सत्ता-संगठन के लिए अग्निपरीक्षा चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव

चार में से तीन सीटों पर रहा था कांग्रेस का कब्जा, तीनों सीटों पर फिर से परचम लहराना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती, विधानसभा उपचुनाव में होगी डोटासरा के नेतृत्व की परीक्षा, चार सीटों पर उपचुनाव के लिए कांग्रेस में तैयारियां शुरू, तीन सीटों पर उपचुनाव के लिए पहले ही पीसीसी ने लगाए चुनाव प्रभारी

जयपुर। प्रदेश की चार विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव सत्ता और संगठन के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। चूंकि चार में से तीन सीटों पर कांग्रेस पार्टी का कब्जा था और फिर से इन तीन सीटों पर जीत का परचम लहराना कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है।

दरअसल राजनीतिक नियुक्तियों और मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर जिस तरह का असंतोष कांग्रेस पार्टी में अंदरखाने चल रहा है, उस माहौल में कांग्रेस के लिए चार विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव किसी चुनौती से कम नहीं है। हालांकि कांग्रेस में उपचुनावों को लेकर तैयारियां शुरू भी हो चुकी है।

तीन सीटों, सहाड़ा, राजसमंद और सुजानगढ़ में चुनाव प्रभारियों की तैनाती भी कर दी गई है, लेकिन गुटबाजी और नाराजगी पार्टी में लगातार बढ़ती जा रही है। राजस्थान की राजनीति के इतिहास में ये पहला ऐसा मौका है जब चार सीटों पर उपचुनाव होगा और चारों सीटों से विधायकों का निधन बीमारी से हुआ हो।

कांग्रेस नेतृत्व की भी होगी परीक्षा
विश्वस्तों की माने तो चार सीटों पर होने वाले उपचुनाव प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के नेतृत्व के भी परीक्षा होगी। डोटासरा के नेतृत्व में पहली बार पार्टी उपचुनावों का सामना करेगी। ऐसे में हार और जीत दोनों की जिम्मेदारी प्रदेश नेतृत्व की होगी। अगर पार्टी अपनी तीनों सीटों पर फिर से परचम लहरा देने में कामयाब हो जाती है तो डोटासरा कांग्रेस की राजनीति में एक बड़ा और मजबूत चेहरा बनकर सामने आएंगे तो वहीं पार्टी को यहां हार का सामना करना पड़ता है तो उनके नेतृत्व को लेकर सवाल खड़े होने शुरू हो जाएंगे। पार्टी में डोटासरा विरोधी धड़ा भी सक्रिय हो जाएगा।

सरकार के कामकाज की भी आंकलन
वहीं चार विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में राज्य की गहलोत सरकार भी परीक्षा होगी। चूंकि ये उपचुनाव 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी असर डालेंगे। इसके अलावा सरकार के कामकाज और योजनाओं से जनता में नाराजगी या फिर जनता सरकार के कामकाज से खुश हैं, इसका आंकलन इन सीटों पर होने वाले चुनाव से तय होगा।

अगर चार में से तीन सीटों पर भी कांग्रेस की जीत होती है तो माना जाएगा कि जनता सरकार के कामकाज से प्रसन्न है, या जनता के बीच सरकार की विश्वसनीयता बरकरार है और अगर हार होती है तो कांग्रेस में ही सरकार में नेतृत्व परवर्तन को लेकर आवाजें उठने लगेंगी। पार्टी में गहलोत विरोधी धड़ा नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों को हवा दे सकता है। ऐसे में चार सीटों पर हो रहे उपचुनाव सत्ता और संगठन के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है।

104 रह गई कांग्रेस विधायकों की संख्या
कांग्रेस के तीन विधायकों की बीमारी से निधन होने के बाद कांग्रेस विधायकों की संख्या अब विधानसभा में 104 रह गई है। इससे पहले ये संख्या 107 थी, इनमें बसपा से कांग्रेस में 6 विधायक भी शामिल हैं।

पांच माह में चार विधायकों की निधन
बीते माह पांच में चार विधायकों की बीमारी के चलते निधन हुआ है। इनमें कांग्रेस के कैलाश त्रिवेदी, मास्टर भंवर लाल मेघवाल और गजेंद्र सिंह शक्तावत है तो वहीं भाजपा की किरण माहेश्वरी हैं।

मार्च-अप्रेल में हो सकते हैं उपचुनाव
बताया जाता है कि मार्च या फिर अप्रेल माह में चार सीटों पर उपचुनाव हो सकते हैं। जिन सीटों पर उपचुनाव होने हैं उनमें सहाड़ा, राजसमंद, सुजानगढ़ और वल्लभनगर है। जिनमें से सहाड़ा, सुजानगढ़ और वल्लभनगर पर कांग्रेस का कब्जा था तो राजसमंद में भाजपा का कब्जा था।

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