गोमाता व धरतीमाता की अनदेखी ठीक नही: दिलावर

कृषि दक्षता व पशु कल्याण पर 31 वां राष्ट्रीय सम्मेलन शुरू

उदयपुर। रासायनिक उर्वरकों के बेजां इस्तेमाल से धरतीमाता और पॉलीथिन व अन्य डिस्पोजेबल सामाग्री से गोमाता की सेहत इतनी बिगड़ चुकी है कि वह दिन दूर नहीं जब दोनों माताएं स्पष्ट बोल दंेगी कि ’बच्चों माफ करना अब हम खाद्यान्न्ा और दूध देने में असमर्थ है’। यह बात स्कूल शिक्षा एवं पंचायती राज मंत्री श्री मदन दिलावर ने कही। मंत्री दिलावर बुधवार को राजस्थान कृषि महाविद्यालय के नूतन सभागार में ’कृषि दक्षता और पशु कल्याण को सुदृढ़ बनाने की दिशा में सटीक पशुधन प्रबंधन तकनीक’ विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। सम्मेलन में देशभर के 29 प्रांतांे के लगभग चार सौ वैज्ञानिक, पशुधन के ज्ञाता व किसान भाग ले रहे हैं।

दिलावर ने कहा कि गोमाता नहीं होती तो ये सृष्टि भी संभवतया नहींे होती। गोमाता के होने मात्र से हमने खाद्यान्न्ा उत्पादन आरंभ किया, लेकिन अफसोस इस बात का है कि गोमाता की नस्ल ही बिगड़ गई। आज असली गोमाता के दर्शन तक दुर्लभ है। गिर, साहीवाल, थारपारकर गायों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जिनका कंधा ऊंचा हो, सही मायने में उन्हीं गायों का दूध लाभप्रद है।
उन्होंने विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का आह्वान किया कि वे इस रणनीति पर काम करे कि हमारी पारम्परिक देसी गायों का संरक्षण किया जा सके। अनादिकाल में हमारे पूर्वजों ने खेती करना शुरू किया होगा तो कितने संकट आए होंगे। खुदाई कर मिट्टी तैयार करना, खेत का आकार देना। तब अकेली गोमाता थी जिसने अपने पुत्र यानी बैल को समर्पित किया और हल के माध्यम से खेती किसानी का दौर आंरभ हुआ। आज के तकनीकी दौर में मशीनीकरण का बोलबाला है लेकिन हमें बैलों की महत्ता को भी नहीं भूलना चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया उनके दो वर्ष तीन माह के कार्यकाल में एमपीयूएटी ने 44 पेटेन्ट हासिल किए। इस तरह कुल 55 पेटेन्ट विश्वविद्यालय के नाम हैं। उन्होंने विश्वविद्यालय के पशुधन वैज्ञानिकों आह्वान किया कि मंत्री महोदय की मंशा के अनुसार अपनी गायों की ब्रीड को संरक्षित करने की दिशा में सारगर्भित शोध करने की जरूरत है। देश को ऐसी कृषि प्रणाली की जरूरत है जो न केवल पशु हितैषी हो बल्कि वातावरण और पर्यावरण को बचाने वाली भी हो। 21 वीं पशुगणना के परिणाम भी इसमें मददगार साबित होंगे।

विशिष्ट अतिथि अमूल आणंद (गुजरात) के महाप्रबंधक डॉ. अमित व्यास ने काह कि विश्व में 240 मैट्रिक टन दुग्ध उत्पादन में हमारे देश की भागीदारी 23 प्रतिशत है। देश में सर्वाधिक दूध उत्पादन में उत्तरप्रदेश के बाद दूसरा स्थान राजस्थान का है। डॉ. व्यास ने कहा कि गाय का दूध कैसे बढ़े और खर्च कम कैसे हो। इस पर अमूल वृहद स्तर पर काम कर रहा है। और सफलता भी मिली है। अमूल प्रतिष्ठान में चार सौ पशु चिकित्सकों की टीम में नित्य गायों की देखभाल में लगी है और लक्षण दिखाई देते ही इलाज आरंभ कर दिया जाता है। खास बात यह है कि आयुर्वेदिक व होम्योपैथिक दवाओं से गायों का इलाज किया जा रहा है। ऐसी तकनीक किसानों तक भी पहुंचनी चाहिए। साथ ही अमूल बायो गैस, गायों की खुराक, कृत्रिम गर्माधान, ड्रोन तकनीक पर भी लगातार काम कर रहा है।

कार्यक्रम में राज्यसभा श्री चुन्न्ाीलाल गरासिया, एमबीएस विश्वविद्यालय जोधपुर के कुलपति डॉ. अजय शर्मा, भारतीय पशु उत्पादन एवं प्रबंधन सोसायटी सरदार कृषि नगर दांतीवाड़ा (गुजरात) के अध्यक्ष डॉ. ए.पी. चौधरी ने भी संबोधित किया। आयोजन सचिव सिद्धार्थ मिश्रा ने बताया कि राजस्थान कृषि महाविद्यालय के पशु उत्पादन विभाग और भारतीय पशु उत्पादन एवं प्रबंधन सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में कुल सात तकनीकी सत्रों में वैज्ञानिक उपरोक्त विषय पर गहन मंथन करेंगे। आरंभ में सम्मेलन समन्वयक डॉ. जे.एल. चौधरी ने स्वागत भाषण दिया। संचालन डॉ. गायत्री तिवारी ने किया।
लाइफ टाइम अचीवमेन्ट अवार्ड व सम्मान
समारोह में लाइफ टाइम अचीवमेन्ट अवार्ड तमिलनाडु के डॉ. त्यागराज शिवकुमार केा दिया गया जबकि पशु उत्पादन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने पर डॉ. बालूस्वामी (तमिलनाडु), डॉ. बी.एस. खद्दा (मोहली), डॉ. बी. सतीशचंद्र (कर्नाटक), डॉ. बी. रमेश (तमिलनाडु), को शील्ड व सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया। साथ ही इफ्को के प्रबंधक श्री सुधीर मान व शिक्षा मंत्री के विशेषाधिकारी डॉ. सुनील दाधीच को भी स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।

गाय का दूध पिलाओ – बच्चा चंचल व तीक्ष्णबुद्धि का होगा
’पाडा तो पाडा ही रहेगा’
शिक्षा मंत्री श्री मदन दिलावर ने कहा कि गाय का दूध पीने वाला बच्चा सदैव चंचल, तीक्ष्ण बुद्धि वाला होता है जबकि भैंस का दूध पीने वाला बच्चा ऊंगणिया (आलसी) होता है। गाय के बछड़े को छोड़ते ही वह उछलता – कूदता सीधे अपनी मां के पास पंहुच जाता है। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि गाय का बछड़ा थोड़ा बड़ा होने पर केरड़ा, नारकिया और अंत में बैल बनता है जबकि भैंस का बच्चा जन्म से अंत तक पाडा ही रहता है।

कृषि दक्षता व पशु कल्याण विषयक राष्ट्रीय सम्मेलन में दिलावर ने स्पष्ट किया कि हर पशु का अपना महत्व है। यदि चेतक घोड़ा नहीं होतो प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप का नाम इतना आगे नहीं होता। ऊँट को राज्य पशु का दर्जा दिया गया है। यह प्रजाति भी विलोपन के कगार पर है। वैज्ञानिकों को इसे बचाने के उपाय ईजाद करने होंगे। सीमा सुरक्षा मामले में भी ऊंट की अपनी अहमियत है। ’रेगिस्तान के जहाज’ के नाम से परिचित ऊंट बीएसएफ के लिए वरदान है जो बिना पानी पीये आठ-दस दिन निकाल लेता है। लेकिन गाय की अपनी विशेष महत्ता है। गाय का गोबर व मूत्र से कई बीमारियां स्वतः भाग जाती है। कोई भी पवित्र कार्य करने से पूर्व गोबर से लिपाई का प्रचलन है ताकि शुद्धता बरकरार रहे।
उन्होंने कहा कि राजस्थान में कितना भी संकट आए यहां का किसान आत्महत्या नहीं करता है। अकेली गोमाता अपने दूध से किसान का पेट भर सकती है। हमें दूध, पनीर, मिठाई, चाय तो भाती है लेकिन गोमाता नहीं सुहाती। इसलिए हमने उसे निकाल दिया। नतीजा यह कि गोमाता के लिए बूचड़खाने वाले घूम रहे हैं। गोमाता कट रही है। कांग्रेस घास (गाजर घास) व जूली फ्लोरा (विलायती बबूल) पर भी चिंता जताते हुए दिलावर ने वैज्ञानिकों को इसके समूल खात्मे पर काम करने का आह्वान किया।
दिलावर ने सभागार में मौजूद प्रतिभागियों को हाथ खड़ा कर विश्वविद्यालय परिसर, शिक्षा मंत्रालय, कार्यालय व अपने घरों तक पॉलीथिन पर रोक लगाने की शपथ दिलाई।

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