प्राकृतिक खेती की शिक्षा के साथ जल संरक्षण के लिए हो कार्य-राज्यपाल

जयपुर/कोटा। राज्यपाल श्री हरिभाऊ बागडे ने पारंपरिक भारतीय ज्ञान के आलोक में कृषि शिक्षा के आधुनिक विकास का आह्वान किया है। उन्होंने प्राकृतिक खेती अपनाने के साथ वर्षा जल संरक्षण के लिए भी कार्य किए जाने पर जोर दिया। राज्यपाल गुरुवार को कृषि विश्वविद्यालय, कोटा के 8 वें दीक्षांत समारोह में संबोधित कर रहे थे। राज्यपाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि विद्यार्थियों को जो डिग्री प्रदान की गई है वह सिर्फ एक प्रमाण पत्र नहीं बल्कि उनकी मेहनत, संघर्ष एवं निरंतर प्रयासों का सम्मान है। यह केवल प्रमाणपत्र नहीं है, एक जिम्मेदारी भी है। इस डिग्री का उपयोग विद्यार्थी समाज एवं राष्ट्र के विकास में करें।
छात्राएं हर क्षेत्र में आगे
उन्होंने कहा कि यह अत्यधिक प्रसन्नता का विषय है कि कुल 343 डिग्रीधारकों में से 140 छात्राओं ने डिग्री प्राप्त की है एवं कुल 14 स्वर्ण पदकों में से 9 स्वर्ण पदक छात्राओं को प्राप्त हुए हैं, जो लगभग 64 प्रतिशत है। कुलाधिपति व कुलगुरु पदक भी हमारी बेटियों ने प्राप्त किए हैं जो दर्शाता है कि छात्राएं आज हर क्षेत्र में आगे हैं। बेटियां आगे बढ़ेंगी तभी समाज समुचित रूप में उन्नति के पथ पर अग्रसर हो सकता है। मुझे खुशी है कि राजस्थान में बेटियां उच्च शिक्षा में निरंतर आगे बढ़ रही है।
प्राकृतिक खेती अपनाएं
श्री बागडे ने कहा कि विश्व में जनसंख्या के अनुपात में अन्न उत्पादन की अत्यंत आवश्यकता है, जिसके लिए गुणवत्तापूर्ण खेती अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि ज्यादा पैदावार के लिए रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग किया जा रहा है, जिससे जैविक तंत्र, पारिस्थितिकी एवं मानव स्वास्थ्य को खतरा है। अतः रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम कर प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित खेती को अपनाना होगा। उन्होंने कहा कि जैविक खेती से अधिक उत्पादन कैसे लिया जाए, इसके लिए हमारे कृषि विश्वविद्यालयों को ध्यान देने की जरूरत है। कृषि वैज्ञानिकों को इस हेतु चिंतन एवं मनन करने की आवश्यता है। उन्होंने कृषि और किसान से जुड़े सहायक व्यवसायों को बढ़ावा देने की आवश्यकता जताई, जिनमें विशेष रूप से डेयरी उद्योग का उल्लेख किया।
कृषि तकनीकों के प्रसार का माध्यम बने विश्वविद्यालय
उन्होंने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय आधुनिक ज्ञान-विज्ञान, नवीनतम तकनीकों एवं व्यावहारिक समाधान के प्रसार का सशक्त केन्द्र बनें। विश्वविद्यालय किसानों के हित में संचालित योजनाओं को प्रभावी रूप से जमीन तक पहुंचाने में अग्रणी भूमिका निभाए। उन्होंने कहा कि हाड़ौती की धरती पर उच्च गुणवत्ता वाला बासमती चावल उगाया जाता है, जिसकी आपूर्ति विश्व के कई देशों में की जाती है। इस उपलब्धि के लिए यहां के किसान धन्यवाद के पात्र हैं।
राज्यपाल ने भारतीय शिक्षा पद्धति की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को रेखांकित करते हुए कहा कि भारत का ज्ञान का सूर्य युगों से दैदिप्तमान रहा है। लॉर्ड मैकाले को भारतीयों के नैतिक मूल्यों से भय था, इसलिए उन्होंने शिक्षा पद्धति में बदलाव कर अंग्रेजी शिक्षा पद्धति लागू की। उन्होंने कहा कि भारत ने ही शून्य एवं दशमलव की खोज की है, जिसकी बदौलत आज विज्ञान नई ऊँचाइयों तक पहुंच रहा है।
उन्होंने कहा कि ऋषि भारद्वाज द्वारा विमान निर्माण की तकनीक युगों पहले लिखी जा चुकी थी। उन्होंने वागड की मिट्टी में जन्मी कालीबाई भील का उल्लेख करते हुए बताया कि जब अंग्रेजों ने पाठशाला बंद कर उनके गुरु को गाड़ी से बांधकर घसीटा, तब कालीबाई ने अपने प्राणों की आहुति देकर अपने गुरु की रक्षा की।
राज्यपाल ने कहा कि हमें अपनी बौद्धिक क्षमता को इस स्तर तक विकसित करना है कि हमारे विश्वविद्यालयों से डॉ. कलाम, श्री रामानुजन जैसे व्यक्तित्व निकलें, ताकि न केवल राष्ट्र बल्कि हमारे शिक्षण संस्थानों और गुरुओं का भी विश्वभर में नाम हो। उन्होंने भारतीय गुरुकुल पद्धति की सराहना करते हुए कहा कि यह प्रणाली आज भी प्रेरणास्रोत है।
समारोह में अकादमिक वर्ष 2023-24 की स्नातक, स्नातकोत्तर एवं विद्यावाचस्पति परीक्षाओं में उत्तीर्ण 343 अभ्यर्थियों को उपाधियां प्रदान की गई। इनमें से 287 कृषि, उद्यानिकी एवं वानिकी स्नातक, 44 कृषि, उद्यानिकी एवं वानिकी स्नातकोत्तर तथा 12 कृषि एवं उद्यानिकी विद्यावाचस्पति के अभ्यर्थी शामिल हैं। दीक्षांत समारोह में कुल 14 अभ्यर्थियों को स्वर्ण पदक प्रदान किये गये जिनमें से 09 स्वर्ण पदक छात्राओं तथा 05 छात्रों ने प्राप्त किए। सुश्री आरती चन्द्रन स्नातकोत्तर (वानिकी), वनोत्पाद एवं उपयोग को कुलाधिपति स्वर्ण पदक से तथा सुश्री ट्विंकल वर्मा स्नातक (ऑनर्स) कृषि को कुलपति स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया।
अष्टम दीक्षांत समारोह में कृषि विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ. अभय कुमार व्यास ने छात्रों को शुभकामनाएं देते हुए विश्वविद्यालय की उपलब्धियों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र, कोटा में तीन करोड़ रुपये की लागत से स्थापित कॉमन इनक्यूबेशन सेंटर के माध्यम से धनिया, लहसुन और बेकरी उत्पादों के प्रसंस्करण हेतु प्रशिक्षण देकर युवाओं व किसानों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया जा रहा है। अब तक खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में 200 से अधिक उद्यमी तैयार किए जा चुके हैं और 600 से अधिक लोगों को प्रशिक्षण दिया गया है। उन्होंने बताया कि शिक्षा, अनुसंधान, प्रसार एवं प्रशिक्षण को सशक्त बनाने हेतु विश्वविद्यालय द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर 12 एमओयू किए गए हैं।
लोकार्पण एवं विमोचन
दीक्षांत समारोह के दौरान राज्यपाल द्वारा पुस्तक प्रकाशन के अंतर्गत पाँच कृषि सफल उद्यमी पुस्तिकाएं एवं एक स्वर्ण जयंती मशाल संचालन अभियान पुस्तिका का भी विमोचन किया गया। दीक्षांत समारोह के दौरान विश्वविद्यालय द्वारा विकसित चना, मसूर एवं अलसी की पांच नई किस्मों (कोटा देशी चना-4, कोटा देशी चना-5, कोटा देशी चना-6, कोटा मसूर-5 एवं कोटा बारानी अलसी-7) का लोकार्पण किया गया। इसी के साथ पांच इकाईयों का भी लोकार्पण किया गया जिसमें विश्वविद्यालय परिसर में मॉल, उद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय, झालावाड में एक पुस्तकालय भवन, कृषि अनुसंधान केन्द्र, कोटा पर बीज भण्डारण गोदाम तथा साथ ही कृषि महाविद्यालय, कोटा की मुख्य सडक एवं प्रवेश द्वार का शिलान्यास किया गया। समारोह के दौरान 6 प्रकाशनों जिसमें पांच कृषि सफल उद्यमी बुकलेट एवं एक स्वर्ण जयंति मशाल संचलन अभियान बुकलेट का विमोचन किया गया।