मनुष्य का स्वभाव ही ऐसा है कि स्वयं के अनुसार कुछ नहीं हुआ या बात नहीं मानी गई तो उनमें मतभेद उभरने लगते हैं। फिर शुरू हो जाता है हर बात पर किच-किच होना। यही किच-किच आगे चलकर मतभेद से होते हुए मनभेद में बदल जाती है और फिर कभी नहीं बदलने वाला माहौल बन जाता है।
शिव दयाल मिश्रा
मनुष्य का स्वभाव ही ऐसा है कि स्वयं के अनुसार कुछ नहीं हुआ या बात नहीं मानी गई तो उनमें मतभेद उभरने लगते हैं। फिर शुरू हो जाता है हर बात पर किच-किच होना। यही किच-किच आगे चलकर मतभेद से होते हुए मनभेद में बदल जाती है और फिर कभी नहीं बदलने वाला माहौल बन जाता है। ये बात अक्सर परिवार के सदस्यों में शुरू होती है और इन्हीं बातों के पीछे घरों में अलगाव उत्पन्न हो जाता है। अगर किसी यार दोस्त हो या कोई भी रिश्तेदार हो उसके बारे में एक बार भी कोई गलत बात दिमाग में बैठा ली जाती है तो वह धीरे-धीरे घर कर जाती है। इसलिए कोई भी वैचारिक मतभेद वाली बात या अपनी इच्छानुसार नहीं होने वाली बात को दिमाग में नहीं बैठानी चाहिए। वरना वह बीज वृक्ष बन जाता है।
उदाहरण के लिए अगर किसी पति-पत्नी में किसी बात को लेकर कोई कहासुनी हो गई, फिर झगड़ा हो गया तो झगड़े की वजह को पति-पत्नी दोनों में से कोई भी उस बार-बार दोहराता है। चाहे वह बात सामान्य ही क्यों न हो। यही दोहराव आपस में जहर बन जाता है। जैसे कोई कहीं बीज गिर जाए और उसे खाद-पानी नियमित लगने लगे तो वह बीज से पौधा और पौधे से पेड़ बन जाता है। वही पेड़ धीरे-धीरे बरगद की तरह खड़ा हो जाता है। इसी प्रकार वह छोटी सी बात आए दिन कलह होने की वजह बन जाती है। वही छोटा सा विवाद जीवन में जहर घोल कर हमेशा के लिए कभी सामान्य नहीं होने वाला माहौल बना देता है।
ये स्थिति परिवार में भाई-भाई, भाई-बहन, पति-पत्नी, रिश्तेदार, पड़ौसी हो या कोई भी हो सकता है। उन सभी पर लागू होती है। इसलिए नफरत के बीज को पनपने ही नहीं दो। उसे दुबारा नहीं दोहराया जाएगा तो कभी भी संबंधों में कड़वाहट नहीं आएगी। मगर आजकल किसी भी कड़वाहट भरी बातों को सब बड़ी रुचि के साथ सुनते हैं। इसलिए मत सींचों नफरत के बीज को, ताकि वह वृक्ष नहीं बनने पाए।
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