरण नाटाणी एवं श्री सुरेश जी सैनी आप सभी व्यापारी प्रतिनिधियों का भी स्वागत करते हैं।

राजस्थान के मसाले विशेषकर नागौर की कस्तूरी मैथी, रामगंज मण्डी का रंगदार व खुशबूदार धनिया, मेड़ता का जीरा; अपनी अलग पहचान रखते हैं। यद्यपि मिर्ची के लिये गंटूर तथा गरम मसाला यथा-डोडा (बड़ी इलायची), जावित्री, जायफल, लौंग, कालीमिर्च व सौंठ के लिये दक्षिणी भारत जिसमें केरल तथा तमिलनाडू इसके लिये प्रसिद्ध है।
राजस्थान में करीब सात सौ छोटे-बड़े मसाला उद्योग कार्य कर रहे हैं। देश के सभी बड़े मसाला उद्योग राजस्थान में अपनी इकाई स्थापित करना चाहते हैं। देश का जाना माना उद्योग नागौर में अपनी औद्योगिक इकाईयां स्थापित कर चुका है।
विदेश से खबर आई कि भारत के मसालों में पेस्टीसाईड्स की मात्रा अधिक संभावित है। इस कारण उनका उपयोग रोका जा रहा है। फूड सेफ्टी स्टैण्डर्ड अथॉरिटी ने संज्ञान लेते हुये सभी राज्यों के स्वास्थ्य विभागों को निर्देशित किया कि मसालों में पेस्टीसाईड्स की जांच कर एफएसएआई को बताया जायें।

राजस्थान के स्वास्थ्य विभाग ने आनन-फानन में आदेश जारी मसाला उद्योगों के उत्पादों के सैम्पल लेना प्रारम्भ कर दिया। सैम्पल लेने के साथ ही उत्पादों को बिक्री से रोक दिया, सीज कर दिया आदि कार्यवाही सैम्पल की रिपोर्ट आने से पूर्व ही कर दी गयी। विभाग द्वारा सैम्पल जांच हेतु लिये गये थे, उनकी जांच रिपोर्ट अभी तक उद्योगपतियों को नहीं मिली है। सैम्पल न केवल उद्योग स्तर पर लिये गये अपितु होलसेलर, डिस्ट्रीब्यूटर और डीलर के स्तर पर भी लिये गये और माल को सीज किया गया। विभाग के सभी कार्यकलाप एफएसएसएआई के निर्देश पर ही चलते हैं। एफएसएसएआई ने केवल सैम्पल लेकर उनको अवगत करवाने के लिये कहा था। राजस्थान खाद्य पदार्थ व्यापार संघ ने इन सभी कार्यवाहियों से स्वाथ्य मंत्री, राजस्थान सरकार को अवगत कराया कि पेस्टीसाईड्स मसालों में होने की संभावना है, ऐसा बोलकर विभाग द्वारा सैम्पल लिये गये हैं, मामले बनाये गये हैं, अखबारों में खबर दी गयी है, गोदाम सीज किये गये हैं, इसे रोका जाना चाहिये। यह उद्योग की अवमानना है। सैम्पल के रिजल्ट तो आने दीजिये। मंत्री जी को यह भी बताया गया कि मसाला उत्पादनकर्त्ता उद्योग अपने मसालों की अपनी लेबोरेट्री में तथा एफएसएसएआई द्वारा निर्धारित लेबोरेट्रीज में अपने माल की जांच कर बाजार में उतारता है। और इसी कारण उद्योगों के उत्पाद की देश-विदेश में साख बनती है, जिसे विभाग के कृत्य ने और मीडिया में जाहिर हुयी खबरों ने धूूमिल किया है। जिस पर स्वास्थ्य मंत्री जी ने सैम्पल लेने पर रोक लगा दी है। उद्योग पेस्टीसाईड्स अपने उत्पादों में मिला ही नहीं सकता है और फिर उसके मिलाने का कोई कारण भी नहीं है। ना तो पेस्टीसाईड्स के कारण स्वाद में बढ़ोतरी होती है, और ना ही उसके रंग में बदलाव आता है।

किसान द्वारा फसल की उत्पादकता को बनाये रखने के लिये जब पौधा बोया जाता है तो मिट्टी में पेस्टीसाईड्स डाला जाता है, पौधें की जड़ों से पेस्टीसाईड्स फलों में तथा फूलों में जाता है, और इस प्रकार उत्पाद तैयार होता है। फलों को तथा फूलों को कीटों से सुरक्षित रखने के लिये फिर किसान कीटनाशकों का छिड़काव करता है और वह उत्पाद में आ जाता है। इन दिनों अधिक फसल लेने के लिये किसान मिट्टी पर भी अधिक पेस्टीसाइर््ड्स का उपयोग कर रहा है और पौधे, फल एवं फूल को कीट से बचाने के लिये अधिक छिड़काव कर रहा है। और इसी कारण तैयार उत्पाद में पेस्टीसाईड्स की मात्रा अधिक आने लगी है, जो निर्धारित मानकों से अधिक है।

पूर्व में मसालों की जांच के पैमाने में पेस्टीसाईड्स की जांच नही थी, अब इसे आवश्यक किया गया है। इसको भी प्रचारित नहीं किया गया है। उद्योग इससे अनभिज्ञ है, इसलिये अनजाने में खाद्य और कीटनाशक डाले हुये उत्पाद विक्रय के लिये आये हैं और उनके सैम्पल लिये गये हैं। हमारी मांग है कि उन सैम्पलों को केवल सर्विस सैम्पल मानकर उनकी जांच का मुकदमा बनाने के लिये प्रयोग में नही लेना चाहिये। इस तरह के स्पष्ट आदेश एफएसएसएआई जारी करें।

राजस्थान खाद्य पदार्थ व्यापार संघ यह निवेदन भी करना चाहता है कि उद्योग के उत्पाद के सैम्पल लेकर विभाग जांच करवाता है, जांच रिपोर्ट की जानकारी उद्योग को दी जाती है, और उसके बाद यदि उत्पाद मानकों के अनुसार नहीं पाया जाता है तो उसे अखबार आदि में साया किया जाता है और उत्पाद को विक्रय से रोका जाता है। इन दिनों सैम्पल लेना, तुरन्त माल को सीज करना, और अखबारों में साया करना और मीडिया द्वारा यह लिखना कि मिर्ची में ईंट मिल हुयी है; इस तरह की कार्यवाही निन्दनीय है, इसे रोका जाना चाहिये। यह बरसों से बनाये गये ब्राण्ड की वैल्यू पर चोट पहुंचाता है। यहां यह उल्लेख करना भी आवश्यक है कि जिस लेबोरेट्री में स्वास्थ्य विभाग सैम्पल की जांच करवाता है, उसी प्राईवेट लेबोरेट्री में विभाग द्वारा लिये गये उसी बैच के उत्पाद की श्याम किचन मसाले द्वारा जांच करवाई गयी और वह सैम्पल एफएसएसएआई के मानकों के अनुसार सही पाया गया, जबकि विभाग द्वारा की गयी कार्रवाई के कारण उत्पाद को अखाद्य बताते हुये सीज आदि की कार्रवाई की गयी।

भारतीय उद्योग व्यापार मण्डल के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं चेयरमेन, राजस्थान खा़द्य पदार्थ व्यापार संघ बाबूलाल गुप्ता ने कहा कि राजस्थान में पेस्टीसाईड्स की जांच करने के लिये विभाग में उपलब्ध लेबोरेट्री में संसाधन ही उपलब्ध नहीं है। पेस्टीसाईड्स की विभाग भी जांच प्राईवेट लेबोरेट्री में ही करवाता है। पूर्व निर्धारित उत्पाद के मानकों की जांच ही विभाग की लेबोरेट्री में होती है। पूरे देश में लेबोरेट्रीज की बहुत कमी है, और इससे राजस्थान भी अछूता नहीं है। उद्योग के सामने यह समस्या बनी रहती है कि वह अपना उत्पाद राज्य की किस लेबोरेट्री में जांच करवाकर बाजार में उतारे। हमारी मांग है कि राजस्थान सहित देश के सभी राज्यों में लेबोरेट्रीज का विस्तार किया जायें ताकि उद्योग अपने उत्पादों को बाजार में उतारने से पहले जांच परख करवा सके।

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