बाजरा फसल में रोग प्रबंधन

बाजरे की फसल प्रदेश के किसानों के लिए हरे- सूखे चारे और दाना उत्पादन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इस फ सल को बीज बुवाई से लेकर फ सल पकने तक अनेक रोग नुकसान पहुँचाते हैैंं। यदि वातावरण में नमी की मात्रा अधिक रहे और तापमान भी कम बना रहे तो रोग का प्रकोप ज्यादा होता है। इससे उत्पादन में गिरावट आती हे। यदि किसान इन रोगों की पहचान कर उचित समय पर रोकथाम के उपाय करें तो फसली नुकसान से बचा जा सकता है।

हरित बाली (जोगिया): बीमारी के लक्षण दिखाई देते ही रिडोमिल के 0.1 प्रतिशत अथवा मैंकोजेब के 0.2 प्रतिशत प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। छिडकाव को 10-15 दिन बाद दोहरावें।
चेंप्या (अरगट) : सिट्टे निकलते समय यदि आसमान में बादल छाये हों और हवा में नमी हो तो मेंकोजेब 0.2 प्रतिशत प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
कंडवा रोग : सिट्टे निकलते समय यदि आसमान में बादल छाये हों और हवा में नमी हो तो 0.2 प्रतिशत कार्बोक्सिन अथवा 0.1 प्रतिशत प्रोपीकोनाजोल प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव करें।
पत्ती धब्बा, रोली : रोग के लक्षण दिखाई देते ही मैन्कोजेब के 0.2 प्रतिशत प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव करें।

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