Jagruk Janta
Vishwasniya Hindi Akhbaar

Company

चुनाव लडऩे के बजाए अगर खेला जाए तो!

शिव दयाल मिश्रा
पांच राज्यों के चुनावों की तारीखों की घोषणा हो चुकी है। पांच राज्यों में दो महीनों तक सियासी घमासान चलने वाला है। घमासान से तात्पर्य है धुंआधार चुनावी प्रचार, जोड़-तोड़, दल-बदल, सेंधमारी आदि। इस चुनावी तौर-तरीकों को चुनाव लडऩा कहा जाता है। और आम जनता के बीच में जाकर अपनी-अपनी बातों को रखने के लिए जाना जैसे कोई युद्ध भूमि में जाने के समान है। और हो भी क्यों न। आखिर जीत जाने के बाद सत्ता सुख प्राप्त होता है। सत्ता सुख प्राप्त करने के लिए क्या-क्या पापड़ नहीं बेलने पड़ते हैं। चुनाव स्कूल, विद्यालय और कॉलेजों से होता हुआ विधानसभा और लोकसभा तक पहुंचता है। जिसमें उठक-बैठक से लेकर चाय-नाश्ता, नाचना-गाना, गिफ्ट देना, नगद नारायण का प्रयोग आदि शामिल है। चुनावों के बारे में सिर्फ एक ही शब्द का प्रयोग होता है और वह शब्द है ‘चुनाव लडऩाÓ। अगर इसी शब्द को चुनाव लडऩे के बजाए ‘चुनाव खेलनाÓ कह दिया जाए तो सारी लड़ाई ही खत्म हो जाए और खेल-खेल में ही सत्ता प्राप्त हो जाए। एक-दूसरे से वैमनस्य भी नहीं हो। ‘अब की बार हमारी, अगली कोशिश तुम्हारीÓ के वातावरण में अगर चुनाव होने लगे तो कहना ही क्या है। ये वोटों की लूटपाट, रिश्वत, प्रलोभन आदि से दूर स्वच्छ तरीके से चुनाव सम्पन्न हो जाए। पूर्व में राजा-महाराजा राज्य प्राप्त करने के लिए युद्ध और षड्यंत्रों का सहारा लेते थे। खूनखराबा होता था। बच्चों और महिलाओं के रुदन और चीत्कार कलेजों को चीर दिया करते थे। अब वैसा प्रजातंत्र में नहीं होना चाहिए। मगर अब भी परोक्ष रूप से ये सब होता है। काश! ये चुनाव लडऩे के बजाए खेलने के हिसाब से होने लगें तो निश्चित रूप से वैमनस्यता बिल्कुल भी नहीं रहेगी। मगर इसकी पहल करे कौन? सत्ता सुख के लिए क्या ये संभव है?
shivdayalmishra@gmail.com

.

.

.

Date:

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related