इस्लामाबाद। कुलभूषण जाधव के मामले में पाकिस्तान आखिरकार भारत के दबाव के आगे झुक ही गया। अब जाधव पाकिस्तानी मिलिट्री कोर्ट से मिली सजा-ए-मौत के खिलाफ अपील कर सकेंगे। बुधवार को पाकिस्तान के उच्च सदन में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (रिव्यू एंड री-कन्सीडरेशन) ऑर्डिनेंस 2020’ को मंजूरी दे दी गई। 5 महीने पहले यह ऑर्डिनेंस पाकिस्तान के निचले सदन से भी पास हो चुका है। अब इस पर सिर्फ राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होना बाकि हैं। इसके बाद यह बिल कानून की शक्ल ले लेगा।
क्या फायदा होगा?
बिल के मुताबिक, पाकिस्तान की जेलों में सजायाफ्ता विदेशी कैदी (जिन्हें मिलिट्री कोर्ट्स ने सजा सुनाई है) ऊपरी अदालतों में अपील कर सकेंगे। अब तक पाकिस्तानी जेलों में बंद विदेशी कैदी जिन्हें सैन्य अदालतों ने सजा सुनाई है, इस सजा के खिलाफ ऊपरी अदालतों में अपील नहीं कर पाते थे। भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के मामले में सुनवाई करते हुए इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) ने पाकिस्तान से इस मामले में सुधार करने को कहा था, ताकि दूसरे देशों के नागरिकों के इंसाफ मिल सके।
जाधव के मामले में क्या मुमकिन
राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने के बाद यह कानून बन जाएगा, जो तय है। जल्द ही जाधव मिलिट्री कोर्ट के फैसले को हायर सिविल कोर्ट में चैलेंज कर सकेंगे। पाकिस्तान का दावा है कि जाधव RAW के एजेंट हैं और उन्हें बलूचिस्तान से 2016 में गिरफ्तार किया गया था। वहीं, भारत का दावा है कि जाधव इंडियन नेवी के रिटायर्ड ऑफिसर हैं। वे कारोबार के सिलसिले में ईरान गए थे।
उन्हें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ने वहीं से अगवा किया था। मिलिट्री कोर्ट ने 2017 में जाधव को सजा-ए-मौत का फैसला सुनाया था। भारत ने इसे ICJ में चैलेंज किया। तब से यह मामला पेंडिंग है। आईसीजे ने सजा पर रोक लगा दी थी। साथ ही उन्हें काउंसलर एक्सेस देने को भी कहा था।
हरीश साल्वे ने की थी जाधव की पैरवी
ICJ में जाधव की पैरवी के लिए भारत की तरफ से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे पेश हुए थे। पिछले साल उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा था- जाधव की रिहाई के लिए भारत सरकार ने पाकिस्तान से ‘बैक डोर’ बातचीत की थी।
एनएसए अजीत डोभाल ने खुद पाकिस्तान के तब के एनएसए नासिर खान जंजुआ से इसके लिए बात की थी। हालांकि, यह बातचीत बेनतीजा रही। भारत को उम्मीद थी कि पाकिस्तान से ‘बैक डोर’ बातचीत करने पर हम उन्हें मना लेंगे। हम मानवीय आधार पर जाधव की रिहाई की बात कर रहे थे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पाकिस्तान ने कुलभूषण का मामला अपनी प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया है।